शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

"माया की माया"


उत्तर प्रदेश में जबसे विधान सभा चुनाओं की दस्तक हुई है, तभी से मुख्यमंत्री मायावती जी हर रोज़ दो चार मंत्रियों की छुट्टी कर रही हैं| क्या मायावती जी पांच साल सरकार चलानें के बाद अब जान सकी हैं कि उनके कितने मंत्री भ्रष्ट हैं, या फिर जनता को अपनी नेक नीयती दिखाकर उनके वोट हासिल करना  चाहती हैं| जिस मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल में इतनें दागी  मंत्री  रहे हों, भला उस मुख्यमंत्री को ईमानदार कैसे समझा जाय| फूलों कि जगह हज़ार रुपये के करारे नोटों की माला पहननें वाली मुख्यमंत्री को, जनता के सामनें अब अपनी ईमानदारी  की परीक्षा देनी ही होगी|

आवारा कैमरा .. हाज़िर है


लखनऊ में लाइन लगाये टेम्पो,  सवारी कम लेकिन टेम्पो ज्यादा

चारबाग रेलवे स्टेशन, लखनऊ की भव्य इमारत

ट्रेनों की आवाजाही की सूचना देता नया इलेक्ट्रानिक बोर्ड

तुम्ही भविष्य हो मेरे भारत के भाल के ... नाले में क्या ढूंढ़ रहे हो  


बुधवार, 28 दिसंबर 2011

क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है



     मुंबई और दिल्ली में एक साथ शुरू हुआ अन्ना हजारे का शो इस बार फ्लाप होता हुआ दिख रहा है| राजनीतिक दलों की आपसी सांठ-गाँठ नें अन्ना के शो का सारा आकर्षण ही चुरा लिया| मुंबई की अति  व्यस्त जनता नें जहां अन्ना के आन्दोलन को ढेंगा दिखाया, वही हजारे के स्वास्थ्य नें भी उनका साथ नहीं दिया| फिलहाल अभी बाकी बचे दिनों पर निगाह रखिये शायद शो में कुछ नया स्टंट डाला जाय|
हमारे पडोसी चौबे जी आजकल अन्ना शो के फ्लाप होनें से बहुत दुखी हैं| ३ महीनें से कटे चल रहे केबिल टीवी कनेक्शन को श्रीमान जी नें सिर्फ अन्ना शो देखनें के लिए ही जुड़वाया  था|  किसी शाम मशाल जुलूस निकालना भी इसबार उनके एजेंडे में था| क्योंकि पिछली दफा उन्हें दूसरों के प्रायोजित जुलूसों में शामिल होकर पीड़ा जो उठानी पड़ी थी| क्योंकि हर सुबह के अखबार में चौबे जी को अपना नाम व फोटो खोजनें में चश्मा लगाकर खासी मशक्कत जो करनी पड़ी थी| जबकि आयोजक बंधू का फोटो और नाम चौबे जी बगैर चश्में के ही देख लेते थे|   पता नहीं देश भर में कितनें चौबे दुखी होंगे| ईश्वर उन सबके लिए भी इस शो में कुछ न कुछ स्टंट डालेगा जरुर, धैर्य रखिये चौबे जी ...क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है ...मेरे दोस्त|
सुशील अवस्थी "राजन"    मोबाइल-08896520439

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

लोकपाल पर हमारे राजनीतिज्ञों द्वारा अपनाये गए रुख से स्पष्ट हो गया है, कि नेता चाहे वह सत्ता को हो या विपक्ष का करीब-करीब एक ही तरह सोंचता है| संसद के हमाम में जनता को सभी नंगे दिखे| अब अन्ना को भी अपनी राजनीतिक पार्टी बनानी चाहिए| अन्ना जी संघर्ष करो हम आपके साथ हैं|

