अमरीका की शिकागो अदालत ने मुंबई हमलों के आरोपी डेविड कोलमैन हेडली व तहववुर हुसैन राणा को 26 /11 के आरोपों से मुक्त कर दिया| जय हो भारत की अमरीका परस्त यूपीए-2 सरकार की| अमरीका भारत का कितना बड़ा शुभचिंतक है, भारतीयों को समझने की जरुरत है| भारत आकर पाकिस्तान की जय जयकार करने वाले बराक ओबामा सिर्फ भारत से अपने नागरिकों के लिए नौकरियां बटोरने आये थे, लेकिन हमारी सरकार उनकी इसी कृपा पर गदगद थी| उनके देश के 60 हजार नागरिकों को नौकरियां भारत दे, और भारत को अमरीका क्या देगा या दिया ये पूंछने का साहस हमारे भारत भाग्य विधाताओं में नहीं था|
वास्तव में गलती हमारी अपनी है| दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी, लेकिन हम हैं कि आगे बढ़ने को ही तैयार नहीं| हमारी विदेश नीति अभी भी दशकों पुराने पावों पर खडी है| जो कि सड़ गल चुके हैं| आज भारत को नजरंदाज़ कर कोई भी देश अपनी अर्थव्यवस्था कायम नहीं रख सकता, लेकिन हम अपनी पुरानी भिखारी छवि से बाहर ही नहीं आना चाहते| अब हम दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हैं, लेकिन हमारी विदेश नीति आज भी भिखारीकाल की दासता का अनुसरण त्यागने को तैयार नहीं है|
हमारा कौन है? चीन....है क्या? नहीं न, वह बंगलादेश जिसके निर्माण में हमारी भूमिका रही वह हमारा है क्या? नेपाल जहाँ से पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी हमारे देश में नकली नोटों की खेप पहुंचाती रहती है, वह अपना है क्या? श्री लंका जो आये दिन हमरे नाविकों को गिरफ्तार करता रहता है, और भारत सरकार गिड गिडाती रहती है,वह अपना है क्या? चीन को पांव पसारने में मदद कर रहा श्री लंका हमारी एक सुनने को तैयार नहीं है,क्यों? कमोबेश यही हाल म्यांमार व भूटान का है| हमारे सारे पडोसी हमारे नहीं हैं| क्यों? इसका उत्तर भारत सरकार को अपने नागरिकों को देना चाहिए| दुनिया के मुल्क सिर्फ चिकनी चुपड़ी बातें कर अपना उल्लू सीधा कर निकल लेतें हैं, क्योंकि हम उदासीन हैं अपने हितों को लेकर|
हमारे बगल के देश पाकिस्तान में आतंकवाद की अंतर्राष्ट्रीय फैक्ट्री लगी हुई है, जिसकी सप्लाई भी अंतर्राष्ट्रीय है, पर आज तक दुनिया के मुल्कों को हम अपना दर्दे दिल समझा पाए क्या? क्यों......? इसका जवाब भारतीयों को कौन देगा? अमरीकन राष्ट्रपति जवाब देगा क्या? अमरीका पर एक हमला करने के बाद फिर दुनिया के किसी आतंकी गुट में दूसरा हमला करने का साहस रह गया है क्या? बल्कि जिन्होंने किया, उन्होंने अपनी बाकी जिन्दगी चूहों की तरह बिलों में ही छुपे-छुपे बिता दी, और जब दिखे कुत्ते की मौत मारे गए| भारत के राजनीतिज्ञों में इतना साहस है क्या? यह बात मै इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि भारतीय राजनयिक कह रहें हैं कि "भारत ने अमरीका से अब बराबरी के रिश्ते कायम कर लियें हैं" आतंकवाद के कोढ़ को ख़त्म करने में भी अमरीका से बराबरी के रिश्ते कायम किये जाय.....क्यों भाई क्या दिक्कत है?
मुझे तो नहीं लगता कि दुनिया के किसी देश ने आतंकवाद से लड़ते हुए अपने इतने नागरिकों का बलिदान दिया होगा, जितने अपने नागरिकों को भारत ने खोया है| फिर आतंकवाद के खिलाफ सबसे आक्रामक भारत को होना चाहिए या अमरीका को? हमारी आबादी ज्यादा है,तो क्या हमारे नागरिकों की जान की कोई कीमत नहीं क्या? सारा कबाड़ा हमारे राजनीतिज्ञों का पसारा है| गंदी राजनीती ने भारत में भी आतंकियों के राजनीतिक शुभ चिन्तक पैदा कर दिए, नहीं तो रंगे हाँथ गिरफ्तार किये गए अफज़ल गुरु और अजमल आमिर कसाब को फांशी देने में भारत सरकार के हाँथ कांपने का क्या मतलब..?
अगर हम दुनिया की दूसरी तेजी से बढती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश हैं, तो फिर हमें दुनिया के अनुरूप हर क्षेत्र में तेजी से ही बदलना होगा, नहीं तो पाकिस्तान और चीन जैसे दुष्ट पडोसी हमारा जीना हराम कर देंगे| भूमंडलीकरण के इस युग में कूप-मंडूक बने रहने से काम चलनेवाला नहीं है| "अपने दुश्मनों को चैन से जीनें नहीं देंगे, और दोस्तों को कोई छेंड नहीं सकता" मुझे तो लगता है भारत सरकार को अपनी विदेश नीति का आदर्श वाक्य इसी उपर्युक्त पंक्ति को बनाना चाहिए| आपका अभिमत क्या है जानना चाहता हूँ|
आपका अपना -
सुशील अवस्थी "राजन"
मोबाइल- 9454699011
Kitni nikammi sarkaar hai yeh..!!
जवाब देंहटाएंAfsos hum kewal likh saktey hain....kar kuch nahi sakte...kya yahi loktantra hain..?