मायावती एक अलग तरह की नेता है। उन्होंने अपनी लगभग डेढ़ दशक की राजनीति में विधायक या विधान परिषद के सदस्य की हैसियत से कभी भी विधानभवन में अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं कराई है और न ही विपक्ष की नेता की हैसियत से सदन के अंदर कोई मुद्दा उठाया है। पहली बार 3 जून 1995 को मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने सिर्फ मुख्यमंत्री की हैसियत से ही सदन में प्रवेश किया है।
विधानसभा में बसपा विधायक दल के उपनेता और बांदा जनपद की सुरक्षित नरैनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए गयाचरन दिनकर ने बताया कि बहनजी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल किया है।
वहीं, लखनऊ में मायावती ने मंगलवार को राज्यसभा के लिए अपना नामांकन दाखिल करने के बाद कहा कि वह बसपा नेताओं की इच्छा के सम्मान में राज्यसभा जा रही है। पर यह सच नहीं है, जब भी बसपा प्रमुख के हाथ से सत्ता छिनी है, वह विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा देकर दिल्ली कूच कर गई है।
डॉ. राममनोहर लोहिया के साथी रहे बांदा के बुजुर्ग समाजवादी चिंतक जमुना प्रसाद बोस ने बताया कि मायावती को विपक्ष में बैठना पसंद नहीं है, वह सिर्फ मुख्यमंत्री ही बने रहने के लिए राजनीति करती है।
वामपंथी विचारधारा से जुड़े बुजुर्ग अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान ने कहा कि मायावती पराजय या सत्ता छिनने के बाद हमेशा दिल्ली पलायन कर गई है जो किसी भी मायने में उचित प्रतीत नहीं होता। उन्हें विपक्ष की भी भूमिका निभाकर जनहित में संघर्ष करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मायावती या उनकी पार्टी ने हमेशा सत्ता में रह कर ही जनांदोलन किया है, जबकि अन्य राजनीतिक दल विपक्ष में रह कर आंदोलन करते आए है। साभार- जागरण .कॉम
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