देश की छवि बदलिए

       क्या बालीवुड अभिनेता आमिर खान का वह विज्ञापन आपको याद है, जिसमें वह देशवासियों से अपनें देश की छवि धूमिल न करनें की अपील करते हैं| इसी विज्ञापन में एक जगह एक महिला अपनें  बच्चे को सड़क पर पेशाब कराकर  देश की छवि धूमिल कर रही होती है| कभी आप ट्रेन से सफ़र करिए तो देखनें में आता है, कि बच्चा तो बच्चा है, न  जानें कितनें बच्चों के माँ-बाप इस देश में सुबह-सुबह डिब्बा लेकर रेलवे लाइनों के किनारे बैठे होते हैं| वास्तव में इन चीज़ों से देश की छवि पर तो असर पड़ता ही है| पर सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या अपनें  देश में पर्याप्त रूप से शौचालय और मूत्रालय मौजूद हैं? गावों और छोटे शहरों को छोडिये  यूपी की राजधानी लखनऊ में सुलभ शौचालयों का भारी अभाव है| आलमबाग जैसे व्यस्त इलाके में एक सुलभ शौचालय लाखों लोगों का बोझ उठा रहा है, जहां हमेशा पेशाब करनें वालो की लम्बी लाइन लगी रहती है|

रविवार, 25 दिसंबर 2011

आवारा कैमरा




उमा भारती को ध्यान पूर्वक सुनते लोग

अँधेरे में डूबी वीआईपी रोड

मूर्तियों स्मारकों के शहर लखनऊ में अँधेरे में भी जगमगाती बौद्ध विहार शांति उपवन की चहार दिवाली

आलमबाग में भड़ास निकालती उमा भारती


शनिवार, 24 दिसंबर 2011

चुनावी रंग में उमा भारती



(सुशील अवस्थी "राजन") आज उमा भारती लखनऊ में थी| राजधानी के कैंट विधान सभा क्षेत्र में उन्होंने पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई के जन्म दिन की पूर्व संध्या पर आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत की, जिसका आयोजन विधायक सुरेश चन्द्र तिवारी द्वारा किया गया था|
उमा अपनें भाषण में कांग्रेस  पर विशेष रूप से हमलावर रही| राहुल गाँधी द्वारा गरीब के घर खाना खानें पर उन्होंने कहा बड़ी बात तब होगी जब कोई गरीब राहुल के घर खाना खायेगा| मुस्लिमों को आरक्षण पर उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर हम ऐसे किसी आरक्षण को कभी नहीं स्वीकारेंगे| मायावती को चुनौती भरे लहजे में उन्होंने कहा कि हम जो आरोप लगा रहे हैं गलत साबित होनें पर जेल जानें को तैयार हैं,पर सही निकलनें पर उन्हें भी जेल जाना होगा|
इस अवसर पर राजधानी से भाजपा सांसद लालजी टंडन, मेयर दिनेश शर्मा, विधायक सुरेश तिवारी नें भी जनसभा को संबोधित किया| नगर महामंत्री मान सिंह, नें कार्यक्रम का सञ्चालन किया| सुशील तिवारी पम्मी, सन्युक्ता भाटिया, अभिजात मिश्र, राजीव शुक्ल "रज्जू", व व्यापारी  नेता संदीप कान्त  "राजन" सहित हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों नें यह प्रदर्शित किया कि भाजपा फिर मजबूत हो चुकी है|

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

यूपी भी बिहार जैसे परिवर्तन की राह पर

     (सुशील अवस्थी "राजन") अब तो लगता है कि अन्ना आन्दोलन के साये में ही यूपी विधान सभा चुनाव संपन्न होंगे| देश के सबसे बड़े राजनीतिक प्रदेश के चुनाव परिणामों पर सारे देश की निगाहें होंगी| उत्तर प्रदेश अपनें जातिवादी, धर्मवादी और अपराधवादी दुराग्रहों के लिए जाना जाता है| गैर जातीय राजनीति का ढिंढोरा पीटनें वाले राहुल गाँधी भी उत्तर प्रदेश  आकर यहाँ की राजनीतिक पाठशालाओं में जातिवादी बारीकियां सीखनें लगते हैं| जातिवाद का विरोध करनें के लिए ही यहाँ की मुख्यमंत्री  मायावती, अपनी बहुजन समाज पार्टी में जातिवार भाईचारा कमेटियां बनाती हैं, जैसे ब्राह्मण भाईचारा कमेटी, नाई भाईचारा, तेली भाईचारा, आदि-आदि| भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी जातिवादी गणित मजबूत करनें के लिए दूसरे प्रदेश, मध्य प्रदेश से अपनी लोकप्रिय नेता उमा भारती का आयात करती है|
       अपराधवाद तो यहाँ इस कदर हावी है कि कोई पार्टी खुलकर दावा ही नहीं कर सकती कि वह अपराधियों को अपनी चौखट पर नहीं फटकनें   देगी| अपराधियों की ताकत का अंदाज़ा आप यहाँ घटी सिर्फ एक घटना से ही लगा सकते हैं, जब राजधानी की जेल में डाक्टर सचान की नृशंस हत्या की गयी थी| यहाँ अपराधियों की ताकत जेलों से लेकर जातिवादी मेलों तक सभी जगह व्याप्त है|
     ऐसे में अन्ना आन्दोलन के साये में चुनाओं का होना यूपी की राजनीति के लिए शुभ संकेत है| बाबा रामदेव और अन्ना ऐसे दो कारक हैं, जिन्होनें भारतीय राजनीति में अपना गहरा असर छोंड़ा है| यह असर यूपी के जन-मानस पर भी पड़ा है| ऐसे में कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, यदि यूपी की जनता भी अपनें वोटों की ताकत से बिहार जैसा परिवर्तन अंगीकार कर ले|

