शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
शनिवार, 25 अगस्त 2012
रायबरेली से सोनिया हारी,........... नें बाज़ी मारी
रायबरेली को देश दुनिया के लोग वी0आई0पी0 क्षेत्र के रूप में जानते हैं। क्योंकि यहाँ से सोनिया गाँधी जो सांसद है। बाहरी दुनिया के लोग यह समझते होंगे कि रायबरेली खूब विकसित होगा। लेकिन जब आप यही सवाल यहाँ के बाशिंदों से करेंगे, तब हकीकत स्वतः आप के सामनें आ जायेगी। विकास की हालत का तो आप सिर्फ इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं, कि यहाँ की सड़कें बद से बदतर हालत में हैं। बिजली-पानी-स्वास्थ्य की तो बात करना ही बेकार है।
अब यहाँ के लोगों को एहसास हो रहा है कि श्रीमती सोनिया जी को चुनकर शायद उन्होंने बड़ी गलती की है। रायबरेली से इन्हौना की सड़क की दुर्दशा से आक्रोशित सेमरौता निवासी राजेश तिवारी कहते हैं कि "सोनिया जी बतौर सांसद तो मुझे नाम बड़े और दर्शन थोड़े जैसी लगनें लगी हैं" खेखरुआ के पास स्थित कदरिया गाँव के देवनारायण मिश्र कहते हैं कि भैया कुछ भी कहना बेकार है, इस बार लोकसभा चुनाव में मेरा वोट ही सोनिया जी को जवाब देगा।
बछरावां के सुभाष मिश्र तो इतनें आक्रोशित दिखे कि उन्होंने कहा कि "हम लोगों नें लगातार दो बार सोनिया जी को चुनकर बाहरी व्यक्ति पर जो भरोसा किया है, सभी उसी की सजा भुगत रहे हैं, इस बार यह गलती तो बिलकुल भी नहीं की जाएगी" यही के नीमटीकर गाँव निवासी उमेश चौधरी कहते हैं कि "सोनिया जी नें बतौर सांसद क्या किया है, मैं तो नहीं जानता, कोई जानता हो तो मुझे बताये " लालगंज के श्रृष्टि श्रीवास्तव के अनुसार "हम सब एक परिवार के इमोशनल फैमिली ड्रामें से आजिज़ आ चुके हैं"
मैं खुद रायबरेली का ही निवासी हूँ, कुल मिलाकर इतना कह सकता हूँ, कि हो सकता है कि इस बार जब लोकसभा चुनाओं के परिणाम आ रहे हों, तो एक ब्रेकिंग न्यूज़ सारी दुनिया को विस्मित कर दे कि " रायबरेली से सोनिया हारी,........... नें बाज़ी मारी "
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
प्रेम भूषण जी द्वारा रामकथा
लखनऊ, 24 अगस्त, आज रामकथा में काफी भीड़ उमड़ी थी। पूरा बलराम पुर गार्डेन रामभक्तों की भीड़ से अटा पड़ा था। महराज श्री प्रेम भूषण जी नें अपनी ओज पूर्ण वाणी से चित्रकूट में हुए राम-भरत मिलाप का मानों सजीव चित्रण सा कर दिया। रामायण को सिर्फ पढ़नें की नहीं बल्कि अपनानें की जरुरत है। किसी परिवार में यदि भाइयों में भरत,राम,लक्ष्मण,शत्रुघ्न जैसा आपस में प्यार हो, तो समझो उस परिवार नें रामायण को अंगीकार कर लिया है। बजाय उनके जो दिन भर रामायण तो पढ़ें, मगर भाई-भाई में आपस में कटुता और वैमनस्यता भरी हो। कल महराज श्री शबरी प्रसंग अरण्यकाण्ड में प्रवेश करेंगे। पंडाल में बैठकर अपनें मोबाइल कैमरे से कुछ दृश्य मैनें उतारे हैं, कृपया दृष्टि प्रदान करें।
बुधवार, 22 अगस्त 2012
मुलायम और अखिलेश की "जनहित" परिभाषा जुदा-जुदा
उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार आये ठीक-ठाक समय बीत चुका है, लेकिन मा0 मुख्यमंत्री जी द्वारा अभी तक कोई भी विशेष कार्य नहीं किया गया, जिससे कहा जा सके कि यह युवा मुख्यमंत्री अपनें पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों से बिलकुल जुदा है। जबकि इन महोदय के शपथ ग्रहण के समय उत्तर प्रदेश के आम जन मानस में यही भावना आम थी कि यह युवा सी0एम्0 ज्यादा रचनात्मक होगा। लेकिन अब आम आदमी अपनें इस युवा नेता से निराश हो रहा है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के भावी लक्ष्य 2014 पर असर पड़ना लाज़मी है। इस सरकार पर सबसे ज्यादा तोहमत इस बात पर है कि यह कोई जनहित का निर्णय नहीं ले पाती, साहस कर कोई निर्णय ले भी लेती है तो पलटी मारते टाइम नहीं लेती। हाल में इस सरकार द्वारा निर्णय लेकर पलट जानें से काफी उसकी काफी फजीहत हुई थी। पार्टी नें इस पलट्बाज़ी को "जनहित को देखते हुए" का नाम दिया था। सवाल यह है कि निर्णय लेते समय क्या "जनहित" का ध्यान नहीं रखा गया था? या फिर सरकार और पार्टी की "जनहित" परिभाषा भिन्न-भिन्न है।
