गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

लुट जाए सबकुछ अपना, बस धर्म शेष रह जाये

तेरा मजहब मेरे मजहब से
बड़ा नही हो सकता
ये सोंच जिस देश में हो
वो खड़ा नही हो सकता
   पाकिस्तान, इराक, सीरिया
   याद नहीं क्या तुमको
   कट्टरता का शैतान रात-दिन
   निगल रहा है जिनको
म्यांमार का बौद्ध भी कैसे
हिंसक होता जाता
मानों कट्टरता ते तान दिया हो
विश्व में अपना छाता
   हिंदुत्व को भी कुछ स्वार्थी
   करना चाहें हैं उग्र
   सत्ता इनका ध्येय व सपना
   इस खातिर ये व्यग्र
देश बने न पीएम से
न सीएम और न दल
नागरिकों से राष्ट्र बने
सहिष्णुता अपना बल
   ताज को जो बेताज कर रहे
   वो हैं दुष्ट हरामी
   उनके बिगड़े बोल कर रहे
   भारत की बदनामी
मुहब्बत के स्मारक को
ये हिन्दू-मुस्लिम में बांटे
जी करता ये मिलें कहीं
इन्हें नन्हा-नन्हा काटें
   "राजन" कहीं ये धर्म हमें
   विधर्मी न कर जाए
   लुट जाए सबकुछ अपना
   बस धर्म शेष रह जाये।

सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

"त्रिकूट" और "चित्रकूट" का फर्क

 

   चित्रकूट के घाट पर एक बार भीड़ हुई थी, जब बाबा तुलसीदास चंदन घिस रहे थे और स्वयं भगवान श्री राम अपने हाँथ से तिलक कर रहे थे। एक बार और तब भी खूब भीड़ हुई थी, जब अयोध्या का एक राजकुमार भरत अपने बड़े भाई राम को दल-बल के साथ उसका राजपाट वापस करने आया था। चित्रकूट में कभी भी भीड़ सत्ता कब्जियाने के लिए नही हुई। ये चित्रकूट के पर्वत की संस्कृति है जहां सत्ता मतलब जिम्मेदारी है। जबकि एक और भी पर्वत संस्कृति है, जहां सत्ता भोग विलास की पर्याय है। इसलिए सत्ता के लिए वहां सदैव परिवार के अंदर ही संघर्ष चलता रहा, और वह पर्वत शिखर है त्रिकूट का। नही समझे क्या? समझो "गिरि त्रिकूट ऊपर बसी लंका"
  चित्रकूट पर्वत के सुरम्य और मानवीय गुणों से ओतप्रोत माहौल में सत्ता सुशीलता के साथ त्याग की वस्तु है, जबकि दूर दक्षिण में स्थित दूसरे पर्वत शिखर त्रिकूट की संस्कृति में सत्ता येनकेन प्रकारेण आत्मसात करने की वस्तु है। सत्ता प्राप्ति के दुर्भाव से प्रेरित होकर आज भी कोई चित्रकूट से सत्ता प्राप्ति नही कर सकता। आयोध्या में सत्ता के लिए षड्यंत्र करने वाली ताकते चित्रकूट आते आते प्रायश्चित भाव में आ जाती है।
   आज खुद को राम और चित्रकुटीय संस्कृति का सच्चा साधक और योगी बताने वाले कुछ सत्ता लोलुप लोग यहां भी त्रिकुटीय संस्कृति के बीज रोपना चाह रहे हैं। वे भाई को भाई का दुश्मन बनाने वाली अपनी नफरती सोंच को इसी पर्वत की चोटी से हिंदुस्तान में प्रक्षेपित करना चाह रहे हैं। वह फेल होंगे ठीक वैसे जैसे रावण हुआ था।
    सत्ता के खातिर चित्रकूट में भीड़ जुटाने वालों आपको त्रिकूट की तरफ जाना होगा। क्योंकि वहां भोग है, यहां तो सिर्फ योग है, वहां सोने के महल हैं, यहां तो घास-फूस की झोपड़ी है। लेकिन याद रखना भोग वहां विनाश और अशांति लाता है, जबकि योग यहाँ शांति। सोने के महलों में वहां भाई-भाई के खिलाफ नफरत पैदा करने में हेतु बनता है, तो यहां झोपड़ी दो भाइयों के प्रेम वृद्धि का सेतु।

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

"हारे को हरिनाम" फार्मूले पर काम करती भाजपा

 

   अयोध्या में सरकारी दीवाली मनाने के बाद अब योगी चित्रकूट का रुख करेंगे। चित्रकूट वो स्थान है जहां अयोध्या के राजकुमार भगवान राम ने अपने वनवास के करीब 12 वर्ष गुजारे थे। ये खबर ऐसे समय आयी है जब देश के पीएम नरेंद्र मोदी स्वयं केदारनाथ धाम में जय भोले, जय केदार का जय घोष कर रहे हैं।
   सवाल यह उठता है कि ये भक्ति स्वान्तः सुखाय है या राजनीतिक? स्वान्तः सुखाय भक्ति इस देश का करीब-करीब हर हिन्दू करता है। वो कहाँ प्रचार करता है? 
   
   मुझे ये पूरा मामला विशुद्ध राजनीतिक लगता है। मोदी के सुशासन और विकास के मुद्दे अब भोथरे हो चले है। आर्थिक विकास के उनके प्रयास निष्फल हो चुके हैं। आर्थिक विकास दर जमीन पर आ चुकी है। ऐसे में गुजरात चुनावों का सामना भाजपा भला कैसे करेगी?
   भगवान और आस्था बीजेपी का ट्रम्प कार्ड है। ये पार्टी जब-जब मुसीबत में होती है राम रट्टा तेज़ कर देती है। आजकल भी राम रट्टा कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गया है। योगी सरकार भी यूपी में सुशासन के मुद्दे पर महा फेल होती जा रही है। ऐसे में जनता को खुश रखने के भी तो जतन जारी रखने होंगे ही, क्योंकि 2019 अब ज्यादा दूर नही है।

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

भाजपा में आकर बुरे फंसे स्वामी प्रसाद

   कभी बसपा में फायर ब्रांड नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य आजकल भाजपा में कुछ खोये-खोये से और गैर हाजिर से दिखते हैं। आप जरा अपने दिमाग पर जोर डालकर देखिए तो कि अंतिम बार आपने उन्हें भाजपा के किस प्रोग्राम में खुले तौर पर शिरकत करते देखा है? जबकि बसपा से ही आये ब्रजेश पाठक को आप आये दिन टीवी चैनलों में अवश्य देखते होंगे।
   मौर्य जी के करीबी लोगों में मेरे कुछ सूत्रों ने मुझे बताया है कि स्वामी दादा को भाजपा रास नहीं आ रही है। उन्हें पार्टी में महत्व न दिए जाने से वो भाजपा हाई कमान से खासे खफा हैं। फिर मैंने जब स्वामी प्रसाद की फेसबुक आईडी पर नज़र डाली तो पाया कि वो वहां भी शांत चित्त ही हैं। उनकी अंतिम ऑफिशियल अपडेट भी महीनों पुरानी है।
   
   अगर नगर निकाय चुनावों के परिणामों को देखने के बाद स्वामी दादा भाजपा से राम-राम कर लें, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात न होगी। हालांकि भाजपा को भी अब स्वामी दादा की कोई खास जरूरत नही रही। फिलहाल उसके पास एक बहुत मजबूत मौर्य पहले से ही जो मौजूद है। जी हाँ, आपने एकदम सही समझा, केशव प्रसाद मौर्य। 
   अब एक म्यान में भला दो तलवारे कहाँ रह सकती हैं? सो दूसरी तलवार को तो अपने लिए कोई खाली म्यान ढूढ़नी ही चाहिए। उम्मीद है कि स्वामी प्रसाद नाम की यह तलवार अब सपा की ही खाली म्यान की तरफ रुख करेगी। इंद्रजीत सरोज जो हाल ही मे बसपा छोंड़कर सपा में आये हैं, वो इस स्वामी दादा नामक तलवार को सपा की म्यान में स्थापित करने के आधार बनेंगे।
   
  दरसल स्वामी दादा ने भाजपा ज्वाइन करते समय चिंतन कम चिंता ज्यादा की थी। चिंता अपने राजनीतिक अस्तित्व को लेकर। इसीलिििए आज वह वो खुद को भाजपा में असहज महसूस कर रहे हैं। यहां राजनीति प्रतीकों और इमेज के सहारे चलती है। अब गौरी-गणेश को गाली देने वाले नेता को भला भगवा सीएम योगी अपने सार्वजनिक मंच के किस कोने में जगह दे सकते हैं? 
    ये वो पार्टी है जो अपने अभिभावक नेता आडवाणी द्वारा एक बार जिन्ना की मजार पर मातमी फातिया पढ़ने पर दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक सकती है, फिर आप किस खेत की मूली-गाजर हो स्वामी जी?