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

इस बार का अन्ना आन्दोलन, कांग्रेस और उसकी सरकार को निपटा देगा


केंद्र सरकार और कांग्रेस नें आखिरकार फिर से अन्ना हजारे से टकरानें का साहस जुटा लिया है| सोशल नेटवर्किंग साइटों पर हजारों भाड़े के लेखकों की जमात जुटा, कांग्रेस और सरकार के चाणक्य समझ रहे हैं कि अब अन्ना का जादू चलनें से रहा| मोबाइल संदेशों को नियंत्रित कर ये सोंच रहे हैं कि अन्ना हजारे और उनकी  आवाज़ को नियंत्रित किया जा चुका है| वास्तव में अन्ना का सारा आन्दोलन सोशल नेटवर्किंग साइटों और मोबाइल संदेशों के पावों पर खड़ा हुआ था, सो सरकार नें सबसे पहले मोबाइल संदेशों पर लगाम लगाई, तदोपरांत सोशल नेटवर्किंग साइटों को भी नियंत्रित करनें का जतन किया, जिसमें उसे सफलता की जगह विफलता का दीदार हुआ|  इस बीच सरकार और कांग्रेस द्वारा प्रायोजित कीचड उछाल आन्दोलन चला कर अन्ना और उनकी टीम के सदस्यों के चेहरों की लालिमा निगलनें की भी कुत्सित कोशिशें चलती रही| इन्हीं कुटिल कुचालों की बदली से हमारी सरकार अन्ना हजारे रूपी दमकते सूर्य को ढकनें की असफल कोशिश करेगी| कोई भविष्य देख रहा हो या नहीं, परन्तु मैं आज कहे देता हूँ, इसबार के आन्दोलन का सामना यह केंद्र सरकार कतई न कर सकेगी| इस बार आन्दोलनोपरांत इस जनविरोधी और भ्रष्टाचार समर्थक सरकार और कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जायेगा...आप भी देखेंगे और हम भी| 

सुशील अवस्थी "राजन"
91 9598469860 


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

"ठण्ड..ठण्ड और ठण्ड"

     ठण्ड बढ़ रही है, मुझे हर ठण्ड में उनकी चिंता सताती है, जो लोग सड़क किनारे फुटपाथ पर रात गुजारते हैं| पर क्या करूँ दिल जितना बड़ा है, जेब उतनी ही छोटी| लेकिन राजधानी लखनऊ में हर किसी के हालात  सुशील अवस्थी जैसे नहीं हैं| यहाँ कुछ दाता-धर्मी भी रहते हैं, जिन्हें इन गरीब-गुरबों की चिंता सताती है| मुझे याद है, पिछली ठण्ड में, हमारे जिले के सत्ताधारी दल के जिलाध्यक्ष के सभी कृपापात्र चिंटूओं नें चार-चार, पांच-पांच कम्बल बटोरे थे, ये वो कम्बल थे, जिसे यूपी सरकार नें गरीबों के लिए दिए थे| इस बार भी ऐसे लोगों के गैंग चौकन्नें हैं| कुछ कम्बल वितरक भी पत्रकारों/कैमरामैनों से कब कम्बल बांटे का मुहूर्त तय करनें लगे हैं, ताकि उनके सुकर्म आम जनता तक पहुँच सके| शहर के एक सबसे बड़े अलावी पुरुष जो सांसद बनने के लिए हर बार राजधानी में सैकड़ों अलाव जलवाया करते थे, इस बार जलवाते हैं या नहीं, राजधानी के लोगों की उन पर विशेष निगाह रहेगी|