देखनें में यह आता है कि सत्ता के लिए सड़क पर संघर्ष करते समय अधिकतर पार्टियों की जनहित की परिभाषा कुछ और होती है, लेकिन सत्ता ग्रहण करते ही यह पार्टियाँ सबसे पहला काम यही करती हैं, कि अपनी जनहित की परिभाषा में बदलाव कर देती हैं। कही ऐसा तो नहीं मा0 अखिलेश जी नें भी अपनी जनहित की परिभाषा बदल ली हो? हालाँकि मा0 मुलायम सिंह जी की जनहित परिभाषा में अभी कोई ज्यादा छेंड-छांड नहीं हुई है। क्योंकि उन्हें अभी दिल्ली सिंहासन तक पहुंचनें के लिए सडकों पर संघर्ष जो करना है। जनहित की इसी परिभाषा का मतभेद अक्सर अखिलेश और मुलायम के बयानों में दिखता भी है, जब मुलायम सिंह अपनें पुत्र की सरकार की कार्य प्रणाली पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सभी मंत्रियों को आये दिन हिदायते जारी करते हैं।
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
महंगाई मुबारक हो
मेरी समझ से महंगाई और भ्रष्टाचार देश के समक्ष दो बड़ी समस्याएं हैं, जिनसे आम आदमी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है। केंद्र सरकार चला रही कांग्रेस पार्टी चुनावों के समय खुद को आम आदमी की पार्टी कहते नहीं थकती है, नारा देती है, "कांग्रेस का हाँथ, आम आदमी के साथ" लेकिन आम आदमी को व्यथित कर रहे इन दोनों मुद्दों को हल करनें में कांग्रेस पूरी तरह से विफल रही है। अब तो केंद्र सरकार के बेशर्म मंत्री महंगाई के फायदे गिनानें की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में शामिल हो चुके हैं। अभी कुछ दिन पूर्व बेशर्म केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा नें देशवासियों को महंगाई की मुबारकबाद देते हुए कहा है कि "महंगाई से किसानों को फायदा हुआ है" मैं भी किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूँ, महंगाई से मुझे क्या फायदा हुआ है, मैं तो आज तक नहीं समझ पाया। क्या मंत्री जी मुझे समझा सकेंगे, कि महंगाई से मुझे क्या और कैसा फायदा हुआ है?
रविवार, 19 अगस्त 2012
आओ पार्टी-पार्टी खेलें
आज मुझे मेरे एक फेसबुकिया मित्र पंकज दविवेदी नें एक मीटिंग के सिलसिले में बुलाया था। जाकर मालुम पड़ा कि वह श्रीमान जी एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनकी पार्टी का नाम है, राष्ट्रीय साम्यवादी आर्यन पार्टी, जो मुझे पूर्णतया घोर हिंदूवादी पार्टी लगी। उनके राष्ट्रीय पदाधिकारियों के विचारों का जोश देखकर लगा कि मानों पार्टी बनाना और चलाना अब बच्चों का खेल सा हो गया है। आपस के चालीस पचास यार दोस्त एक जुट हुए और बन गयी पार्टी। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर मोहल्ले की अपनी एक पार्टी होगी। वास्तव में कुछ लोग पार्टी बनाना और चलाना बहुत आसान काम समझते हैं। मैं पंकज जी व उनकी टीम को हतोत्साहित नहीं करना चाहता, परन्तु इतना जरुर कहना चाहता हूँ कि पार्टी बनाना जितना आसान है, चलाना उतना ही कठिन।आप सब क्या सोंचते हैं? अपनें विचार अवश्य रखें।
आपका अपना-
सुशील अवस्थी "राजन" मोबाइल -9454699011शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
अखिलेश और माया सरकार में कोई खास फर्क नहीं
उत्तर प्रदेश की जनता नें बड़ी आस और उम्मीदों से बहुजन समाज पार्टी के स्थान पर समाजवादी पार्टी की सरकार स्थापित की थी, लेकिन माया सरकार और अखिलेश सरकार के कामकाज में कोई खास फर्क नहीं नज़र आता है। माया सरकार के लुटेरे IAS अधिकारी प्रदीप शुक्ल को दोनों सरकारें एक जैसा ही संरक्षण प्रदान कर रही हैं। मूर्तियों की स्थापना को जो समाजवादी पार्टी निरर्थक कार्य बताया करती थी, खुद उसनें ही मायावती की मूर्ति स्थापना में जो तत्परता दिखाई, वह तो तत्परता तो माया सरकार में भी नहीं थी। माया सरकार के अनेंकों घोटालों को एक समय खोलनें में लगी रही अखिलेश सरकार प्रदेश की जनता को यह बता पानें में आज भी अक्षम है कि कितनें घोटालेबाजों को सजा मिली।
रविवार, 5 अगस्त 2012
पीएम पद की रेस से मोदी बाहर
नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [एनडीए] में प्रधानमंत्री पद को लेकर खींचतान तेज हो गई है। अभी तक इशारों ही इशारों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का विरोध करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब खुलकर मोदी के खिलाफ उतर आए हैं। नीतीश ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से आश्वासन मागा है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार न बनाया जाए। बताया जाता है कि नीतीश और गडकरी की 25 जुलाई को गुप्त बैठक हुई थी।
