बुधवार, 2 नवंबर 2011

" अन्ना नहीं हजारों,हमको लाखों चाहिए "

भारत माता की जय बोले,
जाको चाहिए| 
अन्ना नहीं हजारों,
हमको लाखों चाहिए|
गाँव-गाँव तक फैली भ्रष्टता,
राजनीती में घुसी ध्रष्टता|
गोरे अंग्रेजों से मुक्त हुए,
जिन्हें भूरों से मुक्ति जरुरी,
अन्ना ताको चाहिए|
अन्ना नहीं हजारों,
हमको लाखों चाहिए|
देश चलायें ऐसे बन्दे,
जो हों सभ्य,"सुशील"|
पर चला रहें हैं,
हत्यारे,लम्पट,दुष्ट,कुशील|
वैसे ही दीपक जैसे,
घोर निशा को चाहिए|
अन्ना नहीं हजारों,
हमको लाखों चाहिए|
बढ़-चढ़कर मतदान से,
लोक का तंत्र भी निखरेगा|
वोट की चोट से
लम्पट जनप्रतिनिधि का,
अहंकार भी बिखरेगा|
इन पर द्रष्टि गडाओ वैसे,
जैसे पथ-भ्रष्ट पुत्र पर,
पिता को चाहिए|
अन्ना नहीं हजारों,
हमको लाखों चाहिए|

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