शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

" मन का मन "

मन के मन को जानना,
और उसे पहचानना,
बहुत कठिन है यार|
कभी बहुत खुश,
कभी दुखी है,
कारन का कुछ पता नहीं है,
कभी वहां है कभी यहीं है,
मन की गति का पता नहीं है,
मन की मन-मन,
सुननेवाला,
व्यग्र व्यथित बनता मतवाला,
मन को मार,
कहाँ कोई जीता,
मन के मन में रावण बसता,
बसते लछिमन, राम व सीता|
मन के जाल से उबरा,
वही सुह्रद सुजन,
राम नाम की "मनका"
घूमे जिसके मन|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...