जाग रही है जनता अब, इस खातिर जारी प्रतिकार|
राजनीति और नेताओं से, उठा भरोसा अपना,
ये रोंकेंगे लम्पटता को, लगता सबको सपना|
जन-जन में है क्रोध, व्यग्रता करती हमें अधीर,
कोई आये और चुरा ले, जन मानस की पीर|
रामदेव और अन्ना में, दिख रहा हमें था नायक,
पर भ्रष्ट,लुटेरे जुटे हैं, साबित करनें को नालायक|
घुप्प अँधेरा बता रहा, अब भोर हमारे द्वार,
जाग रही है जनता अब, इस खातिर जारी प्रतिकार|
कहें अवस्थी "राजन" अब तो, सबको जागना होगा,
किसी एक को दे नहीं सकते, दुक्ख हरण का ठेका|
लोकतंत्र को अश्त्र, शस्त्र मतदान बनायेंगे,
जिसके दम हम क्रांति, भारतवर्ष में लायेंगे|
दिग्विजयी रावणों का दंभ हमें, अब करना होगा चूर,
भीख नहीं अधिकार माँगते, हम न मूरख मजबूर|
छिड़ी लड़ाई वही लडेगा, जिसको भारत से प्यार,
जाग रही है जनता अब, इस खातिर जारी प्रतिकार|
पर भ्रष्ट,लुटेरे जुटे हैं, साबित करनें को नालायक|
घुप्प अँधेरा बता रहा, अब भोर हमारे द्वार,
जाग रही है जनता अब, इस खातिर जारी प्रतिकार|
कहें अवस्थी "राजन" अब तो, सबको जागना होगा,
किसी एक को दे नहीं सकते, दुक्ख हरण का ठेका|
लोकतंत्र को अश्त्र, शस्त्र मतदान बनायेंगे,
जिसके दम हम क्रांति, भारतवर्ष में लायेंगे|
दिग्विजयी रावणों का दंभ हमें, अब करना होगा चूर,
भीख नहीं अधिकार माँगते, हम न मूरख मजबूर|
छिड़ी लड़ाई वही लडेगा, जिसको भारत से प्यार,
जाग रही है जनता अब, इस खातिर जारी प्रतिकार|