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

अयोध्या में त्रेतायुग को पुनः जीवंत करने वाले सीएम योगी

   आज की अयोध्या में त्रेता युग जैसा माहौल था। बतौर राम भक्त मैं आज के इस उत्सव का चश्मदीद रहा ये मेरे लिए बेहद गौरवपूर्ण छण थे। पुष्पक विमान की जगह यूपी सरकार का हेलीकाप्टर इस्तेमाल हुआ जिससे भगवान राम, लक्ष्मण और सीता का स्वरूप जीवंत कर रहे कलाकार उतरे। राज्य के सीएम और राज्यपाल ने उनकी अगवानी की। 
   शाम को राम की पैड़ी पर लाखों दीपों की झिलमिलाहट नें राम के वनवास की समाप्ति का एहसास जीवंत कर दिया। फिर सरयू आरती और रामलीला मंचन नें मानों रामराज्य के पुनरागमन की दस्तक सी दे दी हो। "राम" शब्द हिंदी वर्णमाला के दो अक्षरों से मिलकर बना है, "रा" और "म"। मेरे अनुसार "रा" का तात्पर्य "राष्ट्र" और "म" का अभिप्राय "मंगल" से है। कह सकते हैं राम वादी होने का सीधा मतलब राष्ट्र वादी होना है।
   मैं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को इस महोत्सव के लिए बतौर हिन्दू और रामभक्त बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ। क्योंकि अयोध्या लंबे समय से राजनीतिक संत्रास झेल रही थी। वो अलग बात है कि इस संत्रस्त माहौल के निर्माण का भी श्रेय आपकी ही पार्टी को जाता है। मैं करीब-करीब हर माह बतौर राम भक्त अयोध्या जाता रहता हूँ। इसलिए मुझे आज से पहले की मायूस, हताश, निराश और गमगीन अयोध्या के कुछ ही दिन पूर्व के दृश्य ठीक से याद हैं। 
  मैं इस वक्त महंत सीएम योगी को कुछ कीमती सलाह देना चाहता हूं। यह कि वे इस वक्त सूबे के मुखिया हैं, सिर्फ हिंदुओं के लिए सोचना एक मठ के पुजारी का तो काम हो सकता है, परंतु किसी सीएम का नहीं। सिर्फ हिंदुओं के त्योहारों पर सरकार का ऐसा उल्लास ठीक बात नही। बेहतर होता सरकार ऐसे ही ईद और रोज़ा इफ्तार के लिए भी उल्लसित होती। यह सीधा-सीधा तुष्टिकरण है। जबकि आप कहते हैं " तुष्टिकरण किसी का नही"। यह वही गलतियां हैं, जो इससे पहले अखिलेश यादव की सरकार उल्लासपूर्ण तरीके से रोज़ा इफ्तार मनाकर किया करती थी। दोनों धर्मों के त्योहारों में अगर आप यही गर्मजोशी दिखाएंगे तभी आप अपने संवैधानिक पद के साथ न्याय करेंगे।

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

तुलसी, तानसेन अरु "ताज"

   संगीत सोम नें ताजमहल के बहाने एक बार फिर से अपनी नफरती राजनीति का नया तराना छेंड दिया है। वह भी ऐसे समय जब भाजपा पुरोधा मोदी का गुजरात चुनावी महोत्सव के दौर से गुज़र रहा है। जानकार इस सोममय संगीत को इसी महोत्सव में चार चांद लगाने की उनकी गुप्त मुहिम के रूप में देख रहे हैं।
   भाजपा के उदीयमान कर्ता भर्ता और हर्ता नरेंद्र मोदी जी का राष्ट्रवाद आजकल प्रश्नचिन्हों की काजल कोठरी में खुद को प्रमाणित करने की जद्दोजहद से जूझ रहा है। नोटबंदी, जीएसटी, जैसे मोदी जी के तरकश के ये अमोघ बाण इस वक्त कुछ कुंद हो चले हैं। ऐसे में गुजरात चुनाव कहीं भाजपा के लिए कालरात्रि न साबित हो जाँय। इसलिए पार्टी यूपी की नामी गिरामी नफरती राजनीतिक आर्केस्ट्रा कम्पनी संगीत सोम से कुछ नफरती संगीत वादन कराके गुजराती मतदाताओं को मदहोश कर उनके वोट झटकना चाह रही है।
   नही तो अगर संगीत सोम को गद्दारों से वास्तव में नफरत होती तो सबसे पहले वो अपने पीएम को एक पत्र लिखकर आग्रह करते कि हर पंद्रह अगस्त को जो आप लालकिले की प्राचीर पर चढ़कर देश को संबोधित करते हो न वो लालकिला गद्दारों की निशानी है। संगीत सोम पश्चिमी यूपी की जिस सड़क पर फर्राटा भरते हैं वो ग्रैड ट्रंक रोड़ भी गद्दारों की ही देन है। कुर्ता पजामा उतार फेंको संगीत बाबू यह भी गद्दारों का ही दिया हुआ है। इसी प्रक्रिया को अगर ये महाशय और आगे बढ़ाना चाहें तो अंग्रेज़ भी तो गद्दार ही हुए। उखाड़ फेंको हज़ारों किमी लंबी रेल लाइनें जो कि गद्दारों नें बिछाई हैं। क्योंकि हमारी आज़ाद भारत की सरकारें तो इन रेल ट्रैकों के रखरखाव में ही सारी शक्ति लगा कर खुद को धन्य महसूस किए हैं, नए ट्रैक तो दूर की कौड़ी है।
   वो ताजमहल जो दुनिया में भारत की शान का ताज है। जिसे हिंदी के प्रबल हस्ताक्षर रहे राम विलास शर्मा ने मध्यकाल के तीन प्रतीकों " तुलसी, तानसेन अरु ताज" में एक माना। जो प्रतिवर्ष करीब ढाई लाख विदेशी सैलानियों को भारत लाकर हमारे बेरोजगार भाइयों बहनों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार देता है। वो इनकी आंखों में क्यों खटक रहा है? तुम जिन गद्दार मुगलों से अपने अदावत की बात कहते हो वो सब परलोक वासी हो चुके है बेहतर होता सोम जैसे लोग भी वहीं जाकर अपनी अदावत पूरी करें। यहां हम जिंदा लोगों के जीवन में पहले से ही तमाम दुश्वारियां हैं, हम ये खयाली अदावत को कहां रखें?

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

भाजपा में "मोदी मॉडल" को ओवरटेक करता "योगी मॉडल"

 
 