गडकरी ने नीतीश को भरोसा दिया है कि एनडीए में विचार-विमर्श के बाद ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर फैसला होगा। गडकरी ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नीतीश के साथ मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर चर्चा हुई थी। गडकरी ने बताया कि एक हफ्ते पहले दिल्ली में बैठक हुई थी। बैठक के दौरान बताया गया कि भाजपा ने अभी पीएम पद को लेकर कोई फैसला नहीं किया है। नेतृत्व पर फैसला अभी जल्दबाजी होगी। जब कभी फैसला लेंगे, उससे पहले एनडीए में शामिल दलों से विचार-विमर्श जरूर किया जाएगा।
शनिवार, 4 अगस्त 2012
"राजनैतिक विकल्प"
अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के "राजनैतिक विकल्प" परिवर्तन नें आजकल मेरे मन मष्तिष्क व्यग्र कर रखा है। मन पूंछ रहा है की क्या अन्ना और उनकी टीम नें ऐसा कर उचित किया या अनुचित ? यदि अन्ना आन्दोलन राजनैतिक दल बना तो क्या भारतीय जनता वोट से भी उनकी मदद करेगी ? क्या अन्ना पार्टी भारतीय राजनीती के अखाड़े में धनबल, बाहुबल, जातिबल, धर्मबल, अपराधबल के दम पर टिकी हमारी राजनैतिक पार्टियों का सामना कर सकेगी?
किसी भी आन्दोलन का राजनैतिक हो जाना कोई गैर क़ानूनी कार्य तो नहीं ? अगला सवाल राजनैतिक सफलता या असफलता की अटकलों पर आधारित है, हो सकता है की अन्ना का राजनैतिक विकल्प का प्रयास असफल ही साबित हो जाये, तो क्या इसी भय से कोई सकारात्मक कार्य करनें से बचा जाय । यूँ तो दीपक पर सदा रात भारी रही, पर उजाले के लिए जंग जारी रही" तर्ज़ पर क्या हमें अन्ना और उनकी टीम का समर्थन नहीं करना चाहिए ?
गुरुवार, 2 अगस्त 2012
अन्ना की राजनैतिक पार्टी
अन्ना हजारे के लोग शीघ्र हम आपसे वोट मांगते नजर आयेंगे। संभावना ऐसी है की 2014 के लोकसभा चुनाओं में ही हमें एक नयी राजनैतिक पार्टी का विकल्प मिल जाये। आज जंतर-मंतर से अन्ना टीम नें देशवासियों से नयी राजनैतिक व्यवस्था के लिए राय मांगी है। इससे लगता है की अन्ना टीम राजनैतिक पार्टी बनानें को लेकर एकमत हो चुकी है, बस जनता की मांग के नाम पर उसको स्थापित करनें की औपचारिकता का निर्वहन करना मात्र शेष है।
इसमें कोई दो राय नहीं है, की अन्ना की पार्टी चल निकलेगी। देश की वर्तमान राजनैतिक पार्टियों से लोगों का मोहभंग हो चूका है, यह आज का सबसे बड़ा राजनीतिक सच है। यही मोहभंग अन्ना और उनकी पार्टी को आसानी से सत्ता सिंहासन पर विराजमान करा सकता है। वैसे भी यही राजनैतिक ट्रेंड चल रहा है की, जिससे ऊब जाओ उसको हटाओ भले ही जिसको लाओ वह सत्ता के लायक हो या न हो। जैसे माया से ऊबी यूपी की जनता अखिलेश को ले आयी, भले ही वह माया सरकार के एजेंडे पर काम करें। माया मूर्तियाँ स्थापित कर रही थी अखिलेश भी माया की मूर्तियाँ स्थापित करनें लगे।
अनशन खत्म करें टीम अन्ना : अनुपम
नई दिल्ली। फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने भी अन्ना हजारे से अनशन तोड़ने की अपील की है। गुरुवार को जंतर-मंतर के मंच पर पहुंचे अनुपम खेर ने टीम अन्ना से अनुरोध किया है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन सबको अपना अनशन खत्म कर लेना चाहिए, वरना हालात और बेकाबू हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना हम सबका फर्ज है।
गौरतलब है कि टीम अन्ना के नौ वां दिन है और टीम अन्ना का हौसला बढ़ाने के लिए मंच पर अभिनेत्री अचर्ना चौधरी भी पहुंच गई है। जहां एक तरफ अनशनरत केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय की तबीयत बिगड़ती ही जा रही है। ऐसे में दिल्ली पुलिस ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दे डाली है।
बीती रात पीएम व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर के बाहर प्रदर्शनकारी अन्ना समर्थकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
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