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

अन्धा बांटे रेंवडी

"अन्धा बांटे रेंवडी अपनों को ही देय" कहावत उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री महामान्नीय नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर एकदम फिट बैठ रही है| श्रीमान जी पर आरोप लगे हैं कि प्रदेश के गरीब किसानों को दिए जानें वाले अनुदानित ट्रैक्टर उन्होंने अपनें सगे सम्बन्धियों में बाँट दिए| एक और कैबिनेट मंत्री चन्द्र देव जी की भी महानता आजकल सुर्ख़ियों में है| इन महानुभाव नें मंत्री पद पर रहते हुए एक सरकारी विद्यालय के प्रधानाचार्य पद का भी निरंतर मानदेय उठाया| २००७ से अब तक मज़ा उठा रहे माननीय पर अब तक किसी की नज़र न पड़ना भी कम आश्चर्य जनक नहीं है| अब जब यूपी में चुनाओं की धमक साफ़ सुनी जा रही है, तब इस मामले का प्रकाश में आना पूर्णतया राजनीतिक द्वेष की ही भावना दर्शाता है| इन पर सरकार बननें के साल भर के अन्दर ही कार्यवाही की जा सकती थी| 

भारत-अमेरिका निकट आयें

     पाकिस्तान  और अमेरिका की यारी में अब दरार पड़ चुकी है| यह दरार आनें वाले दिनों में और चौड़ी होगी| कारण, बदली हुई परिस्थितियों में दोनों को अब एक दूसरे की जरुरत का न होना है| अमेरिका नें जिस दिन पाकिस्तान में घुसकर लादेन वध किया था, उसी दिन उसका राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल हो गया था| पाकिस्तान  का राष्ट्रीय लक्ष्य था रईश अमेरिका की जेब से गिरते डालर बटोरना, और एक विश्व दरोगा से यारी कर, अपनें परम्परागत शत्रु भारत पर दबाव बनाये रखना| पकिस्तान को बदली परिस्थितियों में अपना लक्ष्य पूरा होते हुए नहीं दिख रहा था, इसलिए उसनें दुनिया के दूसरे  उभरते दरोगा चीन से गलबहियां कर ली| अमेरिका भी इस बदनाम दोस्त से निजात पानें की ही फिराक में था| भारत, पाकिस्तान और चीन दोनों का दुश्मन है, सो दुश्मन का दुश्मन यानि दोस्त, वाले फार्मूले पर दोनों दोस्ती की पींगे मार रहे हैं|
     ऐसी परिस्थितियों में भारत-अमेरिका को और पास आनें की जरुरत है| हमें यह समझनें की जरुरत है कि लाख आर्थिक संकटों के बावजूद, अमेरिका आज भी दुनिया की एकमात्र महाशक्ति है,  जबकि चीन संभावित महाशक्ति| यदि आज भारत-अमेरिका हाथ मिला लें, (जिसकी प्रबल संभावना है) तो न चीन दुनिया की महाशक्ति बन सकेगा, और न ही पकिस्तान भारत से अपनी शत्रुता निभा पायेगा| आर्थिक संकटों से घिरे अमेरिका को हम सहारा दे सकते हैं, तो दुनिया के शक्तिशाली मंचों और संगठनों तक वह अपनें प्रभाव का इस्तेमाल कर हमें सम्मानजनक स्थान| अब तो ऐसा ही होनें के प्रबल आसार हैं|

"यूपी का नक्कारखाना"

