सोमवार, 5 दिसंबर 2022

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम


 

सुशील अवस्थी 'राजन'

चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है दिलीप प्रजापति नाम का एक नौजवान और उसे चाय पिला रहे हैं उसके पिता श्रीमान धर्मवीर प्रजापति। अब आप कहेंगे कि इसमें ऐसा क्या है जो मैं आप सबसे साझा कर रहा हूँ। है आगे सुनिए....

दरसल ये चित्र सुर्खियों में रहा है। हुआ कुछ यूं कि कुछ मीडिया संस्थानों ने आगरा से एक खबर गर्म की थी कि दुल्हन करती रही इंतजार... नहीं आयी बारात। ये बारात आनी थी प्रदेश के जेल एवं कारागार राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार श्रीमान धर्मवीर प्रजापति के घर से...। अब आप समझ गए होंगे कि चित्र में दिख रहे नौजवान दिलीप और उसे चाय पिला रहे सज्जन कौन हैं?  चाय पिला रहे सज्जन ही हैं मंत्री धर्मवीर प्रजापति और चाय पी रहा नौजवान है उनका पुत्र।

दरसल बारात वाले दिन दूल्हे दिलीप की बारात लड़की के घर इस लिए नहीं जा सकी थी क्योंकि उसे डेंगू ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। वैवाहिक संस्कार चल ही रहे थे कि दिलीप अचानक बेहोश होकर गिर पड़ा जिसे आगरा के एक अस्पताल में आईसीयू में एडमिट कराना पड़ा। ऐसे हालात में कौन माता पिता होंगे जो बारात ले जाते? सो मंत्री जी भी नहीं ले गए।

बस इतनी सी बात को कुछ मीडिया संस्थानों और मंत्रीजी के विरोधियों ने लपक लिया। फिर क्या था तरह तरह के सवालों का जन्म हो गया। जैसे मंत्रीजी मोटा दहेज मांग रहे थे.. मंत्रीजी शादी के पक्ष में नहीं थे...  आदि आदि।

जो भी लोग मंत्रीजी को जानते हैं वो अच्छी तरह से जानते हैं कि मंत्री जी निहायत सज्जन और धर्मपरायण किस्म के इंसान हैं। जेल एवं होमगार्ड विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को मंत्रीजी ने जिस तरह से व्यक्तिगत रुचि लेकर नियंत्रित किया हैं उसकी चर्चा पूरे प्रदेश में ही नहीं बल्कि सारे देश में हो रही है।

ये सब अफवाहें और दुष्प्रचार तब कुलांचे मार रहे थे जबकि दुल्हन और उसके पिता अस्पताल में दिलीप के पास थे। लड़की पक्ष से एक भी बयान मंत्रीजी के खिलाफ किसी मीडिया संस्थान के पास नहीं है। फिर ये मोटा दहेज मांगने या फिर अन्य ऊल जुलूल सवालों की पैदाइश हुई कहाँ से...?

दरसल मंत्रीजी की पृष्ठभूमि निहायत ही साधारण से परिवार से है। आज की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रति उनकी आस्था, निष्ठा और श्रद्धा वर्षों पुरानी है। जब पार्टी सत्ताधारी नहीं थी तबसे। पार्टी के आलाकमान को उनकी कर्मठता और निष्ठा का एहसास था। इसलिए उन्हें पहले एमएलसी फिर कारागार एवं होमगार्ड राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाकर सम्मानित किया। इससे पूर्व की योगी सरकार में भी वह बतौर राज्यमंत्री काम कर चुके थे।

एक साधारण सी पृष्ठभूमि के गरीब और सामान्य से प्रजापति समाज के इस व्यक्ति की यह तरक्की कुछ अति प्रभावशाली और धनाढ्यों को हजम नहीं हो पा रही थी। मंत्रीजी की दिन दूनी रात चौगुनी बन रही एक सुदृढ़ जननेता की छवि को दागदार करने की जुगत में लगे उनके अपने विरोधियों ने इस अवसर का फायदा उठाने की कोशिश की जिस वजह से यह स्थितियां पैदा हुई। फिलहाल अब सबकुछ सामान्य है। बेटे की तबियत भी ठीक है और मंत्रीजी भी अपने जन कार्य में रत हो चुके हैं। विरोधी भी पूरी ताकत से नए अवसर की तलाश में हैं और रहेंगे... आप सबको यह बताना इसलिए भी जरूरी था ताकि यदि आप भी आधी अधूरी जानकारी लिए बैठे हों तो उसे सम्पूर्ण कर लें...

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

क्या विकास दुबे की मौत मरेगा अब मुख्तार अंसारी?