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी से 70 के क़रीब नवजातों की मौत जैसे कुछ ‘विवाद’ अपनी जगह हैं. और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘वाद’ (हिंदुवाद) अपनी जगह. बल्कि योगी का ‘वाद’ तो उनकी सरकार से जुड़े ‘विवादों’ पर भी अभी भारी पड़ता दिख रहा है. इससे यह सवाल भी उठता है कि आख़िर क्या भाजपा इन दिनों मोदी के बज़ाय ‘योगी मॉडल’ को आगे बढ़ा रही है?
इसकी ताज़ा मिसाल ये कि भारतीय जनता पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को अभी से गुजरात में कांग्रेस से मुकाबले की सीधी कमान सौंपने का फैसला किया है. वह गुजरात जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है. वह गुजरात जहां के ‘विकास मॉडल’ को सामने रखकर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. और वह गुजरात भी जहां अब तक प्रधानमंत्री मोदी ही पार्टी का सबसे बड़ा इकलौता चेहरा हैं. उस राज्य में अब योगी को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुकाबले के लिए उतारा जा रहा है. न्यूज़ 18 की ख़बर के मुताबिक योगी शुक्रवार को दक्षिण गुजरात में बड़ी जनसभा को संबोधित कर रहे हैं. इसके बाद शनिवार को भी वे ‘गुजरात गौरव यात्रा’ में हिस्सा लेंगे.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक गुजरात ही नहीं हिमाचल प्रदेश में भी योगी सघन चुनावी दौरे करने वाले हैं. वैसे यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा ने योगी को उत्तर प्रदेश से बाहर स्टार प्रचारक की तरह पेश किया हो. इसी महीने ही जब केरल में भाजपा ने ‘जनरक्षा यात्रा’ शुरू की थी तो वहां भी योगी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ मौज़ूद थे. यानी अगर कहा जाए कि भाजपा उन्हें बड़े सधे तरीके से राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढ़ा रही है तो ज़्यादा ग़लत नहीं होगा. यही वज़ह है कि उनसे जुड़े सवाल सामने आए हैं. और इन सवालों का ज़वाब तलाशती एक रिपोर्ट न्यूज वेबसाइट ‘द वायर’ पर प्रकाशित हुई है.
ख़बर के मुताबिक भाजपा ही नहीं आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) को भी लगता है कि अभी ‘मोदी का विकास मॉडल’ चल नहीं पा रहा है. नोटबंदी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) जैसे बड़े फैसलों ने अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डाला है. इस बाबत कई नकारात्मक ख़बरें आ रही हैं. भाजपा के परंपरागत मतदाता समझे जाने वाले छाेटे-मंझोले कारोबारी भी परेशान हैं. यानी ‘मोदी मॉडल’ के दम पर चुनाव जीतने में फिलहाल तो शंका है. यही कारण है कि एक बार फिर ‘आक्रामक हिदुत्व’ के मूलभूत मॉडल के ज़रिए लोगों को रिझाने की कोशिश की जा रही है. और इस वक़्त चूंकि योगी ही इस मॉडल पर फिट बैठ रहे हैं इसलिए उन्हें आगे रखा जा रहा है.
दूसरी तरफ योगी भी पार्टी की अपेक्षा के अनुरूप ‘हिंदुत्व के मॉडल’ को ही आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने हाल में ही घोषणा की है कि अयोध्या के सरयू तट पर भगवान राम की विशालकाय प्रतिमा स्थापित होगी. वे दिवाली पर विशेष रूप से अयोध्या की यात्रा पर जाने वाले हैं. यहां तक उन्होंने राज्य परिवहन की बसों को भी भगवा रंगवा दिया है. इन बसों को अभी एक दिन पहले ही ग्रामीण इलाकों में संचालन के लिए सड़कों पर उतारा गया है. बुकलेट, फर्नीचर, स्कूल बैग और भी न जाने क्या-क्या? योगी हर तरफ भगवा की बयार लाने में जुटे हैं. सो ऐसे में एक और सवाल स्वाभाविक है कि क्या उनकी ‘भगवा बयार से भाजपा को कुछ फायदा होगा? जवाब के लिए कुछ समय इंतज़ार करना होगा.

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

प्रति उपकार करउँ का तोरा

प्रति उपकार करउँ का तोरा, 
सन्मुख होइ न सकत मन मोरा।।
   बाबा हनुमान और प्रभू राम के बीच की केमेस्टि समझ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि इस ताल्लुकाती केमिस्टी की आधारशिला खुद माता सीता ने अशोक वाटिका में रखी थी। जब यह कहा था "करहुं बहुत रघुनायक छोहू" फिर तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में तब इसे डिकोड करने की कोशिश की जब लिखा कि "राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहउ रघुपति के दासा" कोई मालिक जब अपने सेवक से यह कह दे कि मैं तुम्हारे उपकार का बदला देने की ही स्थिति में नही हूँ, ऐसे में सेवक के अहंकारी हो जाने के अलावा भला क्या रास्ता है? लेकिन यहां हनुमान जी सिर्फ इतना ही कहते हैं कि "सो सब तव प्रताप रघुराई"

गोमती बोलती है

    गोमती रिवर फ्रंट, लखनऊ। हर लखनऊ वासी करीब करीव हर दूसरे चौथे दिन इस रास्ते से जरूर गुजरता है। गोमती की लहरों नें अपने इन्ही किनारों पर आती-जाती हुकूमतों की न जानें कितनी कहानियां बनते-विगड़ते महसूस की होंगी? इन्होंने कभी अपने किनारे पर सबसे पहले शासक लक्ष्मण को अपनी निर्मल लहरों के किनारे लखनपुर की आधारशिला रखते हुए भी देखा होगा, तो कभी नवाबों की नवाबियत को भी जवान होते हुए जरूर देखा होगा। अंग्रेजों के जुल्म और उनके खिलाफ हुई बगावत की भी ये लहरे साक्षी हैं। अपनी इस गोमती की लहरों में उस दिन जरूर गज़ब की मस्ती रही होगी, जिस दिन इस देश को आज़ादी मिली होगी। 
   आज मैंने गोमती को गौर से देखा और महसूस किया। अब इसकी लहरे मरणासन्न हैं। उनमें स्पंदन तो है, लेकिन उनमें न तो कोई उमंग है और न ही कोई तरंग है। जिंदगी तो है लेकिन मौत की राह ताकती जिंदगी। ठीक वैसी जिंदगी जैसी आम यूपी वासी सत्ता के दर्जनों परिवर्तन करके और उन्हें भोग कर जी रहा है। ये अब अपने किनारों पर हुकूमते बदलने की आहटें तो महसूस करती है, लेकिन यह भी बखूबी जानती है कि इस परिवर्तन से कुछ भी परिवर्तित न होगा। 
   सुशील अवस्थी राजन जैसे थके हारे कुछ लोग उसकी आवाज़ सुन सकते हैं, लेकिन वो किसी तरह का परिवर्तन नहीं ला सकते, और जो लोग परिवर्तन ला सकते हैं, वो उसके किनारों से दूर हैं। 
   हां एक योगी के सीएम बनने की बात सुनकर इसकी लहरों में जरूर एक दिन कुछ स्फूर्ति देखी गई थी। उसे तब और सुकून मिला था, जब वह योगी उसके किनारे पर अपनी पूरी मंत्री मंडली भी ले आया था। गोमती को लगा था कि चलो किसी की मति में तो गोमति है। पर अब इसकी लहरे पहले से भी ज्यादा खामोश होकर अपने उस योगी की प्रतीक्षा कर रही है, जो गोमती से ज्यादा सम्मति होकर गुम हो गया है। गोमती को आज मैंने बुदबुदाते हुए सुना जिसमें वो कह रही थी कि "वो आएगा, वो जरूर आएगा, भले ही मेरे जीते जी न सही, पर मौत पर मातम करने तो जरूर आएगा, क्योंकि वो अब योगी से राजनेता जो हो गया है।

ब्राह्मण दोषी नही, अन्वेषी है: कुमार अवधेश सिंह

    सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण, जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे हैं।

आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया।

उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।

ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।

अब मेरा प्रश्न उस satya raja के लिए

कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो?

शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है तुम मनु स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।

मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नही और पढ़ा भी तो टुकड़ों में कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है। 

मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़े। छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अब रही बात " ब्राह्मणों "ने क्या किया ?तो नीचे पढ़े।

(1)यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज

(2)वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)- भरद्वाज

(3)सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत

(4)चरकसंहिता (चिकित्सा)-चरक

(5)अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है)-कौटिल्य

(6)आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट

ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन,
परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए।

उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था? 

कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो?

विदेशी मानसिकता से ग्रसित कम्युनिस्टों(वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किये। आजादी के बाद इतिहास संरचना इनके हाथों सौपी गयी और ये विदेश संचालित षड्यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।

ब्राह्मण हमेशा ये चाहता रहा किराष्ट्र शक्तिशाली हो,  अखण्ड हो,न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो।

सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।।

का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण,वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज और पुस्तक लिए चरैवेति चरैवेति का अनुसरण करता रहा।मन में एक ही भाव था लोक कल्याण।

ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है। 

किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश  की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा। 

जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा। 

वेदों शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वो इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे है वे सामान्य कैसे हो सकते है?

उन्हे सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है ?

ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाये ? ब्राह्मण को देना पड़ता है पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस और सरकारी सारी सुविधाएँ obc, sc, st, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती है।

मैं अन्य जाति विरोधी नही हूँ लेकिन किसी ने ब्राह्मण को गाली देकर उकसाया है।

इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है। एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती। 

एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नही कर सकता 
जैसे -- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन, 
कबूतरपालन, बकरी, गदहा,ऊँट, सूअरपालन, मछलीपालन, जूता,चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते।

ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नही बनाते।

वो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती, क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है। 

हाँ उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं।

अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है? जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों?जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों?

मैं ब्राह्मण नहीं लेकिन बताना चाहूँगा की ब्राह्मण को किसी जाति विशेष से द्वेष नही होता है। उन्होंने शास्त्रों को जीने का प्रयास किया है अत: जातिगत छुआछूत को पाप मानते है।

मेरा सबसे निवेदन --गलत तथ्यों के आधार पर उन्हें क्यों सताया जा रहा है ?उनके धर्म के प्रतीक शिखा और यज्ञोपवीत, वेश भूषा का मजाक क्यों बनाया जा रहा हैं ? 