     उत्तर प्रदेश में चुनावी दुन्दुभी की आवाज़ दिन-ब-दिन तेज़ होती जा रही है| पिछले कुछ एक वर्षों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आयीं सैकड़ों राजनैतिक पार्टियाँ, जब एक साथ अपनें-अपनें चुनावी नगाड़ों पर प्रदेश हित की थाप मारेंगी, निश्चय ही तब पूरा का पूरा प्रदेश एक भयंकर नक्कारखानें  में तब्दील हो जायेगा| राजनैतिक दलों के इस कान फोडू नक्कारखानें में कोई तूती (जनता) की आवाज़ नहीं सुनना चाहेगा| फिलहाल अभी तो हम यूपी वासियों के कानों तक कुछ बड़े नामी-गिरामी नक्कारों की मंद-मंद, प्रदेश हित  राग पर आधारित, कर्णप्रिय ध्वनियाँ पहुँच रही है|
    सबसे बड़ा नगाडा है कांग्रेस का, जिसके प्रमुख नगाड़ेबाज़ है,मास्टर राहुल बाबा| प्रमुख सहयोगी साजिंदों में हैं, दिग्विजय सिंह, रीता जोशी, प्रमोद तिवारी, जितिन प्रसाद आदि अनादि| अभी कुछ दिन पूर्व इलाहाबाद के झूंसी क्षेत्र में, इन स्वनाम धन्य महाकलाकारों नें प्रदेश की जनता के मनोरंजनार्थ एक महाकार्यक्रम  का आयोजन किया था| इस कार्यक्रम के मास्टर राहुल बाबा को कुछ नए सपाई साजिन्दे अपनी ढपली की धुन सुनानें उनके उड़नखटोले तक पहुँच गए,फिर क्या था, राहुल बाबा के सहयोगी साजिंदों नें उन नवोदित सपाई ढपली वादकों के सारे शरीर को ही नगाडा समझ, ऐसी-ऐसी मातमी धुनें निकाली कि पूंछो मत| अब ऐसे कार्यक्रम निरंतर चलते ही रहेंगे| कल सपाई नगाड़े के वृतान्त्र के साथ फिर हाज़िर होऊंगा, तब तक के लिए मुझ नाचीज़ सुशील अवस्थी "राजन" को आज्ञा दीजिये ....नमस्कार| 

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

यूपी पुलिस की मर्दानगी

आज सुबह- सुबह अमर उजाला अखबार में यह फोटो देखकर मै दंग रह गया| अंग्रेजों की जुल्म ज्यादती भी इन देशी अंग्रेजों के सामनें शर्मा जाये| जिस जनता की गाढ़ी कमाई से इन नौकरों की तनख्वाह आती है, ये उसी पर जूते चला रहे हैं| ये उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही नहीं, अधिकारियों की मानसिकता का फोटो है| अभी कुछ महीनें पहले यही कारनामा राजधानी के पुलिस प्रमुख डी.के. ठाकुर जी कर चुके हैं| जब सपा कार्यकर्ता आनंद भदौरिया को एक आन्दोलन के दौरान अपनी बूटों तले रौंदा था|



मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

"बंदूक वाला अन्ना"

   (सुशील अवस्थी "राजन" ) झक सफ़ेद धोती-कुर्ता  और  सर पर  गाँधी टोपी वाले अन्ना हजारे से तो हम सभी वाकिफ हैं, लेकिन क्या आप किसी बंदूक वाले अन्ना को जानते हैं?  बाराबंकी जनपद में हैदरगढ़ तहसील  के त्रिवेदीगंज ब्लाक अंतर्गत एक गाँव है नरेन्द्र पुर, मदरहा| इसी गाँव में एक सज्जन निवास करते हैं, डाक्टर रामकृष्ण त्रिपाठी, जिन्हें सारा गाँव बंदूक वाले  अन्ना के नाम से जानता है| श्री त्रिपाठी की वेश-भूषा के ही कारन उनका नाम बंदूक वाले अन्ना के रूप में दूर-दूर तक प्रचारित हो चुका है| सर पर, मैं हूँ अन्ना लिखी गाँधी टोपी और हाँथ में बंदूक लिए रामकृष्ण जी अपनी दैनिक दिनचर्या के काम तो निपटते ही हैं, साथ ही अन्ना के विचारों और कार्यों को भी अपनी साईकिल से गाँव-गाँव घूमकर प्रचारित और प्रसारित करते हैं|




