सोमवार, 19 दिसंबर 2011

"ठण्ड..ठण्ड और ठण्ड"

     ठण्ड बढ़ रही है, मुझे हर ठण्ड में उनकी चिंता सताती है, जो लोग सड़क किनारे फुटपाथ पर रात गुजारते हैं| पर क्या करूँ दिल जितना बड़ा है, जेब उतनी ही छोटी| लेकिन राजधानी लखनऊ में हर किसी के हालात  सुशील अवस्थी जैसे नहीं हैं| यहाँ कुछ दाता-धर्मी भी रहते हैं, जिन्हें इन गरीब-गुरबों की चिंता सताती है| मुझे याद है, पिछली ठण्ड में, हमारे जिले के सत्ताधारी दल के जिलाध्यक्ष के सभी कृपापात्र चिंटूओं नें चार-चार, पांच-पांच कम्बल बटोरे थे, ये वो कम्बल थे, जिसे यूपी सरकार नें गरीबों के लिए दिए थे| इस बार भी ऐसे लोगों के गैंग चौकन्नें हैं| कुछ कम्बल वितरक भी पत्रकारों/कैमरामैनों से कब कम्बल बांटे का मुहूर्त तय करनें लगे हैं, ताकि उनके सुकर्म आम जनता तक पहुँच सके| शहर के एक सबसे बड़े अलावी पुरुष जो सांसद बनने के लिए हर बार राजधानी में सैकड़ों अलाव जलवाया करते थे, इस बार जलवाते हैं या नहीं, राजधानी के लोगों की उन पर विशेष निगाह रहेगी|

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