अपनें रंग दिखा रही है सत्ता, (सुशील अवस्थी "राजन")
रामदेव को जिस डंडे से पीटा,
वही अन्ना को दिखाकर डरा रही है सत्ता,
कम नशा नहीं है सत्ता की बोतल में,
मदांध सत्ताशीनों के आचरण से,
यही तो हमको-आपको समझा रही है सत्ता|
अनवरत जारी रहे लूट का खेल,
इसीलिये तो लोकपाल की जगह जोकपाल को,
अपनें कूचे में बैठा रही है सत्ता|
गाँधी के ही अनुयायी कांपते,
अहिंसक गांधीवादी अनशनों से,
अपनी गिरावट का स्तर,
सबको दिखा रही है सत्ता|
बेरहमी होती है सत्ताधीशों का आभूषण,
इसीलिये तो निरीहों पर,
पूरी ताकत से,
महंगाई का चाबुक,
चला रही है सत्ता|
इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार,
भूल गए, याददाश्त भी हो गयी कमजोर,
फिर यही निरीह जनता देगी आपको
सिंहासन चढ़ाई का जोर,
तब कहोगे सुन लो ऐ मालिकों,
देखो न आज आपके दरवाज़े,
पांच वर्षीय रिचार्ज के लिए,
किस कदर से गिड़-गिड़ा रही है सत्ता|
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