बातचीत में रामकृष्ण जी कहते हैं कि क्षेत्र में भ्रष्टाचारियों के ग्रुप काफी सशक्त हैं, इसीलिये अपनी रक्षा के लिए ही मैं हथियार धारण किये हूँ| इन ताकतवर भ्रष्टों से निपटनें के लिए भय और प्रीति दोनों की जरुरत है| अन्ना टोपी जहाँ लोगों को देश के प्रति प्रीति सिखाती है, वहीँ हथियार इन देशी पापियों को सबक देता है| त्रिपाठी अन्ना हजारे से मुलाकात को लेकर काफी भावुक हो जाते हैं, और कहते हैं कि एक न एक दिन मेरी मुलाकात अन्ना हजारे से जरुर होगी| फिलहाल आप चाहें तो बंदूक वाले अन्ना से उनके मोबाइल 09794415698  पर संपर्क स्थापित कर सकते हैं|  



रविवार, 11 दिसंबर 2011

अन्ना की हुंकार बनाम कांग्रेसी चीख पुकार



     आखिरकार अन्ना हजारे को सरकार पर दबाव बनाने के लिए फिर से मैदान में आना ही पड़ा| अपनें एक दिनी उपवास से हजारे नें देश की "धक्का पलेट" केंद्र सरकार को दिखा दिया कि कांग्रेस और सरकार के तमाम वरिष्ठ मंत्रियों के कीचड उछाल आन्दोलन के बाद भी उनमें और उनकी टीम में इतनी ताकत बची है, जिससे कांग्रेस को कब्र तक पहुचाया जा सके|
    फिलहाल तो कांग्रेसी "हठयोग" टूटनें के कहीं कोई आसार नहीं दिख रहे हैं| अगर उधर अन्ना दिल्ली में कांग्रेस और राहुल के विरुद्ध महासमर की हुंकार भर रहे हैं, तो कांग्रेसी युवराज राहुल गाँधी यूपी में अपनें प्रत्याशियों को चुनावी महासंग्राम में फतह के गुर सिखा रहे हैं| मतलब साफ़ है कि कांग्रेस को अन्ना के उपवास की कहीं कोई फिक्र नहीं है|
      आम आदमी का मानना है कि कांग्रेस नें खुद ही आत्मघाती राह चुनी है| जन लोकपाल पर कांग्रेस के उदासीन रुख नें जनता में यह सन्देश भी दिया है, कि हो न हो आज़ादी के बाद से अब तक देश में चले अघोषित लूट आन्दोलन का नेतृत्व हमेशा ही कांग्रेसी दिग्गजों के ही पास रहा है, इसीलिये यह पार्टी जन लोकपाल से डरती है| मजबूत लोकपाल लाये बगैर कांग्रेस देश के किसी भी कोनें में, कोई भी आम चुनाव आत्मविश्वास पूर्वक नहीं लड़ पायेगी, फिलहाल तो यही एक बात कांग्रेस को समझनें की जरुरत है, जो यह पार्टी नहीं समझना चाह रही है|

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

"त्रिपाठी मिष्ठान्न"

लखनऊ में रहनें वाले अधिकांश लोग "त्रिपाठी मिष्ठान्न" के नाम से वाकिफ हैं| ये कोई बहुत बड़ा नाम नहीं है, लेकिन मध्य वर्ग के लोगों के लिए यह नाम विश्वास और शुद्धता का प्रतीक है| जहां किसी भी खानें-पीनें वाली वस्तु के दाम आसमान नहीं छूते हैं, बल्कि आम आदमी की पहुँच में होते हैं| नगर में ही आशियाना स्थित त्रिपाठी मिष्ठान्न नें कुछ एक वर्षों में ही अपनी अलग पहचान बनाई है| आज से   वही त्रिपाठी मिष्ठान्न रुचिखंड में भी मौजूद होगा| आज इसी दुकान की सादगी पूर्ण ओपनिंग थी| फिलहाल मेरा ब्लॉग पढ़कर वहां जानें वालों को मेरा नाम बतानें पर एक महीनें तक विशेष छूट दी जाएगी| आप चाहें तो श्रीमान देवेन्द्र त्रिपाठी जी से उनके मोबाइल (9455252628)पर संपर्क कर इस विशेष छूट के बारे में कन्फर्म कर लें|




