शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

चीन को सबक



 ( सुशील अवस्थी "राजन"  ) चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ भारत नें अपनें कदम वापस न लेनें का एलान कर अंततः सराहनीय कार्य किया है| ज्ञात हो कि वियतनाम के समुद्री क्षेत्र में भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी ओएनजीसी तेल खोज कार्य कर रही है, जिस पर चीन को घोर आपत्ति थी| उसका कहना है कि भारत जहाँ तेल खोज कार्य कर रहा है वह चीनी सीमा के अंतर्गत आता है, इसलिए उसे घोर आपत्ति है| लेकिन भारत नें चीन की आपत्तियों को जिस तरह खारिज किया उसकी कल्पना तक करना  नामुमकिन था|  
    अमेरिका, जापान,वियतनाम वे देश हैं जिनसे चीन को बड़ी चिढ है| वियतनाम और जापान से उसका छत्तीस का आंकड़ा सिर्फ इसलिए है, क्योंकि इन देशों का चीन के साथ उसी प्रकार का सीमा विवाद है जैसा उसका भारत के साथ है| पिछले कुछ वर्षों में चीन नें भारत की जिस तरह की घेराबंदी की थी, उसके बाद भारत द्वारा ऐसा कठोर कदम उठाना जरुरी भी हो गया था| पाकिस्तान से मजबूत होती चीनी मित्रता, गुलाम कश्मीर में उसकी सक्रियता, आये दिन हमारी सीमा का उल्लंघन, कश्मीर और अरुणांचल के लोगों को अलग से वीजा जारी करना, लंका, बंगलादेश, म्यांमार में पैर जमाना आदि कुछ ऐसी घटनाएँ हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि चीन भारत को कमजोर करनें या डरानें की जुगत में लगा था|
     आज के समय में चीन को एक बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि भारत १९६२ से काफी आगे बढ़ चुका है| आज हम जिम्मेदार परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं| दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना हमारे पास है| दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी भारत की ही है| दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का हमें गर्व है| पुरानी गलतियाँ दुहरानें की भूल करना चीन के लिए कतई आसान न होगा| भारत चीन की आँख में आँख डालकर बात करनें में सक्षम है, फिर भी अहिंसा ही हमारा आदर्श मूलमंत्र है|


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