बालेश्वर [ओडिशा]। बीते पांच दिनों में तीसरी दफा भारत ने चांदीपुर के
एकीकृत परीक्षण रेंज [आईटीआर] से सोमवार को अपने देश में विकसित सतह से हवा
में मार करने वाली दो 'आकाश' मिसाइलों का सफल परीक्षण किया। मिसाइलों के
24 और 26 मई को हुए ट्रायल के बाद फिर से इनका परीक्षण किया गया। 'आकाश' की
मारक क्षमता 25 किलोमीटर तक की है। यह अपने साथ 60 किलोग्राम तक के आयुध
ले जा सकता है ताकि हवाई हमलों को नाकाम कर सके।
रक्षा सूत्रों ने कहा कि दोनों आकाश मिसाइलों का उड़ान परीक्षण रोड
मोबाइल लांचर से एक के बाद एक कर किया गया। यह आईटीआर के लांच पैड-3 से
करीब 11 बजकर दो मिनट पर प्रक्षेपित किए गए।
सूत्रों ने बताया कि ट्रायल के दौरान मिसाइलों का मकसद एक तैरती हुई
वस्तु को भेदना था। इस वस्तु को समुद्र के ऊपर एक निश्चित ऊंचाई पर स्थित
प्रक्षेपण परिसर-2 से एक पायलटरहित विमान का सहारा मिला हुआ था।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन [डीआरडीओ] के एक अधिकारी ने कहा कि
विकास से जुड़े परीक्षण पूरे होने और रक्षा शस्त्रागार में शामिल किए जाने
के बाद भारतीय रक्षा बलों की ओर से संचालित यह एक नियमित यूजर ट्रायल था।
अधिकारियों ने कहा कि प्रक्षेपण के तुरंत बाद टेलीमेट्री स्टेशनों और
रेडार से प्राप्त सभी आंकड़ों की मदद से परीक्षण का आंकलन किया गया।
विमान-रोधी रक्षा प्रणाली 'आकाश' इलेक्ट्रॉनिक्स एंड रेडार डेवलेपमेंट
इस्टैब्लिशमेंट [एलआरडीई] की ओर से विकसित 'राजेंद्र' रेडार के साथ एक बार
में ही कई निशाने भेद सकता है। एलआरडीई बेंगलूर में स्थित डीआरडीओ की एक
प्रयोगशाला है। रेडार निगरानी रखने, निशाने का पता लगाने, इसे हासिल करने
और मिसाइल को इसकी ओर गाइड करने का काम करता है। रक्षा विशेषज्ञों ने
'आकाश' मिसाइल प्रणाली की तुलना अमेरिकी 'एमआईएम-104 पैट्रियट' से की है।
'एमआईएम-104 पैट्रियट' सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है।
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