अखिलेश यादव का समाजवादी क्रांति रथ आजकल उत्तर प्रदेश की भूमि नाप रहा है| कुछ दिन बाद भाजपा के वरिष्ठ वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी भी देश की भूमि नपेंगे| ये भूमि नापन अपनी-अपनी खोयी राजनीतिक जमीन हांसिल करनें के लिए किया जा रहा है| अखिलेश बाबू जहाँ मायावती द्वारा कब्ज़ा ली गयी अपनी राजनीतिक जमीन पाना चाह रहे हैं, वहीं आडवाणी जी सोनिया और कांग्रेस से अपना कब्ज़ा वापस पानें के लिए संघर्ष को तैयार हो रहे हैं| लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रदेश और देश के लोगों को इन रथों के पीछे दौड़ कर क्या हासिल होगा? धूल,मिटटी,गुबार या फिर कुछ और? अभी तक के राजनीतिक रथों से तो फ़िलहाल देश के लोगों को कुछ भी सकारात्मक नहीं मिला है|
आडवानी जी की प्रथम रथयात्रा के संस्मरण आज भी देश के लोगों के जेहन में ताज़ा हैं| जिसके बाद भाजपा को तो देश और प्रदेश की सत्ता नसीब हो गयी थी,लेकिन जनता के हाँथ लगी थी सिर्फ वायदों की खोखली पोटली| जिस राम और मंदिर के नाम पर यह यात्रा शुरू की गयी थी कालांतर में, पार्टी के स्वनाम धन्य नेताओं नें उसे ही बिसार दिया| फिर कैसे मान लिया जाय कि इस बार भ्रष्टाचार के खिलाफ रथारूढ़ हो रहे आडवानी जी सत्तारूढ़ होनें के बाद इस मुद्दे को दरकिनार नहीं करेंगे|
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