मन्त्रों और पूजा पद्धति का उपहास होता है और आप सहन कैसे करते है?

विश्व की सबसे समृद्ध और एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम भारतीय हेय दृष्टि से क्यों देखते है? हमें पता है आप कुतर्क करेंगे, आजादी के बाद भी 74 साल से अत्याचार होता रहा ।

हर युग में ब्राह्मण के साथ भेदभाव, अत्याचार होता आया है।

              कुमार अवधेश सिंह के वाल से  (साभार)

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

नेताजी सुभाष का अलबेला दीवाना "अमित पांडेय"


     यूपी में निकाय चुनावों की आहट के बीच राजधानी लखनऊ में एक नाम आजकल खूब सुर्खियां बटोर है, और वह नाम है अमित पांडेय| आजकल शहर की सड़कों पर कुछ प्रचार वाहन लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं, जिनमें नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फोटो होती है, और लिखा होता है कि "अमित पांडेय का एक ही मोटो, सभी नोटों पर नेताजी सुभाष चंद्र की फोटो" 
     मेरे मन में एक विचार आया कि क्यों न अपने ब्लॉग "काल" के पाठकों को इस मुद्दे से पूरी तरह अवगत कराया जाय, कि आखिर पूरा मामला है क्या? दरअसल अमित पांडेय "आज़ाद हिन्द महासंघ" के बैनर तले लखनऊ से मेयर का चुनाव लड़ने जा रहे हैं | खुद को नेता जी सुभाष चंद्र बोस का अनुयायी और भक्त कहने वाले पांडेय 2009 में यहीं से लोकसभा का भी चुनाव लड़ चुके हैं | 

     फिर से चुनाव की क्या जरुरत? जबकि 2017 के विधान सभा चुनावों में आप और आपके संगठन नें खुद भाजपा का समर्थन किया था? मेरी इस बात पर पांडेय ने कहा कि "मेरे उस समर्थन के पीछे सिर्फ यही मंशा थी कि भाजपा नेताजी सुभाष के आदर्शों और सिद्धांतों के लिए कांग्रेस से तो बेहतर कार्य करेगी ही, लेकिन अफ़सोस कि यह पार्टी तो कांग्रेस से भी बदतर निकली | सिर्फ बंगाल के चुनावों के समय जनता के वोट हासिल करने के वास्ते इस पार्टी ने दिखावे के लिए सुभाष सुभाष का जाप किया फिर शांत हो गए| नेताजी सुभाष के साथ न्याय हो, इसलिए अब मैं जनता के बीच जा रहा हूँ, जनता को भाजपा के फरेब से वाकिफ कराना ही मेरा मुख्य मकसद है"

   अपने प्रत्याशियों के बारे में जानना यह हर वोटर का अधिकार और कर्त्तव्य दोनों है| अमित पांडेय का सिर्फ उतना ही इतिहास नहीं है, जितना कि मैंने आप लोगों से साझा किया है | इनके बारे में यदि आप लोग और जानना चाहे तो इनके मोबाईल नंबर 7233966660 पर भी संपर्क कर सकते हैं | एडीआर जैसी संस्था भी हमें अपने प्रत्याशियों के बारे में पूर्ण जानकारी देती है, मैं चाहता हूँ कि लोग वहां से भी अपने प्रत्याशियों के बारे में अधिक से अधिक जानें| 

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

तुलसीदास: मानस का हंस

गोस्वामी तुलसीदास का जन्म राजापुर गांव (वर्तमान बांदा जिला) उत्तर प्रदेश में हुआ था. संवत् 1554 की श्रावण मास की अमावस्या के सातवें दिन तुलसीदास का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी देवी था. लोगों में ऐसी भी मान्यता है कि तुलसीदास का जन्म बारह महीने गर्भ में रहने के बाद हुआ था जिसकी वजह से वह काफी हृष्ट पुष्ट थे. जन्म लेने के बाद प्राय: सभी शिशु रोया ही करते हैं किन्तु इस बालक ने जो पहला शब्द बोला वह राम था. अतएव उनका घर का नाम ही रामबोला पड गया. माँ तो जन्म देने के बाद दूसरे ही दिन चल बसीं, पिता ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिये बालक को चुनियाँ नाम की एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गए. जब रामबोला साढे पाँच वर्ष का हुआ तो चुनियाँ भी नहीं रही. वह गली-गली भटकता रहा।

बचपन में इतनी परेशानियां और मुश्किलें झेलने के बाद भी तुलसीदास ने कभी भगवान का दामन नहीं छोडा और उनकी भक्ति में हमेशा लीन रहे. बचपन में उनके साथ एक और घटना घटी जिसने उनके जीवन को पूरी तरह बदल कर रख दिया. भगवान शंकर जी की प्रेरणा से रामशैल पर रहनेवाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूंढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा. इसके बाद उन्हें शिक्षा दी जाने  लगी.

21 वर्ष की आयु में तुलसीदास का विवाह यमुना के पार स्थित एक गांव की अति सुन्दरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली से कर दी गई. क्यूंकि गौना नहीं हुआ था अत: कुछ समय के लिये वे काशी चले गए और वहां शेषसनातन जी के पास रहकर वेद-वेदांग के अध्ययन में जुट गए. लेकिन एक दिन अपनी पत्नी की बहुत याद आने पर वह गुरु की आज्ञा लेकर उससे मिलने पहुंच गए. लेकिन उस समय यमुना नदी में बहुत उफान आया हुआ था पर तुलसीराम ने अपनी पत्नी से मिलने के लिए उफनती नदी को भी पार कर लिया.

लेकिन यहां भी तुलसीदास के साथ एक घटना घटी. रात के अंधेरे में वह अपनी पत्नी के घर उससे मिलने तो पहुंच गए पर उसने लोक-लज्जा के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे. उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे के माध्यम से जो शिक्षा उन्हें दी उसने ही तुलसीराम को महान तुलसीदास बना दिया. रत्नावली ने जो दोहा कहा था वह इस प्रकार है:

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीति।

अर्थात जितना प्रेम मेरे इस हाड-मांस के बने शरीर से कर रहे हो, उतना स्नेह यदि प्रभु राम से करते, तो तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती.

यह सुनते ही तुलसीदास की चेतना जागी और उसी समय से वह प्रभु राम की वंदना में जुट गए. इसके बाद तुलसीराम को तुलसीदास के नाम से पुकारा जाने लगा. वह अपने गांव राजापुर पहुंचे जहां उन्हें यह पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता भी नहीं रहे और पूरा घर नष्ट हो चुका है तो उन्हें और भी अधिक कष्ट हुआ. उन्होंने विधि-विधान पूर्वक अपने पिता जी का श्राद्ध किया और गाँव में ही रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे.

कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी चले गये और वहाँ की जनता को राम-कथा सुनाने लगे. कथा के दौरान उन्हें एक दिन मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमान ‌जी का पता बतलाया. हनुमान ‌जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्रीरघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की. हनुमानजी ने कहा- “तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी के दर्शन होंगें.” इस पर तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े.

चित्रकूट पहुँच कर उन्होंने रामघाट पर अपना आसन जमाया. एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले ही थे कि यकायक मार्ग में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए. उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं. तुलसीदास उन्हें देखकर आकर्षित तो हुए, परन्तु उन्हें पहचान न सके. तभी पीछे से हनुमान्‌जी ने आकर जब उन्हें सारा भेद बताया तो वे पश्चाताप करने लगे. इस पर हनुमान्‌जी ने उन्हें सात्वना दी और कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे.

संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुद्धवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम पुनः प्रकट हुए. उन्होंने बालक रूप में आकरतुलसीदास (Tulsidas)से कहा-”बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?” हनुमान ‌जी ने सोचा,कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा:

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर.
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गए. अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये.

संवत् 1628 में वह हनुमान जी की आज्ञा लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े. उन दिनों प्रयाग में माघ मेला लगा हुआ था. वे वहाँ कुछ दिन के लिये ठहर गये. पर्व के छः दिन बाद एक वटवृक्ष के नीचे उन्हें भारद्वाज और याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए. वहाँ उस समय वही कथा हो रही थी, जो उन्होने सूकरक्षेत्र में अपने गुरु से सुनी थी. माघ मेला समाप्त होते ही तुलसीदास जी प्रयाग से पुन: वापस काशी आ गये और वहाँ के प्रह्लादघाट पर एक ब्राह्मण के घर निवास किया. वहीं रहते हुए उनके अन्दर कवित्व-शक्ति का प्रस्फुरण हुआ और वे संस्कृत में पद्य-रचना करने लगे. परन्तु दिन में वे जितने पद्य रचते, रात्रि में वे सब लुप्त हो जाते. यह घटना रोज घटती. आठवें दिन तुलसीदास जी को स्वप्न हुआ. भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो. तुलसीदास जी की नींद उचट गयी. वे उठकर बैठ गये. उसी समय भगवान शिव और पार्वती उनके सामने प्रकट हुए. तुलसीदास जी ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया. इस पर प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा- “तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिन्दी में काव्य-रचना करो. मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी.”

