सोमवार, 22 अगस्त 2011

"जन और तंत्र की ठना-ठनी"

                         

     सुशील अवस्थी "राजन"   अन्ना और उनके समर्थकों की सरकार से अनबन वास्तव में जन और तंत्र के बीच का टकराव है| वह तंत्र जो जन से ही जन्मा है, परन्तु खुद को खुदा समझ बैठा है| तंत्र जब भ्रष्ट और नाकारा हो जाता है,तब जन ही उसे दुरुस्त करता  है, जिसे क्रांति कहा जाता है| भारत में अन्ना हजारे के नेतृत्व में यही क्रांति जन्म ले रही है| इस लड़ाई में तंत्र का हारना हमेशा तय होता है,क्योंकि जन को तंत्र से नहीं बल्कि तंत्र को जन से ऊर्जा मिलती है| जन से प्राप्त संचित ऊर्जा से ही तंत्र हमेशा जन के खिलाफ दमनात्मक लड़ाई लड़ता है,लेकिन जैसे-जैसे तंत्र की संचित ऊर्जा का ह्रास होने लगता है, वह जन के सामनें घुटनें टेकता जाता है|
     दुर्भाग्य का विषय है कि हमारी भारत सरकार दुनिया के सबसे भ्रष्ट तंत्र का सबसे बड़ा नमूना बन चुकी है| यह सब हुआ है सरकार में शामिल कुछ प्रभावशाली कारिंदों के कारण| तंत्र के प्रभावशाली बनें रहनें के लिए के लिए सर्वाधिक जरुरी है कि उस पर जन का विश्वास  कायम रहे| विश्वास कायम रहनें के लिए जन हितकारी कार्य करनें होते हैं| हमारी यूपीए-२ की सरकार नें सिर्फ लूट कार्यों को अंजाम देनें व छुपानें में ही अपनी सारी ऊर्जा व्यय की है| ऐसे में तो यही होना था जो हो रहा है|
      यह हमारे जन की लोकतंत्र पर गहन आस्था ही है जो पिछले ७-८ दिनों से भीड़ का बहुत बड़ा हिस्सा राजधानी दिल्ली की सड़कों पर भजन कीर्तन में रत है| नहीं तो तंत्र कुछ ही घंटों में जन के जूते तले आ जाये| अब तंत्र को अपनें कान,आँख खोल लेनें चाहिए| अन्ना के स्वास्थ्य पर यदि किसी प्रकार की आंच आयी तो तंत्र का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है|

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