गुरुवार, 18 अगस्त 2011

घुप्प अँधेरे में आशा की किरण "अन्ना"




     भ्रष्टाचार भारत की असाध्य बीमारी बन चुकी है| लोगों नें तो इससे मुक्ति का सपना तक देखना बंद कर दिया था| सभी को लगनें लगा था कि भ्रष्टाचार के साथ-साथ जीना और मरना ही हम भारतीयों की नियति है| देश में शायद ही कोई विभाग हो जहाँ आम आदमी को अपना काम करवानें के लिए रिश्वत न देनी पड़ती हो| जीवित तो जीवित मृत लोगों को भी यहाँ भ्रष्टता के सामनें घुटनें टेकनें पड़ते हैं| दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों का पोस्टमार्टम भी यहाँ तब शुरू होता है जब भ्रष्टाचार का दानव रिश्वत पाता है| भ्रष्टता दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की नश-नश में समाहित हो चुकी है| खुद रिश्वत बाजों को भी रिश्वत देनी पड़ रही है| ऐसे घुप्प अंधकार में जब लोगों को अन्ना नाम की रौशनी की एक किरण दिखी, तो सारा देश पतिंगों की माफिक इस रौशनी के श्रोत से चिपक गया|
                                                                                                 सुशील अवस्थी "राजन"

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