भ्रष्टाचार....भ्रष्टाचार.... भ्रष्टाचार.... हर तरफ यही सुनने में आ रहा है| सब इसी से आजिज लगते हैं| लेकिन मुझे तो नहीं लगता कि कोई ऐसा दिन भी आएगा जिस दिन हम इस भ्रष्टाचार के दानव के चंगुल से मुक्त हो पाएंगे| भ्रष्टाचार से निपटनें के दोहरे मानदंड कभी इस दानव का वध नहीं कर पाएंगे| ये ठीक वैसे ही हमारे समाज में जड़ें जमा चुका है, जैसे दहेज़ प्रथा .... मिले तो अच्छा, देना पड़े तो बुरा| सत्ताधारी दल को दिन रात पानी पी-पी कर गरियानें वाली विरोधी पार्टी भी सिर्फ इसलिए गरिया रही है, ताकि वह खुद सत्ताधारी बनकर लूट का लाइसेंस ले सके| कौन लडेगा भ्रष्टाचार के शक्तिशाली दानव से? जनता...... जो दिन रात नमक रोटी के लिए ही संघर्ष कर रही है| सरकार को चाहिए कि भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का आवरण पहना दे| हर काम के लिए दलाली के रेट बोर्ड सरकारी कार्यालयों में लगा दिए जांय, जिससे चिक-चिक ख़त्म क़ी जा सके|
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