छोटी शुरुआत को, बड़ा स्वरूप देनें के सपनें से लबरेज़ देवेन्द्र त्रिपाठी




उदघाटन के अवसर पर प्रसाद ग्रहण करते भाजपा प्रदेश कार्य समिति सदस्य, श्री प्रमोद बाजपेई



शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

"जय माता दी"


     मै आज माता चन्द्रिका देवी के मंदिर गया था| उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बक्शी तालाब कस्बे से १०-12 किलोमीटर दूर स्थित माता चन्द्रिका देवी के इस मंदिर की महिमा दूर-दूर तक विख्यात है| आइये आप भी दर्शन कर श्रद्धा पूर्वक मेरे साथ प्रेम से बोलिए जय माता दी|


लोगों के मन की मुराद पूरी करनें वाली यही हैं माता चंद्रिके|



               पास ही है पंचमुखी हनुमान गढ़ी, यहाँ भी दर्शन कर बजरंगी कृपा ग्रहण करिए|

                                          मनोरम  द्रश्य जो आपके मन को प्रफुल्लित करेंगे|


                                            माता का रंग मेरे ऊपर पूरी तरह चढ़ चुका था|



                                                                      भव्य प्रवेश द्वार

                                                                 कुत्तों से मुक्ति जरुरी है|

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

जनता तय करे, उचित या अनुचित

     
        उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का चेहरा काफी बदल चुका है| नवाबों का लखनऊ अब माया के लखनऊ में तब्दील हो चुका है| तकरीबन पिछले पांच सालों में शहर का कोई ऐसा प्रमुख चौराहा व पार्क नहीं बचा है, जो हमारी मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी के निर्माण कौशल से अछूता रह गया हो| निःसंदेह प्रमुख चौराहों की सुन्दरता निखर उठी है| प्रायः संध्या कालीन बेला में उच्च वर्ग के परिवार इन निर्माणों के आस-पास, अपनी दिन भर की थकान उतारते और अपनें महंगे कैमरों के फ्लस चमकाते दिख जाते हैं|
     माया के इन निर्माणों को लेकर  विरोधी प्रायः उन पर तंज कसते रहते हैं, फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है, कि इन स्मारकों पार्कों और मूर्तियों की भव्यता नें लखनऊ को एक नई पहचान दी है| परन्तु एक पिछड़े प्रदेश की सरकार द्वारा किसी एक मद पर इतनें ज्यादा खर्च करनें को लेकर विरोधियों की आपत्ति को किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अनुचित नहीं कहा जा सकता|
     मुझे तो लगता है कि तब, जब उत्तर प्रदेश २०१२ में विधान सभा चुनाओं का सामना करनें जा रहा है, विरोधी पार्टियों को मायावती पर व्यक्तिगत हमले न कर इस मुद्दे को जनता के बीच ही ले जाना चाहिए, ताकि जनता तय करे कि हमारी वर्तमान सरकार नें उचित किया या अनुचित|

सुशील अवस्थी "राजन" मोबाइल- 09598469860



मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

" रोना मना है "


     मेरे गाँव में एक कहावत है कि " जबरा मारय  रोवै न देय " यह उक्ति हमारी अपनी केंद्र सरकार पर एकदम ठीक बैठती है| लम्बी चुप्पी के बाद बडबोले कपिल सिब्बल अपनी पुरानी लय पकड़ते हुए बोले हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आपत्तिजनक बातें की जा रही हैं|
    हमारी सरकारें आपत्ति जनक कार्य कर सकती है लेकिन हम-आप कोई आपत्तिजनक बात भी नहीं कर सकते| हमारी आपकी इन्ही आपत्तिजनक बातों से अन्ना हजारे का आन्दोलन खड़ा हो गया था| जिसनें केंद्र सरकार के सामनें बड़ी विपत्ति खड़ी कर दी थी| फिर कहीं हमारी-आपकी बातों से ऐसी कोई विपत्तिजनक स्थिति न पैदा हो जाय, सरकार के संकट मोचक इसी के निदान में दिन रात एक किये हुए हैं| 
     फिलहाल हमें आपको अपनें विचार व्यक्त करते समय शालीन शब्दों और चित्रों का ही इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि विचार अभिव्यक्ति पर नकेल डालनें वालों को, हमारी अभिव्यक्ति की आज़ादी से खिलवाड़ करनें का कोई मौका न मिले| आम आदमी को इतने बड़े लोकतान्त्रिक भवन  (देश) में अपनें आंसू टपकानें के लिए सोशल नेटवर्किंग साइटों के रूप में एक कोना मुहैया हुआ है, जिसे हमें आपको बचाकर रखना ही होगा| 

रविवार, 4 दिसंबर 2011

ऐसा क्यूँ ?

        उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मार्ग, एअरपोर्ट से मुख्यमंत्री आवास तक जानें वाली रोड है, जो कि वी.आई.पी. रोड कहलाती है| आये दिन हमारे सूबे की मुखिया इसी मार्ग का इस्तेमाल करती हैं| जिस कारण यह रोड सजा संवार कर रखी जाती है| धुली-पुंछी इस रोड पर फर्राटे भरनें का अपना अलग मज़ा है| लेकिन यही मज़ा तब सजा बन जाती है, जब सुश्री बहन जी का काफिला इस मार्ग पर अपनी शानों-शौकत से गुजरता है| उनके आगमन से पूर्व सभी आनें-जानें वालों को अपनी गति पर विराम जो लगाना होता है| कभी-कभी यह विराम इतना लम्बा हो जाता है कि आम आदमी घंटों जाम में ही फंसा रहता है| कहनें को तो प्रशासन कहता रहता है, कि ५ मिनट से ज्यादा आवागमन नहीं रोका जाता है, लेकिन सच्चाई एकदम इसके विपरीत है| आज आपके सामनें इसी महत्वपूर्ण मार्ग पर पड़नें वाले बाराबिरवा चौराहे के दो चित्र, मैं आपके सामनें प्रस्तुत कर रहा हूँ|पहला  जब सुश्री जी इस मार्ग से नहीं गुजरी थी, तब सड़क कितनी सुगम थी| फिर दूसरा चित्र उनके काफिले के गुजर जानें के बाद लगे भीषण जाम का है| जिसमें आम आदमी संघर्ष कर रहा है| यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें एक विशिष्ट के लिए इतना ताम-झाम, लेकिन हम बहुत सारे लोगों के लिए कुछ भी नहीं, ऐसा क्यूँ ? 





शनिवार, 3 दिसंबर 2011

"बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं"

बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं.... किसी नें यूँ ही नहीं कहा| दुनिया से आगे निकल जानें की हमारी आपकी जिद और जद्दो-जहद नें हमारी आपकी निश्छलता छीन ली, वर्ना हम भी धरती पर ऐसी ही मुस्कान लेकर आये थे| यकीन न हो तो एक बार अपनें बचपन की कोई पुरानी फोटो निकाल कर उसे निहारिये| आप जान जायेंगे कि  पिछले कुछ वर्षों में आप कितना बदल गए हैं| इस बदलाव को क्या हम अपना उत्थान कहेंगे? 









 

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

" इतना सन्नाटा क्यों है भाई "

      कोई समय था, जब यूपी की राजधानी लखनऊ में, विधान भवन के ठीक सामने स्थित दारुलशफा प्रांगन जिंदाबाद और मुर्दाबाद के गगन भेदी नारों से गुंजायमान रहता था| दारुलशफा जो कि विधायक निवास के रूप में जाना जाता है| विधान भवन के ठीक सामनें वाले गेट से प्रवेश करते ही आज ख़ाली पड़ा स्थान कभी धरना स्थल के रूप में जाना जाता था, जहाँ से उठी विरोधियों की जबरदस्त आवाज़ की गूँज, कभी-कभी विधान भवन के अन्दर तक सुनाई पड़ती थी| आज जब मै उधर से गुजरा तो वहां पसरी ख़ामोशी हमसे बीसियों सवाल पूंछ गयी| उनमें मुख्य सवाल यही था कि, क्या सत्ताधारी दलों की सुननें की क्षमता ख़त्म हो चुकी है? शायद सत्ताधारी दल अब विरोध भरी आवाज़ के बजाय चाटुकारिता भरी मीठी बातें ही सुनना पसंद करते हैं|





योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...