गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

चिड़ियाघर में एक दिन

     कल हम लखनऊ के चिड़ियाघर गए थे| मेरी २० महीनें की प्यारी बिटिया रिशिका को बड़ा मज़ा आया| हम सोंच रहे थे,कि खूंखार जंगली जानवरों को देख कर वह ज्यादा खुश होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उसे वहां जो चीज़ सबसे ज्यादा पसंद आयी वह था हवाई जहाज़| बड़ी देर तक वह उसे निहारती रही| जब तक वह जहाज़ देख रही थी,मै उसके चहरे पर उभर रहे भावों को पढ़नें की कोशिश कर रहा था| बच्चों के सोंचनें-समझनें का तरीका हम बड़ों से कितना जुदा होता है| हालाँकि उसकी तबियत ठीक नहीं थी, फिर भी वह खुश थी, वह खुश थी इसलिए मै भी खूब ख़ुश था|
    पिछले १२ सालों से मै उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रह रहा हूँ लेकिन चिड़ियाघर नहीं जा पाया था| मेरी प्यारी बिट्टू नें कल मुझे यह सुअवसर उपलब्ध कराया| सारा दिन घोड़े की तरह टक-टक दौड़ के बीच इस छोटे से भ्रमण नें क्या सुकून और शांति दी, बखान कर पाना मुश्किल है| आप लोगों से भी गुजारिश है कि अपनी व्यस्तता से थोडा समय अपनें परिवार के साथ   खर्च कर देखिये बड़ा मज़ा आएगा| वह मज़ा जिसके दाम या मूल्य नहीं तय किये जा सकता| मतलब अनमोल...मज़ा|

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