"वसूली का खेल दरोगा,सिपाही पहुंचे जेल" यह खबर है सहारनपुर की शाहजहांपुर पुलिस चौकी की| जहाँ एस.एस.पी. दीपक रतन ने किसान का रूप बनाकर अपने मातहतों की लूट लीला का साक्षात् स्वरुप देखा, और अपने सिपाही, होमगार्ड, व दरोगा साहब को सीधे जेल की राह दिखा दी| अगर कप्तान साहब ने बगैर पूर्वाग्रह से ग्रसित हो यह काम किया है, तो उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए| रतन साहब आप वास्तव में यूपी पुलिस के रतन हो, मै आपकी इस कार्य पद्धति को दिल से "स्यलूट" करता हूँ| वास्तव में आपके इसी तरीके से लुटेरे पुलिस जनों में भय पैदा किया जा सकता है| तीन-तीन, चार-चार रुपयों के लिए भिखारियों की तरह हाँथ बढाने वाले आपके सिपाही डरेंगे और सोंचेंगे "न जाने किस भेष में एस.एस.पी. मिल जांय"
दीपक रतन जी काश आप अपनी इसी परिपाटी के साथ यूपी की राजधानी लखनऊ पधार जांय, फिर आपको दिखाऊँ कि यहाँ का कोई चौराहा, कोई थाना, कोई चौकी ऐसी नहीं है, जहाँ लूट का खेल दिनों-रात धड़ल्ले से न चल रहा हो| कभी कभी तो ऐसी ख़बरें भी आयीं कि पुलिस की अवैध वसूली से बचने के लिए राहगीरों ने अपनी जान तक दांव पर लगा दी| मेरे घर के एकदम पास बाराबिरवा चौराहे पर दिन में ट्रेफिक पोलिस तो रात में थानों की पुलिस अवैध वसूली का मोर्चा संभालती है| काश आप यहाँ होते..| यहीं एक स्थान है आलमनगर क्रासिंग जहाँ का खेल आप देख लें तो खुद कहेंगे बर्खास्तगी और जेल आपके इन जवानों के लिए छोटी सजा है| जाम लगता रहता है, पर बड़ी निडरता और निर्लज्जता से लूट कार्य सम्पादित होता रहता है| आपके इन वीर जवानों को किसी बात का डर नहीं| इतनी निडरता क्या बगैर किसी वरिष्ठ अधिकारी की कृपा के संभव है क्या? जनता भी आपके इन वीर जवानों से पंगा लेना उचित नहीं समझती, क्योंकि उसका भरोसा आपके बड़े अधिकारियों की नैतिकता पर नहीं है| सब जानते हैं कि ये लूट का माल नीचे से ऊपर तक जाता है| बड़े अधिकारी शिकायत कर्ता से सबूत मांगेंगे....फिर ...| अगर वरिष्ठ अधिकारी लूट ख़त्म करना चाहें तो बनाये आपकी तरह ट्रक चालक का वेश| फिर देखिये यदि उन्ही का मातहत उनको पैसा न देने की वजह से तीन चार हाँथ न रसीद कर दे तो कहना|
पर अफ़सोस यह सब सोंचने में ही आसान है| आप ने जो साहस कर दिखाया वह आसान नहीं है रतन साहब| हमारे इतिहास में कई ऐसे राजा रहे हैं जो जनता का सुख दुःख जानने के लिए वेश बदलकर आम आदमी के हाल-चाल जानते थे| इससे राजा के अधिकारी राजा को मनचाही तस्वीर नहीं दिखा सकते थे| पर आज के हमारे जन-प्रतिनिधि हमारा वोट हासिल कर जैसे ही सत्ता में आते हैं उनकी जान को खतरा हो जाता है| इसी बहाने से वे आम आदमी से दूरी बना लेते हैं| जब ये निकलते हैं तो आम आदमी को रोंक दिया जाता है| भाषणों में दिन भर देश पर जान कुर्बान करने की कसमे चला करती हैं, पर दिन भर आम आदमी से जान बचाने की जुगत में रहते हैं| क्यों आते हैं ऐसे डरपोंक लोग राजनीती में? अगर हमारा प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री,गृहसचिव,मुख्य सचिव सब वेश बदल कर साल में एक बार भी निकल जांय तो स्थिति काफी सुधर सकती है| पर हाँ जान पर जो खतरा है उसका क्या? मेरी तो एक ही सलाह है कि इतना डर है तो घर बैठो किसी जां निसार को आने दो|
आपका अपना -
सुशील अवस्थी "राजन"
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