यह सुनकर संवत्‌ 1631 में तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ की रचना शुरु की. दैवयोग से उस वर्ष रामनवमी के दिन वैसा ही योग आया जैसा त्रेतायुग में राम-जन्म के दिन था. उस दिन प्रातःकाल तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की. दो वर्ष, सात महीने और छ्ब्बीस दिन में यह अद्भुत ग्रन्थ सम्पन्न हुआ. संवत्‌ 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गए.

इसके बाद भगवान् की आज्ञा से तुलसीदास जी काशी चले आये. वहाँ उन्होंने भगवान्‌ विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया. रात को पुस्तक विश्वनाथ-मन्दिर में रख दी गयी. प्रात:काल जब मन्दिर के पट खोले गये तो पुस्तक पर लिखा हुआ पाया गया- ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्‌’ जिसके नीचे भगवान्‌ शंकर की सही (पुष्टि) थी. उस समय वहाँ उपस्थित लोगों ने ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्‌’ की आवाज भी कानों से सुनी.

तुलसीदास (Tulsidas)जी जब काशी के विख्यात् घाट असीघाट पर रहने लगे तो एक रात कलियुग मूर्त रूप धारण कर उनके पास आया और उन्हें पीड़ा पहुँचाने लगा. तुलसीदास जी ने उसी समय हनुमान जी का ध्यान किया. हनुमान जी ने साक्षात् प्रकट होकर उन्हें प्रार्थना के पद रचने को कहा, इसके पश्चात् उन्होंने अपनी अन्तिम कृति ‘विनय-पत्रिका’ लिखी और उसे भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया. श्रीराम जी ने उस पर स्वयं अपने हस्ताक्षर कर दिये और तुलसीदास जी को निर्भय कर दिया.

संवत्‌ 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को तुलसीदास जी ने “राम-राम” कहते हुए अपना शरीर परित्याग किया.

तुलसीदासने ही दुनिया को “हनुमान चालिसा”  नामक डर को मिटाने वाल मंत्र दिया है. कहा जाता है कि हनुमान चालिसा के पाठ से सभी भय-विकार मिट जाते हैं. तुलसीदास जी ने देवनागरी लिपि में अपने लेख लिख हिन्दी को आगे बढ़ाने में भी काफी सहायता की है. भारतभूमि सदैव अपने इस महान रत्न पर नाज करेगी.

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

"नवाबी" नही "लक्ष्मणीय" होगा इस बार का लखनऊ महोत्सव

 
   इस बार के लखनऊ महोत्सव की थीम बदली हुई हो सकती है। खबर है कि योगी सरकार इस बार के महोत्सव को भगवान राम के अनुज लक्ष्मण के रंग में रंगने जा रही है। तमाम लोगों को इसमें अभी से दोष नज़र आ रहा है, परंतु मैं इसे एक बदली हुई सरकार के बदले एजेंडे के रूप में ले रहा हूँ। आखिर इस बात से कौन इंकार करेगा कि लखनऊ का पुराना नाम लखनपुरी ही था, जो धीरे धीरे अपभ्रंषित होकर लखनऊ में परिवर्तित हो गया। 
   यह भी सही है कि योगी बाबा की सरकार इस बहाने अपने भगवा एजेंडे को भी धार देकर अपने वोट बैंक को सीमेंटेट मजबूती देने के फिराक में है। यह भी कोई गैर कानूनी काम नही है। हर राजनीतिक दल को ऐसा करने का हक है। अच्छा हो बाबा की सरकार लखनऊ से नवाबी पहचान न छीने बल्कि इस पहचान में लक्ष्मण को भी शामिल करें। आने वाले दिनों में इसपर राजनीतिक तलवार बाज़ी तेज़ होनी है, फिलहाल इस प्रकरण पर मैं ही आप सबको शुरुआती अपडेट दे रहा हूँ।

ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी

रामचरित मानस की चौपाई – ढोल, गवाँर, शूद्र, पशु, नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी || वर्तमान समय में सर्वाधिक चर्चित चौपाइयों में से एक है | इस चौपाई पर विचार करने से पूर्व कुछ शब्दों पर ध्यान करना आवश्यक है | मर्यादा. अंकुश, ताड़ना, अनुशासन, कड़ी निगरानी, पैनी नजर इन सभी शब्दों का आपस में गहरा सम्बन्ध है परन्तु प्रताड़ना पूरी तरह भिन्न अर्थ रखने वाला शब्द है | ताड़ना और प्रताड़ना में बहुत अंतर है | प्रताड़ना शब्द पर ध्यान देंगे तो अत्याचार, उत्पीड़न तथा बल प्रयोग के द्वारा कष्ट देना है | चर्चा में यह कहते हुए कई बार सुना होगा कि वह बहुत चतुर व्यक्ति है उसने फ़ौरन ताड़ लिया | वास्तव में ताड़ना शब्द का सम्बन्ध पैनी नजर एवं सूक्ष्म दृष्टि से है न कि प्रताड़ना से |  जब हम ताड़ना और प्रताड़ना को समान अर्थी मान लेते हैं तो हमारी सोच और दृष्टि में इस चौपाई का अर्थ का अनर्थ हो जाता है | गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत बड़े विद्वान, भक्त शिरोमणि और उच्च कोटि के साहित्यकार थे | वह ऐसी विवादास्पद चौपाई की रचना कर ही नहीं सकते |
सर्वप्रथम ढोल एवं उससे मिलते जुलते वाद्ययंत्रों तबला आदि पर चर्चा करते हैं | इन पर पका हुआ चमड़ा लगा होता है जो पानी या सीलन से ख़राब हो जाता है इस कारण पूरी सावधानी, देखरेख, कड़ी निगरानी रखना अनिवार्य है | प्रयोग करने से पहले रस्सियों को बार बार परीक्षण करते हुए कसना पड़ता है तथा प्रयोग करने के बाद ढीला करना और उचित सुरक्षा के साथ रखना होता है | इसी को ताड़ना, सूक्ष्म दृष्टि रखना, पैनी नजर या कड़ी निगरानी कहते हैं | ऐसा करने पर ही वह वाद्ययंत्र ठीक से बजता है और दीर्घ काल तक उपयोगी रहता है | परन्तु अनर्थ लगाने वाले केवल थापों, उँगलियों या लकड़ी के उपकरणों से प्रहार को ताड़ना कहते हैं | परन्तु  यह भूल जाते हैं कि कड़ी निगरानी में सुरक्षित व उपयोगी नहीं होगा तो कितने ही प्रहार किये जाएं वह बजेगा नहीं |
इस चौपाई में पशु से तात्पर्य पालतू पशुओं से है न कि जंगली पशुओं से | जंगली पशुओं से केवल सुरक्षा की बात आती है अथवा शिकार और उनका भक्षण का विषय आता है न कि ताड़ना अथवा प्रताड़ना का | गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ये दुधारू पशु हैं इसलिए इनका पालन किया जाता है | इनके खान पान, रहने, स्वास्थ्य, प्रजनन इत्यादि सभी विषयों पर कड़ी निगरानी व व्यवस्था पर ध्यान देना होता है तभी दूध व इनकी वंश वृद्धि का सुख प्राप्त होता है | इसमें प्रताड़ना का कोई स्थान हो ही नहीं सकता, हाँ थोड़ा अंकुश अवश्य रखना पड़ता है जो ताड़ना की श्रेणी में ही आता है | दूसरे पशु जैसे हाथी, घोडा, ऊँट, गधा नर व मादा दोनों सवारी करने, व्यवसायिक उपयोग व सेना के उपयोग में तथा बैल व भैंसे कृषि एवं माल ढोने के उपयोग में आदि काल से लाये जाते हैं | इनकी बहुत सेवा करनी पड़ती है | इनके खान पान, स्वास्थ्य, निवास की उत्तम व्यवस्था व पर्याप्त प्रशिक्षण करना पड़ता है | परन्तु उपयोग करते समय घोडा, ऊँट, बैल, भैंसा, गधा को लगाम की आवश्यकता होती है तथा हाथी को अंकुश की आवश्यकता होती है | नियंत्रण के लिए अंकुश व चाबुक की भी  आवश्यकता पड़ती है | परन्तु अनर्थ करने वाले अंकुश व चाबुक को केवल अत्याचार, उत्पीड़न अर्थात प्रताड़ना के रूप में ही देखते हैं |
गंवार अर्थात मूर्ख, अविवेकी, सनकी आदि व्यक्तियों से सदैव उद्दंडता अपेक्षित रहती है | तथा ऐसा व्यक्ति किसी भी कार्य को ठीक से कर पाएगा इसमें शंका बनी रहती है तथा नकारात्मक परिणाम अधिक आते हैं | इनको सकारात्मकता के दायरे में रखने के लिए भी अनुशासन, मर्यादा, अंकुश, कड़ी निगरानी इत्यादि का सहारा लेना पड़ता है अर्थात ताड़ना की आवश्यकता होती है न कि प्रताड़ना की क्योंकि प्रताड़ना की प्रतिक्रिया में तो भयंकर परिणामों की ही शंका बनी रहती है |
जहाँ तक नारी का प्रश्न है तो वह माँ, बेटी, पत्नी, बहन, वधु तथा माँ के समकक्ष अन्य सम्बन्धों के रूप में हमारे साथ होती है | वह गृहलक्ष्मी होती है और परिवार का केंद्र बिंदु होती है | पत्नी के बिना घर घर नहीं होता इसीकारण पत्नी को घरवाली कहा जाता है | संतों को छोड़ दीजिये शेष व्यक्ति जो समाज में रहते हैं एक निश्चित आयु के बाद भी अविवाहित रहते हैं तो उन्हें सम्मान भी काम मिलता है और शंकाओं से भी घिरे रहते हैं | पाश्चात्य संस्कृतियों में नारी का स्थान भिन्न किस्म का है | हमारे धर्म ग्रंथों में नारी का स्थान बहुत उच्च कोटि का है तथा भारतीय संस्कृति में सदैव नारी सम्मान की रक्षा पर बल दिया गया | सृष्टि निर्माण के समय क्षीरसागर में विष्णु भगवान् प्रकट हुए, उनकी नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा जी बिराजमान हुए तभी आदिदेव महादेव भी अर्धनारीस्वरूप में प्रकट हुए | उन्होंने बताया कि आदि-शक्ति मेरा अभिन्न अंग हैं परन्तु हमारी पूजा व आराधना प्रथक प्रथक होगी | प्रभु श्री राम ने सदैव कहा कि मैं सीता के बिना अधूरा हूँ | राम रावण युद्ध को भी उन्होंने नारी के सम्मान की रक्षा के लिए किया गया युद्ध बताया | बालि के वध को भी नारी पर अत्याचार का कारण निरूपति किया गया | श्री कृष्ण अवतार में भी नरकासुर वध के बाद स्वतंत्र की गईं सोलह हजार एक सौ नारियों को सम्मान दिलाने के लिए प्रभु श्री कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ रूप धारण किये | माता सीता ने लक्ष्मण रेखा रुपी मर्यादा का उल्लंघन किया तो उन पर कितनी विपत्ति आई और उसके कितने विध्वंशक परिणाम आये | परिवार का केंद्र बिंदु बनने के लिए कड़ा व उत्तम प्रशिक्षण व अंकुश की आवश्यकता होती है | सम्मान व सुरक्षा के लिए मर्यादा अनिवार्य होती है इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास जी ने ताड़ना शब्द का प्रयोग किया जो बहुअर्थी तो है परन्तु बल प्रयोग के द्वारा प्रताड़ना से पूरी तरह भिन्न है |
वर्ण व्यवस्था के समय जो समाज का विभाजन हुआ वह प्रवृत्ति व क्षमता के आधार पर किया गया | बुद्धि तो प्रत्येक वर्ण के व्यक्तियों को चाहिए थी जो इश्वर द्वारा प्रदत्त भी की गयी | शूद्र वर्ण में उत्पादक, वैज्ञानिक, तकनीशियन, श्रमिक, और लागत अर्थात धन लगाने वाले लोग आते थे | अधिक लाभ के लालच में अनुचित कार्य न करें, समाज व देशहित का ध्यान रखें, कर सही समय पर प्रदान करें इस हेतु इन पर कड़ी निगरानी व अंकुक्ष आवश्यक था | परन्तु उद्योग फलें फूलें व उत्पादन पर्याप्त व श्रेष्ठ हो इसका दायित्व भी राजा का होता था | इसको ताड़ना कहा जायेगा न कि प्रताड़ना | आज के युग में देखें तो उद्योग किसी भी श्रेणी का हो उद्यमियों तथा स्किल्ड व अनस्किल्ड श्रमिकों तथा व्यापारियों तथा उससे सम्बंधित वर्गों पर कानून की पकड़ नहीं हो अर्थात यदि कानून व शासन प्रशासन कमजोर होता है तो भ्रष्टाचार, करचोरी, मिलावट, जमाखोरी, नकली सामान, धोखाधड़ी जैसी घटना आम हैं | अतः अंकुश, कड़ी निगरानी अर्थात ताड़ना और पर्याप्त कानून व सुदृढ़ शासन आवश्यक होता है |
गोस्वामी तुलसीदास जैसे विद्वान ने समाज को उचित मार्गदर्शन देने का प्रयास किया है नकारात्मक सोच वाले भले ही इसका उल्टा अर्थ लगाएं |

"शहज़ादे" से लेकर "शाहज़ादे" तक का सफर


   कहते हैं दुनिया गोल है। चीजें और स्थितियां घूम फिरकर फिर वहीं की वहीं आकर खड़ी हो गयी हैं, जहां वो 2014 के आसपास के सालों में थी। द वायर नाम के न्यूज़ पोर्टल नें आजकल भाजपा परिवार में ऊहापोह वाली स्थिति पैदा कर दी है। द वायर ने अपने एक आर्टिकल में बताया है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के सुपुत्र जय अमितभाई शाह की कंपनी ने मोदी के पीएम बनते ही 50 हज़ार के टर्न ओवर को 80 करोड़ तक पहुंचा दिया था।
    अब द वायर पर सैकड़ा करोड़ का मानहानि दावा किया गया है। ये मानहानि नापने का पैमाना रुपया कैसे हो जाता है, मैं तो आज तक इस बात को नही समझ पाया हूँ। बड़े मीडिया समूह सरकारों की अर्दलीगीरी करते हैं, यह बात अब हर कोई जानता है। छोटे और नए मीडिया हाउसेज कभी कभी इस तरह की डेयरिंग भरी पत्रकारिता कर गुज़रते हैं। फिलहाल द वायर नें कोई बड़ी खोजी पत्रकारिता भी नही की है। कंपनी मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर ये सारे आंकड़े उपलब्ध थे, उसने उन्हें उजागर करने का साहस जुटाया है। जो कि बड़े समूह जानकर भी नही स्पर्श किये।
    2014 में राहुल गांधी को शहज़ादा कहकर संबोधित करने वाले नरेंद्र मोदी नही जानते थे कि 2017 आते आते स्थितियां ऐसी पलटा मारेंगी कि शहज़ादा भी उन पर शाहज़ादा शब्द को हथियार बनाकर पलटवार करेगा।यहां शाह मतलब अमित शाह और जादा मतलब औलाद है।
   आप सबको याद होगा कि रावर्ट वाड्रा मामले में जब यूपीए सरकार के मंत्री उनके समर्थन में बयान देने के लिए उतरते थे, तो यही भजपैये चीख चीखकर पूछते थे कि रॉबर्ट वाड्रा सरकार के कौन है, जो मंत्री सफाई देने उतरते हैं। अब जय शाह के बचाव में पीयूष गोयल किस हैसियत से दलीलें ग़ढ रहे हैं? ये कोई नहीं बता रहा कि जय शाह सरकार में क्या हैं?
   मुझे तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि द वायर नें कोई ऐसा काम किया है जिस पर सैकड़ा करोड़ का दावा बनता हो। जाय शाह की इज़्ज़त 100 करोड़ की है मैं तो यह भी नही मानता हूं।
सुशील अवस्थी "राजन" 
9454699011

सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

नवीन भाव से रामायण

रामायण को कौन नहीं जानता? भगवान राम का पूरा जीवन वृतांत यानी रामायण। दुनिया में घटी हर घटना दुहरायी गयी है। कहते भी हैं कि इतिहास अपने आप को दुहराता जरूर है, पर रामायण की घटना अभी तक के ज्ञात इतिहास में कहां दुहरायी गयी है? फिर कोई राम तो क्या राम जैसा भी नही बन सका है, क्यों? फिर कोई व्यक्ति पारिवारिक विवाद को सुलझाने के लिए वनवास नही गया। पाया हुआ राजपाट अपने भाई को वापस करने कोई भारत फिर चित्रकूट नही गया। रावण जैसे आतंकवादी को मारने के लिए कोई राजघराने का लाल इतने दुष्कर मिशन पर नही निकला। शोषितों वंचितों आदिवासियों दलितों के बीच फिर कोई युवराज राम की तरह का वात्सल्य लेकर नही गया। दुश्मन के भाई विभीषण को फिर कभी राम जैसा शरणदाता मिला क्या? 
इस प्रकरण पर मैं सुशील भाव से सोंचता हूँ, तो पाता हूँ कि राम के चरित्र को रामायण के सभी पात्र मिलकर उद्दात बनाते हैं। आप रामायण के किसी भी एक चरित्र को हटाकर जरा रामायण या फिर राम की कल्पना करके देखिए। रामायण का छोटे से छोटा चरित्र भी राम की महत्ता को बड़े से बड़ा बनाने में अपना सब कुछ समर्पित करता दिखता है। जटायु से छोटा पात्र भला कौन होगा? लेकिन सीता हरण रोकने के लिए यह पक्षी दुनिया के सबसे खूंखार बगदादी रावण से भिड़ जाता है, और अपने प्राण अर्पित कर आतंकवाद के खिलाफ राम की लड़ाई को बल प्रदान करता है। राम का सत्ता त्याग व्यर्थ हो जाता यदि भरत जैसा दुर्लभ भ्रात चरित्र उसे चित्रकूट में सत्ता हस्तांतरित करने का भावना पूर्ण प्रयास न करता। रावण के खिलाफ लड़ाई राम उसी वक्त हार जाते यदि सीता को रावण का वैभव जँच जाता। कहा जा सकता है कि एक साथ किसी एक व्यक्ति के इर्द गिर्द इतने उद्दात लोगों का जमावड़ा नही हुआ इसलिए रामायण और राम कथा फिर से इस धरती पर दुहरायी न जा सकी? आज आप सभी काल ब्लॉग के पाठक अपने ब्लॉगर भाई सुशील अवस्थी राजन की कही गयी बातों पर विचार कर रामायण के सभी चरित्रों पर दृष्टि रख राम कथा का पुनरावलोकन अवश्य करियेगा। किसी भी एक चरित्र को हटाकर रामायण की कल्पना करियेगा, फिर आपको मेरी बातों का असली निहतार्थ स्वतः समझ आ जायेगा।

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

करवाचौथ स्पेशल: देवी अनुसूया द्वारा "नारी धर्म व्याख्या"

दिब्य बसन भूषन पहिराए। 
जे नित नूतन अमल सुहाए॥
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। 
नारिधर्म कछु ब्याज बखानी॥1॥ 

और उन्हें ऐसे दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाए, जो नित्य-नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं। फिर ऋषि पत्नी उनके बहाने मधुर और कोमल वाणी से स्त्रियों के कुछ धर्म बखान कर कहने लगीं॥1॥


मातु पिता भ्राता हितकारी। 
मितप्रद सब सुनु राजकुमारी॥
अमित दानि भर्ता बयदेही। 
अधम सो नारि जो सेव न तेही॥2॥

हे राजकुमारी! सुनिए- माता, पिता, भाई सभी हित करने वाले हैं, परन्तु ये सब एक सीमा तक ही (सुख) देने वाले हैं, परन्तु हे जानकी! पति तो (मोक्ष रूप) असीम (सुख) देने वाला है। वह स्त्री अधम है, जो ऐसे पति की सेवा नहीं करती॥2॥


धीरज धर्म मित्र अरु नारी। 
आपद काल परिखिअहिं चारी॥
बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। 
अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥3॥

धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री- इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है। वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और अत्यन्त ही दीन-॥3॥ 


ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना। 
नारि पाव जमपुर दुख नाना॥
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। 
कायँ बचन मन पति पद प्रेमा॥4॥

ऐसे भी पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भाँति-भाँति के दुःख पाती है। शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए, बस यह एक ही धर्म है, एक ही व्रत है और एक ही नियम है॥4॥ 


जग पतिब्रता चारि बिधि अहहीं। 
बेद पुरान संत सब कहहीं॥
उत्तम के अस बस मन माहीं। 
सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं॥5॥

जगत में चार प्रकार की पतिव्रताएँ हैं। वेद, पुराण और संत सब ऐसा कहते हैं कि उत्तम श्रेणी की पतिव्रता के मन में ऐसा भाव बसा रहता है कि जगत में (मेरे पति को छोड़कर) दूसरा पुरुष स्वप्न में भी नहीं है॥5॥ 


  मध्यम परपति देखइ कैसें। 
भ्राता पिता पुत्र निज जैसें॥
धर्म बिचारि समुझि कुल रहई। 
सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहई॥6॥

मध्यम श्रेणी की पतिव्रता पराए पति को कैसे देखती है, जैसे वह अपना सगा भाई, पिता या पुत्र हो (अर्थात समान अवस्था वाले को वह भाई के रूप में देखती है, बड़े को पिता के रूप में और छोटे को पुत्र के रूप में देखती है।) जो धर्म को विचारकर और अपने कुल की मर्यादा समझकर बची रहती है, वह निकृष्ट (निम्न श्रेणी की) स्त्री है, ऐसा वेद कहते हैं॥6॥


बिनु अवसर भय तें रह जोई। 
जानेहु अधम नारि जग सोई॥
पति बंचक परपति रति करई। 
रौरव नरक कल्प सत परई॥7॥

और जो स्त्री मौका न मिलने से या भयवश पतिव्रता बनी रहती है, जगत में उसे अधम स्त्री जानना। पति को धोखा देने वाली जो स्त्री पराए पति से रति करती है, वह तो सौ कल्प तक रौरव नरक में पड़ी रहती है॥7॥ 


छन सुख लागि जनम सत कोटी। 
दुख न समुझ तेहि सम को खोटी॥
बिनु श्रम नारि परम गति लहई। 
पतिब्रत धर्म छाड़ि छल गहई॥8॥

क्षणभर के सुख के लिए जो सौ करोड़ (असंख्य) जन्मों के दुःख को नहीं समझती, उसके समान दुष्टा कौन होगी। जो स्त्री छल छोड़कर पतिव्रत धर्म को ग्रहण करती है, वह बिना ही परिश्रम परम गति को प्राप्त करती है॥8॥ 


 पति प्रतिकूल जनम जहँ जाई। 
बिधवा होइ पाइ तरुनाई॥9॥

किन्तु जो पति के प्रतिकूल चलती है, वह जहाँ भी जाकर जन्म लेती है, वहीं जवानी पाकर (भरी जवानी में) विधवा हो जाती है॥9॥ 


सहज अपावनि नारि 
पति सेवत सुभ गति लहइ।
जसु गावत श्रुति चारि 
अजहुँ तुलसिका हरिहि प्रिय॥ क॥

स्त्री जन्म से ही अपवित्र है, किन्तु पति की सेवा करके वह अनायास ही शुभ गति प्राप्त कर लेती है। (पतिव्रत धर्म के कारण ही) आज भी 'तुलसीजी' भगवान को प्रिय हैं और चारों वेद उनका यश गाते हैं॥ (क)॥ 


सुनु सीता तव नाम सुमिरि 
नारि पतिब्रत करहिं।
तोहि प्रानप्रिय राम कहिउँ 
कथा संसार हित॥ख॥

हे सीता! सुनो, तुम्हारा तो नाम ही ले-लेकर स्त्रियाँ पतिव्रत धर्म का पालन करेंगी। तुम्हें तो श्री रामजी प्राणों के समान प्रिय हैं, यह (पतिव्रत धर्म की) कथा तो मैंने संसार के हित के लिए कही है॥ (ख)॥

शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

"जनाबाई" के साथ खुद चक्की पीसते थे कान्हा

   
ईश्वर के प्रति जनाबाई का प्रेम बहुत बढ़ गया था। भगवान समय-समय पर उसे दर्शन देने लगे। जनाबाई चक्की पीसते समय भगवान के ‘अभंग’ गाया करती थी,

 गाते-गाते जब वह अपनी सुध-बुध भूल जाती, तब उसके बदले में भगवान स्वयं चक्की पीसते और जनाबाई के अभंग सुनकर प्रसन्न होते।

 जनाबाई की काव्य-भाषा सर्वसामान्य लोगों के हृदय को छू लेती है। महाराष्ट्र के गांव-गांव में स्त्रियां चक्की पीसते हुए, ओखली में धान कूटते हुए उन्हीं की रचनाएं गाती हैं।

भगवान विट्ठलनाथ के दरबार में जनाबाई का क्या स्थान है, यह इससे सिद्ध होता है कि नदी से पानी लाते समय, चक्की से आटा पीसते समय, घर की झाड़ू लगाते समय, और कपड़े धोते समय भगवान स्वयं जनाबाई का हाथ बंटाते थे।

अपने भक्त और अनन्यचिन्तक के योगक्षेम का वहन वह दयामय स्वयं करता है। किसी दूसरे पर वह इसे छोड़ कैसे सकता है। 

जिसे एक बार भी वह अपना लेते हैं, जिसकी बांह पकड़ लेते हैं, उसे एक क्षण के लिए भी छोड़ते नहीं। भगवान ऊंच-नीच नहीं देखते, जहां भक्ति देखते हैं, वहीं ठहर जाते हैं–

जहां कहीं भी कृष्ण नाम का उच्चारण होता है वहां वहां स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं। नाम के साथ स्वयं श्रीहरि सदा रहते हैं।

रैदास के साथ वे चमड़ा रंगा करते थे, कबीर से छिपकर उनके वस्त्र बुन दिया करते थे, धर्मा के घर पानी भरते थे, एकनाथजी के यहां श्रीखंडमा बन-कर चौका-बर्तन करते थे,

 ज्ञानदेव की दीवार खींचते थे, नरहरि सुनार के साथ सुनारी करते थे और जनाबाई के साथ गोबर बटोरते थे।
जप-कीर्तन के माध्यम से मनुष्य क्या कुछ बन सकता है, 

एक दिन भगवान के गले का रत्न-पदक (आभूषण) चोरी हो गया। मन्दिर के पुजारियों को जनाबाई पर संदेह हुआ क्योंकि मन्दिर में सबसे अधिक आना-जाना जनाबाई का लगा रहता था। 

जनाबाई ने भगवान की शपथ लेकर पुजारियों को विश्वास दिलाया कि आभूषण मैंने नहीं लिया है, पर किसी ने इन पर विश्वास नहीं किया। लोग उसे सूली पर चढ़ाने के लिए चन्द्रभागा नदी के तट पर ले गए। 

जनाबाई विकल होकर ‘विट्ठल-विट्ठल’ पुकारने लगी। देखते-ही-देखते सूली पिघल कर पानी हो गयी। तब लोगों ने जाना कि भगवान के दरबार में जनाबाई का कितना उच्च स्थान है। यह है भगवान का प्रेमानुबन्ध

जिस क्षण मनुष्य भगवान का पूर्ण आश्रय ले लेता है, उसी क्षण परमेश्वर उसकी रक्षा का भार अपने ऊपर ले लेते है। भगवान का कथन है– ‘अपने भक्तों का एकमात्र आश्रय मैं ही हूँ।

 इसलिए अपने साधुस्वभाव भक्तों को छोड़कर मैं न तो अपने-आपको चाहता हूँ और न अपनी अर्धांगिनी विनाशरहित लक्ष्मी को।’
‘हौं भक्तन को भक्त हमारे’ भगवान की यह प्रतिज्ञा है।

 पूर्ण शरणागति और अखण्ड प्रेम से सब कुछ सम्भव है। संसारी मनुष्यों के लिए यह असम्भव लगता है परन्तु भक्तों के लिए बहुत साधारण सी बात है।

एक बार कबीरदासजी जनाबाई का दर्शन करने पंढरपुर गए। उन्होंने वहां देखा कि दो स्त्रियां गोबर के उपलों के लिए लड़ रहीं थीं। कबीरदासजी वहीं खड़े हो गए और वह दृश्य देखने लगे। 

फिर उन्होंने एक महिला से पूछा–’आप कौन हैं?’ उसने कहा–’मेरा नाम जनाबाई है।’ कबीरदासजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

हम तो परम भक्त जनाबाई का नाम सुनकर उनका दर्शन करने आए हैं और ये गोबर से बने उपलों के लिए झगड़ रही हैं। उन्होंने जनाबाई से पूछा–’आपको अपने उपलों की कोई पहचान है।’ 

जनाबाई ने उत्तर दिया– ’जिन उपलों से ‘विट्ठल-विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो, वे हमारे हैं।’

कबीरदासजी ने उन उपलों को अपने कान के पास ले जाकर देखा तो उन्हें वह ध्वनि सुनाई पड़ी। यह देखकर कबीरदासजी आश्चर्यचकित रह गए और जनाबाई की भक्ति के कायल हो गए।

नामदेवजी के साथ जनाबाई का कुछ पारलौकिक सम्बन्ध था। संवत १४०७ में नामदेवजी ने समाधि ली, उसी दिन उनके पीछे-पीछे कीर्तन करती हुई जनाबाई भी विठ्ठल भगवान में विलीन हो गईं

‘विट्ठल-विट्ठल पाण्डुरंगा

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

अमीर और अपराधी फ्रेंडली यूपी पुलिस

    उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थापना करीब-करीब हर सरकार के लिए सिरदर्द रहा है। मेरा अपना मानना है कि बाबा योगी की सरकार भी इस मामले में जद्दोजहद ही करती दिख रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि जहां शासन में बैठे आला अधिकारी एसी रूम में बैठकर सिर्फ रूपरेखा खींचते है, वहीं नीचे खासकर थानों में बैठे पुलिसकर्मी और दारोगा मज़लूम, कमजोर, पीड़ितों और गरीब लोगों से सिर्फ और सिर्फ पैसा खींचने की जुगत में लगे रहते हैं। अमीर तो न्याय खरीद लेता है, परंतु गरीब न्याय की आस में बिक जाता है।
   आज एक गरीब और दलित युवक की हत्या के एक मामले को लेकर मैं दिन भर राजधानी लखनऊ के पुलिस अधिकारियों से मिला। अपने चैनल के लिए स्टोरी जहां मेरा मुख्य उद्देश्य रहा, वहीं मेरी यह भी कोशिश थी कि पीड़ित परिवार को न्याय भी मिल सके। पहले आशियाना थाने गया। मालूम पड़ा कि घटना के समय के एसएचओ साहब का ट्रांसफर हो चुका है। ज्ञात हुआ कि मामले की विवेचना डिप्टी एसपी मैडम कर रही हैं। उन्होंने ऑन द कैमरा कोई बात करने से साफ मना कर दिया। ऑफ द कैमरा मुझे भी कोई बात नही करनी थी, सो एक अच्छी मुस्कराहट प्रदर्शित कर उनसे विदा ली। एसएसपी लखनऊ कोई भी रहे, वो राजधानी में हमेशा वीवीआईपी तीमारदारी से ही नहीं छुट्टी पाता, सो वर्तमान साहब कहाँ से पाते? मैंने सीधे रुख किया डीआईजी रेंज के ऑफिस की तरफ। चूंकि फोन पर वार्ता हो चुकी थी, इसलिए डीआईजी साहब मेरा वेट कर रहे थे, उनसे बेहद सकारात्मक माहौल में वार्ता हुई। 
    उन्होंने कहा भी कि दोषी बख्शे नहीं जाएंगे। वो अलग बात है कि दोषी अभी तक बख्शे ही जा रहे हैं। क्योंकि जिस दिन इस दलित युवक को दबंगों ने लाठी डंडों से मारा उसी रात मृतक के भाई को ही यूपी पुलिस ने हिरासत में ले लिया। ऐसे चमत्कारी करतबों पर सिर्फ यूपी पुलिस का ही पेटेंट है, ये सारा देश जानता है। जबकि ठीक उसी रात आशियाना थानें में हमारी यूपी पुलिस के वीर सिपाहियों द्वारा आरोपियों की आवभगत की मेरे पास मुकम्मल जानकारी है। हमारी माल द्रष्टा पुलिस का यह रूप ही उसे अपराधियों के लिए सबसे ज्यादा "अपराधी फ्रेंडली" बनाता है। हां हमारे डीआईजी साहब जरूर गरीब और मज़लूम  फ्रेंडली हैं। राजधानी में इनके सिवा एक और पुलिस अधिकारी इन्हीं जैसे हैं, और वो सख्स हैं निःसंदेह अमिताभ ठाकुर। लेकिन बाबा की सरकार में दोनों ही हासिये पर दिखते है, इसी से बाबा सरकार की मंशा मुझे तो साफ न लगे है। बाकी हरि अनंत हरि कथा अनंता भाव से अगर आप सब "काल" ब्लॉग को पढ़ते रहे, तो फिर किसी दिन यूपी पुलिस के सौ फीसदी सच के साथ एक और सच्ची कथा लेकर आप सबके समक्ष उपस्थित होऊंगा। तब तक के लिए जय हिंद जय भारत।
इसी मामले की सुदर्शन न्यूज़ पर चली खबर



योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...