गुरुवार, 28 जुलाई 2011

दिल दिया है, जां भी देंगे, ऐ वतन ...

( सुशील अवस्थी "राजन" )  "दिल दिया है, जां भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए ...   हम सबनें कर्मा फिल्म यह गाना कई-कई बार सुना है| हाँ एक समय ऐसा था, जब देश के लिए मरनें को तैयार रहना ही देशभक्ति कहलाता था, उस दौर में आज़ाद,भगत,सुखदेव,राजगुरु,असफाक उल्ला, जैसे लोगों ने अपनें प्राणों की बाज़ी लगा, अपनें आपको देशभक्तों की ज़मात में शामिल करवाया, परन्तु आज़ादी के बाद के परिद्रश्य में देश के लिए मरना नहीं, बल्कि देश के लिए जीना ज्यादा बड़ी देशभक्ति है| आज आततायी सरकारों से मुक्ति के लिए गोली,बारूद की नहीं, बल्कि वोट की जरुरत होती है| मुझे तो लगता है कि "निष्पक्षता,निडरता और निःस्वार्थ भाव से किया गया मतदान ही वास्तविक देश सेवा है" 
      कितनें लोग करते हैं यह देश सेवा? मतदान के दिन सबसे ज्यादा आराम तलबी का भूत पढ़े लिखे और संपन्न तबके को ही सवार होता है| गाँव-गरीब और अनपढ़-अनगढ़ लोगों की सक्रियता से ही भारतीय लोकतंत्र जीवित है, अनिवार्य मतदान की व्यवस्था अपनाकर  हम सबको अपनी देशभक्ति को साबित करना होगा| मतदान के मतलब को आम आदमी तक पहुँचाना होगा| मतदान का मतलब एक या दो बोतल दारू नहीं हो सकता| मतदान का मतलब नाली,खडंजा,सौ दो सौ रुपया नहीं हो सकता| मतदान का मतलब जिसको आपनें वोट दिया उस पर एहसान लादना भी नहीं हो सकता| दुर्भाग्य से हम आम भारतीयों को मतदान के ये ही मतलब पता हैं| आज मतदान के वास्तविक मतलब को आम भारतीय तक पहुँचाना ही देश भक्ति है, कोई करना चाहेगा यह देश भक्ति? ऐसे आन्दोलन के साथ जी रहे व्यक्ति के जीनें को ही देश के लिए जीना कहा जायेगा|  क्या जियोगे अपनें हिंदुस्तान के लिए?

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