रविवार, 11 दिसंबर 2011

अन्ना की हुंकार बनाम कांग्रेसी चीख पुकार



     आखिरकार अन्ना हजारे को सरकार पर दबाव बनाने के लिए फिर से मैदान में आना ही पड़ा| अपनें एक दिनी उपवास से हजारे नें देश की "धक्का पलेट" केंद्र सरकार को दिखा दिया कि कांग्रेस और सरकार के तमाम वरिष्ठ मंत्रियों के कीचड उछाल आन्दोलन के बाद भी उनमें और उनकी टीम में इतनी ताकत बची है, जिससे कांग्रेस को कब्र तक पहुचाया जा सके|
    फिलहाल तो कांग्रेसी "हठयोग" टूटनें के कहीं कोई आसार नहीं दिख रहे हैं| अगर उधर अन्ना दिल्ली में कांग्रेस और राहुल के विरुद्ध महासमर की हुंकार भर रहे हैं, तो कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी यूपी में अपनें प्रत्याशियों को चुनावी महासंग्राम में फतह के गुर सिखा रहे हैं| मतलब साफ़ है कि कांग्रेस को अन्ना के उपवास की कहीं कोई फिक्र नहीं है|
      आम आदमी का मानना है कि कांग्रेस नें खुद ही आत्मघाती राह चुनी है| जन लोकपाल पर कांग्रेस के उदासीन रुख नें जनता में यह सन्देश भी दिया है, कि हो न हो आज़ादी के बाद से अब तक देश में चले अघोषित लूट आन्दोलन का नेतृत्व हमेशा ही कांग्रेसी दिग्गजों के ही पास रहा है, इसीलिये यह पार्टी जन लोकपाल से डरती है| मजबूत लोकपाल लाये बगैर कांग्रेस देश के किसी भी कोनें में, कोई भी आम चुनाव आत्मविश्वास पूर्वक नहीं लड़ पायेगी, फिलहाल तो यही एक बात कांग्रेस को समझनें की जरुरत है, जो यह पार्टी नहीं समझना चाह रही है|

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