रविवार, 28 अगस्त 2011

"अन्ना आन्दोलन के मायनें"



(सुशील अवस्थी "राजन")   अन्ना के अनशन की समाप्ति के बाद लोगों के मन में कुछ सवाल उमड़ घुमड़ रहे है,कि अब क्या होगा? क्या भ्रष्टाचार मिट जायेगा? क्या आम आदमी के हिस्से में कुछ सहूलियतों का आगमन हो सकेगा? आदि आदि .....| मेरा अपना मानना है कि राष्ट्रीय परिद्रश्य पर अन्ना का आगमन अव्यवस्था से तपते-झुलसते हिन्दुस्तानियों के लिए एक ठंडी हवा के झोंके के समान है|बडे  आन्दोलन हमेशा एक नयी राजनीतिक व्यवस्था को जन्म देते हैं| जेपी आन्दोलन नें भी समाजवाद और कई समाजवादी नेताओं को जन्मा था| मुलायम, लालू, चन्द्र शेखर आदि नाम इसी आन्दोलन की उपज थे| ऐसे में यह मानना कि अन्ना आन्दोलन कुछ नहीं देगा हमारी भारी भूल होगी| अब व्यवस्था परिवर्तन का नया दौर शुरू होनेवाला है|
     जातिवाद,धर्मवाद और अपराधवाद की राजनीति करनें वालों के लिए आने वाले दिन बडे कष्टकारी हो सकते हैं| भले ही अन्ना और उनके लोग कोई राजनीतिक पार्टी बनायें या न बनायें, परन्तु चुनावी व्यवस्था उनकी निगाह जरुर रहेगी| अन्ना का सिर्फ एक बयान तय करेगा अगला प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किस पार्टी का होगा| अन्ना का खुद यह कहना कि "नोट करो कि सदन में कौन सांसद क्या बोला अगले चुनावों में उसे सबक सिखाया जायेगा" बताता है कि परोक्ष रूप से ही सही आनें वाले दिनों में सत्ता केंद्र सोनिया निवास से निकल कर अन्ना कुटी स्थान्तरित होनें वाला है| उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को भी चिंतित होनें की जरुरत है| २०१२ में होनें वाले विधान सभा चुनावों में अन्ना  फैक्टर कोई असर नहीं छोड़ेगा सोंचना भी मूर्खता होगी| माया सरकार की छवि आम लोगों की बीच जातिवादी, भ्रष्टाचारी, और अहंकारी ही है| जबकि चुनें जानें से पहले लोग उन्हें एक सख्त प्रशासक के तौर पर देखते थे| जिसकी वजह से ही उन्हें यूपी की सत्ता  नसीब  हुई  थी|

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