(सुशील अवस्थी "राजन" ) 2012 में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होनें हैं| "सत्ता-रत्न" प्राप्ति हेतु करीब-करीब सभी पार्टियाँ सक्रिय हो उठी हैं| राहुल गाँधी की पदयात्राओं से माहौल चुनावी हो ही रहा था कि चुनाव आयोग नें राजधानी में दस्तक दे स्पस्ट कर दिया, हो जाओ तैयार ....| अजित सिंह नें सबसे पहले चुनावी गठजोड़ों का प्रयोग आरम्भ किया, जो अब असफलता के गर्त की तरफ बढ़ता दिख रहा है| पीस,इंडियन जस्टिस आदि छोटी पार्टियाँ ज्यादा सीटों पर लडनें की जिद पाल बैठी हैं, तो राष्ट्रीय लोकदल कांग्रेस या सपा से गलबहियां करना चाहता है|
छोटी पार्टियों में पीस पार्टी एक नयी ताकत बन चुकी है, जो जीत नहीं, बल्कि किसे हराना है, यह तय करेगी| बसपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना ही पड़ेगा| ब्राह्मण वोट को फिर से आकर्षित कर पाना ही बसपा की सत्ता वापसी का मार्ग प्रशस्त करेगा, जो फ़िलहाल दुष्कर लगता है| दलित वोट जो हांथी का साथी रहा है, पहली दफा मायावती का ५ साल का कार्यकाल देखकर क्या सोंच रहा है, बड़ा महत्वपूर्ण है|
सपा के प्रति यूपी वासियों की नाराज़गी नें ही 2007 में माया के हांथी का मार्ग प्रशस्त किया था, फिर जनता सपा को हांथों-हाँथ लेगी, मुश्किल ही है| राहुल से आम आदमी खुश हो सकता है, पर उनके वादे पर यकीन करनें को नहीं तैयार होगा कि "कांग्रेस का हाँथ, आम आदमी के साथ"|
ऐसे में भाजपा उत्तर प्रदेश में अपना उखड़ा खूंटा फिर से गाडनें की स्थिति में होगी, बशर्ते आपसी सर फुटव्वल पर लगाम लगाई जा सके| पार्टी के बड़े नेता गुटबाजी को संरक्षण न दें, जैसा कि लखनऊ की पश्चिमी विधान सभा के चुनाव में हुआ| यहाँ लालजी टंडन ने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार अमित पुरी का सिर्फ इसलिए दिल खोलकर समर्थन नहीं किया, क्योंकि श्री टंडन के सांसद बन जानें से रिक्त हुई सीट को वे अपनी जागीर समझ अपनें सुपुत्र के लिए टिकट मांग रहे थे और पार्टी ने श्री पुरी को उम्मीदवारी दे दी| यहाँ पार्टी के वरिष्ठ नेता नें गुटबाजी को संरक्षण ही नहीं दिया. बल्कि खुद गुटबाजी का नेतृत्व भी किया| ऐसे उदहारण स्पस्ट करते हैं कि भाजपा को खुद पर विजय पानें की जरुरत है| एक और मुद्दा कुछ सिटिंग विधायकों की अलोकप्रियता को जानते हुए भी उनके टिकट काटनें का साहस न जुटा पाना है| राजधानी लखनऊ के इन अलोकप्रिय विधायकों के नाम हैं, श्री सुरेश चन्द्र तिवारी-कैंट, श्री सुरेश श्रीवास्तव-मध्य, श्री विद्या सागर गुप्ता-पूर्वी, आम कार्यकर्ता का मन है कि सबके सब बदल डालो| सिर्फ जीते लोग ही नकारा नहीं होते,हारे हुए नकारों में एक नाम है वीरेन्द्र तिवारी का जो हर बार जोड़=तोड़ कर सरोजनी नगर से पार्टी को हरवानें के लिए टिकट जरुर ले आते हैं| इस बार भी वे अपनें मिशन में लगे हुए हैं|
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