अग्निशमन विभाग का काम आग लगाना है या बुझाना? राजधानी लखनऊ में डी.आई.जी. पद पर तैनात देवेन्द्र दत्त मिश्र नें अपनें सनसनीखेज़ आरोपों से प्रदेश की राजनीति में जो भयावह आगजनी की है वह बेहद निंदनीय है| निंदनीय इसलिए भी क्योंकि ऐसा कर उन्होंने कोई नया रहस्योद्घाटन नहीं किया है| इस प्रदेश का हर खासो-आम नागरिक इस बात को अच्छी तरह जानता है कि हमारी सरकार कैसी है? आखिर इसे हमीं नें तो चुना है| हमारी मंसानुरूप कार्य कर रही सरकार और मुख्यमंत्री साहिबा पर भ्रष्टाचार
के आरोप लगाना ... मुझे तो किसी घ्रणित साजिश की बू आ रही है| वो तो अच्छा हुआ कि शासन-प्रशासन के सज्ञान आला-अधिकारियों नें मिश्र जी को पागल बताकर अस्पताल में भर्ती करा दिया नहीं तो ऐसे आदमी को तो सीधे जेल भेज देना चाहिए, जहाँ डाक्टर सचान जैसे पागलों का अति आधुनिक पद्धति से इलाज किया गया है|
वैसे मुझे तो ये पागल कुछ-कुछ मनुवादी मानसिकता का लगता है| जिसनें मनोज गुप्ता,डाक्टर विनोद आर्य, डाक्टर वी पी सिंह और डाक्टर सचान प्रकरण से किसी प्रकार का सबक नहीं सीखा| और पगला गया| जब चुनाव सर पर हों तब इस प्रकार की बेसुरी बीन बजानें का क्या मतलब? हो न हो ये मनुवादी पागल कहीं न कहीं विरोधी पार्टियों से मिला हुआ है| ठीक वैसे ही जैसे विकिलीक्स का मालिक जुलियन असान्जे मिला था| देखिएगा एक न एक दिन इस पागल की मिलीभगत का भांडा हमारे अति काबिल कर्त्तव्य निष्ठ आला अधिकारी जरुर फोड़ेंगे| वैसे भी जाँच शुरू हो गयी है जल्द ही दूध में दूध और पानी में पानी हो ही जायेगा| प्रेम से बोलो लोकतंत्र भगवान की जय|
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