सुशील अवस्थी "राजन" उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी लखनऊ की कैंट विधान सभा क्षेत्र से विधायकी लड़ेंगी| उन्हें ऐसे समय प्रत्याशी घोषित किया गया है,जब अन्ना प्रकरण से लोग सबसे ज्यादा कांग्रेस से ही नाराज़ हैं| संभावना जताई जा रही है, कि जोशी दीदी का मुकाबला भाजपा विधायक सुरेश चन्द्र तिवारी से होगा| श्रीमान तिवारी जी लगातार तीन दफा से इस सीट पर भाजपा की विजय पताका फहराते रहे हैं| इसलिए उन्हें हरा पाना आसान नहीं होगा| फ़िलहाल भाजपा नें अभी उन्हें अपना अधिकृत प्रत्याशी नहीं घोषित किया है| तिवारी विरोधियों का गुप्त आन्दोलन प्रगति पर है,कि उन्हें पार्टी टिकट से वंचित कर दे| फ़िलहाल ऐसा होनें की उम्मीदें काफी कम है फिर भी राजनीति में असंभव कुछ नहीं होता| पार्टी के ही उनके व्यक्तिगत विरोधियों का कहना है कि श्री तिवारी की जीत का अंतर लगातार सिकुड़ता गया है, इसलिए पार्टी को श्री तिवारी को टिकट देकर अपनी हार नहीं तय करनी चाहिए| रीता जोशी जैसी कद्दावर नेता का भय दिखाकर विरोधी कह रहे हैं,कि रीता के कद के नेता को लड़ाना भाजपा के लिए लाभ दायक रहेगा| लखनऊ के मेयर डॉ. दिनेश शर्मा को विरोधी उपयुक्त उम्मीदवार मान रहे हैं| फ़िलहाल मेरा अपना मानना कि श्री तिवारी को हरा पाना रीता जोशी के लिए भी आसान नहीं होगा| यह सही है कि सुरेश चन्द्र तिवारी से नाराज़ लोगों की संख्या कम नहीं है, दूसरी पार्टियों से ज्यादा उनके विरोधी उनकी अपनी पार्टी में हैं| तिवारी जी ऐसे लोगों को पहले भी मैनेज करते आये हैं|
रीता जी का इस सीट पर मोह यूँ ही नहीं है| २००९ के लोकसभा चुनाव में रीता जी लखनऊ सीट से "हार" का हार पहन चुकी हैं| जबकि जीत का हार भाजपा के लालजी टंडन के गले में आया था| उस चुनाव में रीता जोशी को कैंट सीट से ठीक-ठाक मत मिले थे| वह इस सीट पर विजयी मुद्रा में थी| लेकिन वे चुनाव पुरानें परिसीमन पर थे,जबकि इस बार उन्हें नए परिसीमन का सामना करना होगा| साथ ही २००९ से २०१२ में परिस्थितियां कांग्रेस के लिए ज्यादा जटिल ही होंगी| अन्ना और रामदेव प्रकरण से कांग्रेस के प्रति उपजी लोगों की नाराज़गी २०१२ तक कम हो जाएगी,लगता नहीं है|
इसी सीट पर सपा नें श्रीमती सुरेश चौहान को अपना प्रत्याशी घोषित कर रखा है| वह भी दिन रात एक किये हैं| गीता पल्ली वार्ड से सभासद श्रीमती चौहान की म्रदु भाषिता का जिक्र पूरे क्षेत्र में है| जबकि बसपा प्रत्याशी नवीन चन्द्र द्विवेदी पप्पू भी संघर्षरत हैं,लेकिन यहाँ बसपा की जीत के दूर-दूर तक कोई आसार नहीं हैं| अच्छा होता कांग्रेस श्रीमती जोशी को किसी एक सीट पर फंसानें के बजाय पूरे यूपी की चुनावी बागडोर सौपती|
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