बुधवार, 22 अगस्त 2012

मुलायम और अखिलेश की "जनहित" परिभाषा जुदा-जुदा


   उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार आये ठीक-ठाक समय बीत चुका है, लेकिन मा0 मुख्यमंत्री जी द्वारा अभी तक कोई भी विशेष कार्य नहीं किया गया, जिससे कहा जा सके कि यह युवा मुख्यमंत्री अपनें पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों से बिलकुल जुदा है। जबकि इन महोदय के शपथ ग्रहण के समय उत्तर प्रदेश के आम जन मानस में यही भावना आम थी कि यह युवा सी0एम्0 ज्यादा रचनात्मक होगा। लेकिन अब आम आदमी अपनें  इस युवा नेता से निराश हो रहा है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के भावी लक्ष्य 2014 पर असर पड़ना लाज़मी है। इस सरकार पर सबसे ज्यादा तोहमत इस बात पर है कि यह कोई जनहित का निर्णय नहीं ले पाती, साहस कर  कोई निर्णय ले भी लेती है तो पलटी मारते टाइम नहीं लेती। हाल में इस सरकार द्वारा निर्णय लेकर पलट जानें से काफी उसकी काफी फजीहत हुई थी। पार्टी नें इस पलट्बाज़ी को "जनहित को देखते हुए" का नाम दिया था। सवाल यह है कि निर्णय लेते समय क्या "जनहित" का ध्यान नहीं रखा गया था? या फिर सरकार और पार्टी की "जनहित" परिभाषा भिन्न-भिन्न है। 
   देखनें में यह आता है कि सत्ता के लिए सड़क पर संघर्ष करते समय अधिकतर पार्टियों की जनहित की परिभाषा कुछ और होती है, लेकिन सत्ता ग्रहण करते ही यह पार्टियाँ सबसे पहला काम यही करती हैं, कि अपनी जनहित की परिभाषा में बदलाव कर देती हैं। कही ऐसा तो नहीं मा0 अखिलेश जी नें भी अपनी जनहित की परिभाषा बदल ली हो? हालाँकि मा0 मुलायम सिंह जी की जनहित परिभाषा में अभी कोई ज्यादा छेंड-छांड नहीं हुई है। क्योंकि उन्हें अभी दिल्ली सिंहासन तक पहुंचनें के लिए सडकों पर संघर्ष जो करना है। जनहित की इसी परिभाषा का मतभेद अक्सर अखिलेश और मुलायम के बयानों में दिखता भी है, जब मुलायम सिंह अपनें पुत्र की सरकार की कार्य प्रणाली पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सभी मंत्रियों को आये दिन हिदायते जारी करते हैं।

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