कोई समय था, जब यूपी की राजधानी लखनऊ में, विधान भवन के ठीक सामने स्थित दारुलशफा प्रांगन जिंदाबाद और मुर्दाबाद के गगन भेदी नारों से गुंजायमान रहता था| दारुलशफा जो कि विधायक निवास के रूप में जाना जाता है| विधान भवन के ठीक सामनें वाले गेट से प्रवेश करते ही आज ख़ाली पड़ा स्थान कभी धरना स्थल के रूप में जाना जाता था, जहाँ से उठी विरोधियों की जबरदस्त आवाज़ की गूँज, कभी-कभी विधान भवन के अन्दर तक सुनाई पड़ती थी| आज जब मै उधर से गुजरा तो वहां पसरी ख़ामोशी हमसे बीसियों सवाल पूंछ गयी| उनमें मुख्य सवाल यही था कि, क्या सत्ताधारी दलों की सुननें की क्षमता ख़त्म हो चुकी है? शायद सत्ताधारी दल अब विरोध भरी आवाज़ के बजाय चाटुकारिता भरी मीठी बातें ही सुनना पसंद करते हैं|
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