कश्मीर घाटी में पिछले 20 सालों से भारतीय शासन के खिलाफ लड़ने वाले स्थानीय विद्रोही अब चरमपंथ त्यागने के बाद वापस लौट रहे हैं.
कारण साफ है – पाकिस्तान सरकार का घटता समर्थन, ये
आभास कि ‘कश्मीर जिहाद” का भविष्य अनिश्चित है और भारत सरकार की ओर से की
गई माफी की पेशकश.
पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर की राजधानी
मुजफ़्फराबाद में रह रहे एक पूर्व चरमपंथी मोहम्मद अहसान का कहना था,
“यहाँ रहने का कोई फायदा नहीं”.
अहसान भी वापस श्रीनगर जाने की तैयारी कर रहे हैं.
वो कहते हैं, “जिहाद खत्म हो गया है और हमारा पीछा गरीबी कर रही है. यहाँ
अनजान लोगों के बीच भीख मांगने से बेहतर है कि अपनी जमीन पर अपने लोगों के
बीच रहा जाए.”
उन्होंने नेपाल की राजधानी काठमांडू जाने के लिए
किसी तरह 130,000 पाकिस्तानी रुपए की व्यवस्था की है. वो अपनी पत्नी और दो
बच्चों को भी वापस ले जा रहे हैं.
नेपाल पहुँचने के बाद वो भारत के अंदर चले जाएँगे जहाँ से फिर उनकी श्रीनगर के लिए यात्रा शुरू होगी.
एक अनुमान के मुताबिक मुजफ्फराबाद के आसपास करीब
4,000 चरमपंथी फंसे हुए हैं. इनमें से कई वापस जाना चाहते हैं, लेकिन उनके
पास वापस जाने के लिए साधन मौजूद नहीं है.
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