(सुशील अवस्थी "राजन") सावन का महीना भोले शंकर की जय-जयकार का महीना है| अपनें देश में इसी महीनें में लोग साँपों को दूध पिलाते हैं| किसी भी शिव मंदिर के आस-पास इस तरह के द्रश्य आम बात है| साँपों को दूध क्यों? सांप से तो सिर्फ विष ही मिलेगा| विष हमारे आप के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है? अपनें आस-पास प्रचलित मुहावरे और कहावतों में भी तो सांप को खतरनाक ही बताया गया है, जैसे आस्तीन का सांप, सांप को चाहे जितना दूध पिलाओ मौका पड्नें पर डसेगा ही ...आदि आदि| फिर ये परंपरा क्यों?
सांप किसानों के शत्रु चूहों का सफाया करता है, कहीं इसीलिये तो नहीं, कृषि प्रधान देश भारत के लोग उसका शुक्रिया अदा करते हैं? भगवान् शिव साँपों को अपनें शरीर पर आभूषणों की तरह धारण करते हैं, हो सकता इसीलिये लोग उसकी उपासना करते हों? लेकिन ऐसा करनेवाले शिव पुत्र गणेश को ढोनेवाले चूहे के प्रति इतनें असहिष्णु क्यों हैं? मुझे तो लगता है, लाभ ही किसी के पूज्य, और हानि किसी के अपूज्य होनें में महती भूमिका निभाते हैं|
कुछ और साँपों पर भी निगाह डालिए, हमारे नेता भी कोई कम खतरनाक प्रजाति के सांप नहीं हैं| अपनी वाणी और कर्म से सब जगह सिर्फ विष ही तो टपकाते हैं, फिर भी हम उन्हें दूध ही तो पिलाते हैं| इन्हें सिर्फ सांप नहीं बल्कि आस्तीन का सांप कहा जाना ज्यादा न्याय संगत लगता है| शिव जी के सांप तो चूहे निपटाकर किसी न किसी तरह का हम लोगों को फायदा देते हैं, पर ये आस्तीन के साँपों का हमारे फायदे में क्या योगदान है? जानना जरुरी है| मैं जानने की कोशिश करता हूँ, आप भी करिए| वैसे पाकिस्तान भी एक जहरीला सांप ही है, जिसे हमारे देशी सांप उसके संवर्धन के लिए दूध भिजवाते रहते हैं| हमारा ही दूध पीकर जीवित ये "ना"पाक सांप, आये दिन भारत के खिलाफ ही विष वमन किया करता है| परन्तु जान पर बन आनें पर, कुपित भारतीय, साँपों का सर भी बड़ी विशेषज्ञता से कुचलते हैं| साँपों को यह बात भी ठीक से समझनी चाहिए|
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