पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की कर्म स्थली रही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, पर भगवा रंग छोंड कभी कोई रंग नहीं चढ़ा, भले ही पूरा प्रदेश किसी भी रंग से सराबोर रहा हो, लेकिन इस बार होली से ठीक पहले आये विधान सभा चुनाओं के नतीजों नें भाजपाई खेमें की होली ख़राब कर डाली। शहर की मध्य, कैंट, उत्तर और पश्चिम विधान सभा सीटो से भाजपा की हुई फजीहती हार नें पार्टी के आला नेताओं के होश उड़ा दिए हैं।
लखनऊ के सभी घोषित उम्मीदवारों के पार्टी में जमकर हो रहे विरोध को नजरंदाज़ कर टिकट वितरण का ही परिणाम है कि यहाँ से भाजपा का सफाया हो चुका है। हारे हुए प्रत्याशी अकर्मण्य थे। पिचले कई वर्षों से विधायक रहे ये महानुभाव जन प्रिय तो कतई नहीं थे। इन्हें अटल जी के नाम पर राजधानी वासी ढ़ो रहे थे। पर इस बार लोग उम्मीद कर रहे थे कि शायद पार्टी इन्हें प्रत्याशी नहीं बनाएगी, लेकिन पार्टी ने जब फिर से इन्ही अकर्मण्यों को प्रत्याशी घोषित किया, तभी तय हो गया था कि अब भाजपा का सफाया तय है। नाराज स्थानीय भाजपा नेता और कार्यकर्ता दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों को जितानें में लग गए। क्योंकि पार्टी नें वर्षों से विधायक पदों पर आसीन इन लोगों को फिर से टिकट देकर एकदम स्पष्ट सन्देश दे दिया था, कि जब तक ये जीतते रहेंगे पार्टी की आँख के तारे बनें रहेंगे। जिसके कारण पार्टी के भीतर इन्हें हरानें के लिए संकल्प बद्ध लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ। इस हार के सारांश रूप में एक ही बात मुझे तर्क संगत लग रही है कि "भाजपा को अपनों नें लूटा, गैरों में कहाँ दम था, भाजपाई कश्ती वही डूबी, जहाँ पानी कम था"
susheel अवस्थी "rajan" 9454699011
बिलकुल सच है..नेतृत्व उसको दे दिया जा रहा है ...जिसके पाश सामर्थ्य है भौतिक संसाधनों का .....लेकिन जज्बा नहीं है..
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