  • कुख्यात माफिया सरगना मुख्तार को यूपी की जेल में आना ही पड़ेगा। आज सुप्रीमकोर्ट ने यह आदेश दिया है। जिसे पंजाब की अमरिंदर सरकार को मानना ही होगा। सुप्रीमकोर्ट ने पंजाब की अमरिंदर सरकार को आदेश दिया है कि दो हफ्तों के अंदर मुख्तार को यूपी सरकार के हवाले किया जाय। वह किस जेल में रहेगा यह एमपी एमएलए विशेष कोर्ट तय करेगी।

  • मुख्तार अभी पंजाब की रोपड़ जेल में बंद है। लोग कयास लगा रहे हैं कि यूपी की सीमा में प्रवेश करते ही योगी की पुलिस उसे मार डालेगी। कुछ वैसे ही जैसे विकास दुबे और कुछ एक और अपराधियों को इनकाउंटर के नाम पर मारा गया है।

  • दबंगई और दहशत के पर्याय रहे मुख्तार और उनके साथियों को भी यही आशंका है कि उसे मार दिया जाएगा। फिलहाल तो जनता को दहशत के इन कारोबारियों की आंख में यह दहशत देखकर खुशी हो रही है। हां इस खुशी का बखान खुले आम करना थोड़ा कष्टकारी जरूर है।

  • इस माहौल का सारा दोष हमारी कानूनी व्यवस्था को जाता है। जो आज भी अपनी तारीख पर तारीख वाली कार्यशैली से बाहर आती नहीं दिख रही है। अब लोग कोर्ट के अंदर के थकाऊ, पकाऊ और उबाऊ गति के फैसलों से बेहतर कोर्ट से बाहर वाले गैर कानूनी लेकिन त्वरित फैसलों को पसंद करने लगे हैं। ये ऑन द स्पॉट वाले गैर कानूनी फैसले अब राज्य सरकारें खुद को न्यायप्रिय साबित करने के लिए करने लगी हैं।

  • राजनीतिक पार्टियां लोगों की इस मंशा का उपयोग अपने वोट बैंक को बढ़ाने में कर रही हैं। अगर यह व्यवस्था और आगे बढ़ी तो इससे पुलिस और सरकारों को मनमाना आचरण करने की अघोषित छूट मिल जाएगी, जो कि आने वाले दिनों में कानून के राज की अवधारणा ही खत्म कर देगी। फिर जो व्यवस्था पनपेगी वह होगी 'जिसकी लाठी उसकी भैस'

सुशील अवस्थी राजन

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

योगी नहीं अखिलेश होंगे यूपी के अगले सीएम


सुशील अवस्थी राजन, 

बिहार चुनाव की सरगर्मियों के बीच लोग अब यूपी की राजनीतिक फ़िज़ा भांपने लगे है। योगी और उनकी पार्टी भाजपा प्रदेश में अपना जनाधार खो चुकी है। जिस नीमकोट यूरिया का नरेंद्र मोदी अपने सभी कार्यक्रमों में जिक्र करते नहीं थकते थे, इस वक्त यूपी के किसान उसके लिए संघर्ष कर रहे हैं। किसान अब भाजपा को वोट नहीं देगा।

विकास दुबे की निर्मम हत्या के बाद रूठा ब्राह्मण इस सरकार के दुबारा सत्ता वापसी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बनने जा रहा है, जिसका कि इस सरकार को अभी भी एहसास नहीं हो सका है। 

मंत्रियों का दम्भ और पाखंड जनता बारीकी से देख रही है। अयोग्य और लुल्ल टाइप के मंत्रियों के चुतियापे लोगों को इस सरकार को रिपीट करने से रोकेंगे। 

बिहार में भी भाजपा और नीतीश बाबू का गठबंधन बुरी तरह से धराशायी होने जा रहा है। यदि ऐसा हो जाये तब मैं लेना कि यूपी के बारे में कही गयी मेरी बात सत्य ही साबित होगी।

अखिलेश यादव द्वारा किये गए विकास कार्यों को जनता याद कर रही है। लोगों के दिलो दिमाग पर चढ़ा हिन्दू मुस्लिम का नशा अब उत्तर रहा है।

शनिवार, 22 अगस्त 2020

इस रॉ एजेंट ने 14 साल पाकिस्तानी जेलों में झेली यातनाएं...आज है दाने-दाने को मोहताज़

 

