गुरुवार, 21 जुलाई 2011

"सकै को राखि,राम कर द्रोही"

(सुशील अवस्थी "राजन")     अयोध्या प्रभु राम की जन्मभूमि  होने के कारण सारी दुनिया में जानी जाती है| अपनें मन में अपनें  आराध्य की मूर्ति बसाकर यहाँ आनें वालों को यहाँ के कण-कण में प्रभू श्री राम के ही दर्शन होते हैं,परन्तु यहाँ नागरिक सुविधाओं का पूर्णतयः अभाव है| तथाकथित धर्मनिरपेक्ष केंद्र और राज्य सरकारों की उपेक्षापूर्ण द्रष्टि के कारण अयोध्या आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है| भाजपा के राम मंदिर आन्दोलन से पहले अयोध्या इतनी उपेक्षित कभी न थी| उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जनपद स्थित इस नगरी के भ्रमण के दौरान आपको मेरी बातों की सच्चाई का एहसास जगह-जगह टूटी-फूटी  गड्ढा युक्त सड़कें करा देंगी| जगह-जगह बजबजाती गन्दी नालियां और कूड़े-करकट के ढ़ेर आपको अपनी नाक पर हाँथ रखनें को विवश कर देंगे| यूपी की राजधानी लखनऊ से मात्र 130 किलोमीटर दूर स्थित इस परम पावनी नगरी के दर्शनार्थ सिर्फ भारत के कोनें-कोनें से ही लोग नहीं आतें हैं, बल्कि विदेशों में बसे हिन्दू मतावलंबी भी यहाँ अपनें आराध्य के दीदार हेतु आते हैं| 
      पर्यटन उद्योग को बढानें के नाम पर भी यहाँ कुछ नहीं किया गया| जबकि राजधानी लखनऊ में अरबों रुपया पानी की तरह बहाकर, कुछ अनाम नेताओं/महापुरुषों की भव्य मूर्तियों को खड़ा करनें के साथ ही तमाम सुविधाएँ उपलब्ध कराई गयी हैं| मुझे इन अनाम सख्सियतों से कोई ईर्ष्या नहीं है, परन्तु इन महापुरुषों को मेरे आराध्य प्रभू श्री राम से ज्यादा महत्त्व दिया जाना कोफ़्त पैदा करता है| हद तो तब होती  है,जब राजधानी लखनऊ में कई जगह जीवित महा-महिला  की मूर्ति खडी करनें में सरकारी अमला धन्यता महसूस कर रहा है, परन्तु श्री राम उसके लिए भी अछूत ही हैं| सारी अयोध्या घूमनें के बाद ये सरकारी भेद-भाव देख मेरे मन में तुलसी बाबा की इस चौपाई की सत्यता जाँचनें को आत्मा बेताब है कि "सकै को राखि,राम कर द्रोही", मेरा तो मन कहता है कि हम लोगों के रहते-रहते ऐसा दिन जरुर आएगा, जब गुरुर से तनें इन शासनाध्यक्षों का कोई नाम लेवा तक न होगा,लेकिन प्रभू श्री राम और उनकी अयोध्या का गुणगान करनें वालों का कभी अभाव न रहेगा| और अंत में आप सभी राम भक्तों को सुशील अवस्थी का जय श्री राम|

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