हिंदुस्तान में राजनीतिक पार्टियाँ दिन-रात लोकतंत्र की दुहाई देते नहीं थकती, लेकिन खुद इन पार्टियों के अन्दर कितना लोकतंत्र विराजमान है, इस पर बात करते ही तमाम पार्टियाँ अतुकांत तर्कों का सहारा लेनें लगती हैं| कांग्रेस माता सोनिया और सुपुत्र राहुल की जागीर है, तो सपा मुलायम एंड फेमिली की चिट-फंड कंपनी है| कमोबेश यही हालत उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी बसपा की है| मुख्यमंत्री मायावती के सिवा इस पार्टी में सब कम्पनी के एम्प्लाई ही हैं|
भाजपा, और वामपंथी पार्टियों को ही पार्टी कहा जा सकता है| क्योंकि राजनीती शास्त्र में जो पार्टी की परिभाषा दी गयी है,उसमें यही पार्टियाँ खरी उतरती हैं| आप की निगाह में और किस पार्टी में लोकतान्त्रिक व्यवस्था स्थापित है, बताइए मित्रों, हो सकता है कि मै ही गलत होऊं|
सर, देश की किसी भी पार्टी में लोकतंत्र नाम की चीज़ नहीं है कहने को तो कुछ भी कहें वो स्वतंत्र हैं, किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता या नेता अगर किसी गलत कार्यवाई के विरोध में आवाज उठता है तो उसे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का हवाला देकर पार्टी से निकाल दिया जाता है जिसके दर्जनों उदहारण सबके सामने हैं फिर पार्टी में किस बात का लोकतंत्र होने का दावा !
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