गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

यूपी भी बिहार जैसे परिवर्तन की राह पर

     (सुशील अवस्थी "राजन") अब तो लगता है कि अन्ना आन्दोलन के साये में ही यूपी विधान सभा चुनाव संपन्न होंगे| देश के सबसे बड़े राजनीतिक प्रदेश के चुनाव परिणामों पर सारे देश की निगाहें होंगी| उत्तर प्रदेश अपनें जातिवादी, धर्मवादी और अपराधवादी दुराग्रहों के लिए जाना जाता है| गैर जातीय राजनीति का ढिंढोरा पीटनें वाले राहुल गाँधी भी उत्तर प्रदेश  आकर यहाँ की राजनीतिक पाठशालाओं में जातिवादी बारीकियां सीखनें लगते हैं| जातिवाद का विरोध करनें के लिए ही यहाँ की मुख्यमंत्री  मायावती, अपनी बहुजन समाज पार्टी में जातिवार भाईचारा कमेटियां बनाती हैं, जैसे ब्राह्मण भाईचारा कमेटी, नाई भाईचारा, तेली भाईचारा, आदि-आदि| भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी जातिवादी गणित मजबूत करनें के लिए दूसरे प्रदेश, मध्य प्रदेश से अपनी लोकप्रिय नेता उमा भारती का आयात करती है|
       अपराधवाद तो यहाँ इस कदर हावी है कि कोई पार्टी खुलकर दावा ही नहीं कर सकती कि वह अपराधियों को अपनी चौखट पर नहीं फटकनें   देगी| अपराधियों की ताकत का अंदाज़ा आप यहाँ घटी सिर्फ एक घटना से ही लगा सकते हैं, जब राजधानी की जेल में डाक्टर सचान की नृशंस हत्या की गयी थी| यहाँ अपराधियों की ताकत जेलों से लेकर जातिवादी मेलों तक सभी जगह व्याप्त है|
     ऐसे में अन्ना आन्दोलन के साये में चुनाओं का होना यूपी की राजनीति के लिए शुभ संकेत है| बाबा रामदेव और अन्ना ऐसे दो कारक हैं, जिन्होनें भारतीय राजनीति में अपना गहरा असर छोंड़ा है| यह असर यूपी के जन-मानस पर भी पड़ा है| ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, यदि यूपी की जनता भी अपनें वोटों की ताकत से बिहार जैसा परिवर्तन अंगीकार कर ले|

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