(सुशील अवस्थी राजन) 
यकीनन आपने एक था टाइगर और टाइगर
जिंदा है जैसी फिल्मों के संवाद और दृश्यों पर सिनेमाहाल में जमकर तालियां बजायी होंगी। ये फिल्में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) के एजेंटों की जिंदगी पर आधारित थी। एक रॉ एजेंट की वास्तविक जिंदगी कितनी दुश्वारियों से घिरी होती है, अगर आप यह जानना चाहते हैं, तो आपको मनोज रंजन दीक्षित की जिंदगी की जद्दोजहद से वाकिफ होना पड़ेगा।


1985 में रॉ में भर्ती हुए मनोज कुछ माह की ट्रेनिंग के बाद सीधे पाकिस्तान भेज दिए गए। पाकिस्तान में रहकर उन्होंने तमाम खुफिया जानकारियां भारत भेजी। ब्राह्मण मनोज देश की सीमा लांघते ही पहले मुहम्मद यूनुस और फिर इमरान हो गए। शंख ध्वनि, माथे पर टीका, मंदिरों की घंटियां मानों मनोज के जीवन का सिर्फ अतीत सा बनकर रह गई। अब वो इमरान और यूनुस बनकर पाकिस्तानी मस्जिदों में नमाज़े अदा कर रहे थे।


जब उन्हें लगा कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को उन पर कुछ शक हो रहा है, तब उनका शक दूर करने व अपनी जान की सलामती के लिए वे अफगानिस्तान में पाकिस्तानी मुजाहिद बनकर तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) के खिलाफ लड़ने के लिए पाकिस्तान से सीधे अफगानिस्तान जाकर लड़ाई में भी शामिल हुए।


अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर अंततः उन्हें 23 जनवरी 1992 को पाकिस्तानी पुलिस और पकिस्तानी सेना की इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। जैसा कि रॉ की पूर्व शर्त होती है कि गिरफ्तारी के बाद एजेंसी अपने एजेंट से पल्ला झाड़ लेती है। मनोज के साथ भी वही हुआ। फिर पाकिस्तान में मनोज के साथ शुरू हुआ पाकिस्तानी शैतानों का हैवानियत भरा सुलूक। तमाम यातनाओं, प्रलोभनों को नकारते हुए मनोज ने इन शैतानों के सामने कभी घुटने नहीं टेके। देश के मान सम्मान के लिए मनोज ने इन राक्षसों के बेइंतहा जुल्मों को अपने शरीर और मन पर झेल लिया। करीब 14 वर्षों तक भारत माता का ये असली लाल पाकिस्तानी जेलों में नर्क से भी बदतर जिंदगी झेलता रहा।


अंत मे मार्च 2005 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पाकिस्तानी सरकार को मनोज को 568 कैदियों के साथ रिहा करना पड़ा। बाघा बार्डर के रास्ते भारत में प्रवेश कर रहे मनोज करीब 21 वर्ष बाद भारत की पवित्र माटी को चूम सके। अब मनोज अपने शहर नजीबाबाद, बिजनौर की गलियों से भूल चुके थे।


पाकिस्तान से वापस आने पर अब उनकी नौकरी जा चुकी थी। तमाम स्पष्टी करणों के बाद भी मनोज रंजन दीक्षित वापस रॉ में न जा सके। इस दौरान उनकी जिंदगी में अब अल्मोड़ा की शोभा जोशी का आगमन हुआ। 2006 में मनोज शोभा के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 2013 में शोभा कैंसर जैसे असाध्य रोग से ग्रस्त हो गई। इस दौरान मनोज को अपनी पत्नी के इलाज के लिए धन की सख्त जरूरत थी। तमाम नेताओं, मंत्रियों, समाजसेवियों से गुहार लगाने के बावजूद इस सच्चे देशभक्त को कहीं से कोई मदद नहीं मिली। 


हम रॉ एजेंटों की जिंदगी की नकल करने वाले सलमान जैसे रील लाइफ के हीरो पर तो करोड़ों रुपयों की बौछार कर सकते हैं, परंतु जिनकी जिंदगी की ये अभिनेता नकल करते हैं, उन रियल लाइफ राष्ट्रभक्तों के प्रति बेपरवाह रहते हैं, यही अब हमारी नियति बन चुकी है। इस पर वास्तविक विमर्श और मनन की आवश्यकता है।


आखिरकार 2019 में शोभा ने इस मतलब परस्त दुनिया को अलविदा कह दिया। आज भी आर्थिक तंगी का सामना कर रहे मनोज एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में बतौर स्टोर कीपर कार्यरत है। तनख्वाह के नाम पर सिर्फ उनके पल्ले इतने ही रुपये आते हैं, कि वो बमुश्किल गुजर बसर कर सकें। कोरोना काल मे अब उन्हें वह भी नहीं नसीब हो रही है।

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...