और ...नेतागीरी हो जाएगी कठिन
भारत में नेता गिरी बड़ा मनमौजी कार्य है, पर अब यह कार्य मनमौजी नहीं रहने वाला| सिविल सोसायटी जिस तरह अब अपने नेताओं की कमियों पर मुखर होने लगी है उससे आनेवाले दिनों में नेताओं को मुश्किलों से दो चार होना पड़ेगा| निकम्मे नेताओं और सिविल सोसायटी के बीच शुरू हुई जंग फ़िलहाल रुकनेवाली नहीं है| सच्चाई यह है कि जिस गति में देश की जनता जागरूक हुई है, उससे भी ज्यादा तेज़ गति में नेताओं का आचरण रसातल की तरफ अधोगतित हुआ है| सैकड़ों की संख्या में शुरू है न्यूज़ टीवी चैनलों ने आम आदमी को अपने इन सेवकों की कार गुजारियों से वाकिफ कराया है| शिक्षा का बढ़ता स्तर, फेसबुक और इंटरनेट ने हमें विदेशों में चल रहे परिवर्तनों से भी समायोजित होने के लिए द्रष्टि दी है| देश को अपनी जागीर समझने वाले नेताओं को भी अपने में परिवर्तन लाना होगा अन्यथा रामदेव और अन्ना को पटा लेने के बाद भी सिविल सोसायटियों के आन्दोलन रोंक पाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो जायेगा, क्योंकि अन्ना और रामदेव बनने का सिलसिला अब रुकनेवाला नहीं है|
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