एक सवाल कि क्या वर्तमान केंद्र सरकार अन्ना हजारे का एक और अनशन झेल पायेगी? मुझे तो नहीं लगता,आप अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं| अन्ना की ताकत ग्यारह हजार करोड़ रुपयों की ताकत से बहुत बड़ी है| उनकी ताकत उनकी सादगी और इमानदारी है, जिसका सामना कोई सरकार नहीं कर सकती| पता नहीं हमारी सरकार को क्या हो गया है? गांधीवादी तरीकों से अपनी बात रखनेवालों को वह अपना दुश्मन क्यों समझ रही है? लगता है कांग्रेस को गाँधी के विचार अब बोझ लग रहे हैं?
वास्तव इस सरकार को यह समझने की जरुरत है कि जनता जागरूक हो रही है| जिसका प्रतिफल ये अन्ना और बाबा रामदेव के रूप में सामने आ रहा है| पहले की तरह जनता अब पांच साल तक किसी की मनमानी देखने के मूड में नहीं लगती है| गलती होगी तो जनता टोंकेगी| ऐसी स्थिति में तो अपनी गलती सुधारने के सिवा दूसरा कोई बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता| पर हमारी सरकार इतनी कमजोर नीव पर खड़ी है की जरा सी जुम्मिस से वह हिल जाती है|
सरकार और सिविल सोसायटी के बीच चल रहे इस संघर्ष से लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कतई कोई खतरा नहीं है बल्कि इससे हमारे लोकतंत्र की चमक में और इजाफा होगा| संचार के आधुनिक साधनों ने सरकार के काम काज पर जनता की निगाह को स्पष्टता दी है,इस बात को कांग्रेस आला कमान जितनी जल्दी समझ ले वही उसके लिए फायदेमंद है| राज्य सरकारों को ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं है,ये पैटर्न नीचे तक आनेवाला है| होशियार.....
लगता है सिविल सोसायटी की मुखरता के आलोक में ही यूपी विधान सभा चुनाव संपन्न होंगे| घोर जातिवादी, धर्मवादी और अपराधवादी राजनीती के आदी हो चुके हमारे उत्तर प्रदेश के नेताओं को अपना ट्रेंड बदलना होगा, नहीं तो जनता वह परिणाम देगी जिसकी कल्पना भी कठिन कार्य होगी|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें