गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

जनता तय करे, उचित या अनुचित

     
        उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का चेहरा काफी बदल चुका है| नवाबों का लखनऊ अब माया के लखनऊ में तब्दील हो चुका है| तकरीबन पिछले पांच सालों में शहर का कोई ऐसा प्रमुख चौराहा व पार्क नहीं बचा है, जो हमारी मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी के निर्माण कौशल से अछूता रह गया हो| निःसंदेह प्रमुख चौराहों की सुन्दरता निखर उठी है| प्रायः संध्या कालीन बेला में उच्च वर्ग के परिवार इन निर्माणों के आस-पास, अपनी दिन भर की थकान उतारते और अपनें महंगे कैमरों के फ्लस चमकाते दिख जाते हैं|
     माया के इन निर्माणों को लेकर  विरोधी प्रायः उन पर तंज कसते रहते हैं, फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है, कि इन स्मारकों पार्कों और मूर्तियों की भव्यता नें लखनऊ को एक नई पहचान दी है| परन्तु एक पिछड़े प्रदेश की सरकार द्वारा किसी एक मद पर इतनें ज्यादा खर्च करनें को लेकर विरोधियों की आपत्ति को किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अनुचित नहीं कहा जा सकता|
     मुझे तो लगता है कि तब, जब उत्तर प्रदेश २०१२ में विधान सभा चुनाओं का सामना करनें जा रहा है, विरोधी पार्टियों को मायावती पर व्यक्तिगत हमले न कर इस मुद्दे को जनता के बीच ही ले जाना चाहिए, ताकि जनता तय करे कि हमारी वर्तमान सरकार नें उचित किया या अनुचित|

सुशील अवस्थी "राजन" मोबाइल- 09598469860



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