योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी अब इलाहाबाद से सांसद निर्वाचित हो चुकी हैं। लखनऊ की कैंट सीट से विधायक रीता के सांसद बन जाने के बाद अब उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ेगी। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अगले छः महीनों में यहाँ उप चुनाव होगा। अब सवाल यह उठता है कि भाजपा अब यहाँ से किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी। ऐसी आशा है कि भाजपा जिसे भी अपना उम्मीदवार घोषित करेगी, वही विधायकी जीतेगा। क्योंकि इस सीट को भाजपा की परम्परागत सीट माना जाता है। इस सीट के इतिहास पर निगाह डालें तो स्पष्ट दिखता है कि जो भी भाजपा का टिकट पायेगा वही यहाँ से अगला विद्यायक होगा।
2012 में कांग्रेसी रीता जोशी ने यहाँ से लगातार तीन बार विधायक रहे भाजपा के सुरेश तिवारी को हराकर इस सीट पर आपना वर्चस्व कायम किया था। उसके बाद 2017 के विधान सभा चुनाव में रीता ने पाला बदल करते हुए भाजपा के झंडे तले लड़ते हुए इस सीट पर अपना परचम लहराया था। परन्तु अब वो सांसद बन चुकी हैं , इसलिए यहाँ उप चुनाव अवश्यंभावी है। यहाँ से लगातार विधायक रहे सुरेश चंद्र तिवारी अब उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद भाजपा उन्हें फिर से इस सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दे। सुरेश चंद्र तिवारी इस वक्त भाजपा में अवध क्षेत्र के अध्यक्ष हैं। पार्टी की रीतियों नीतियों को ठीक से समझने वालों का मानना है कि बतौर अध्यक्ष ठीक से काम कर रहे तिवारी जी पर शायद ही पार्टी दांव लगाएगी। ये एक व्यक्ति एक पद की तर्ज पर चल रही पार्टी की नीतियों के खिलाफ होगा।
दूसरे नंबर के प्रबल दावेदारों में यहाँ से अरविन्द त्रिपाठी "गुड्डू" को माना जा रहा है। 2007 में इसी सीट से बहुजन समाज पार्टी से उम्मीदवार रहे पूर्व एमएलसी गुड्डू त्रिपाठी इस समय भाजपा में हैं। भाजपा की इस परम्परागत सीट पर उस दौरान त्रिपाठी ने बसपा के लिए अच्छे खासे वोट बटोरे थे। भाजपा के सुरेश चंद्र तिवारी किसी तरह अपनी और पार्टी की लाज बचाने में कामयाब हो सके थे। प्रदेश की राजनीति में फिर से अपना बर्चस्व कायम कर रही बसपा को सबक सिखाने के लिए भी भाजपा गुड्डू त्रिपाठी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।
अन्य दावेदारों में रीता जोशी के पुत्र मयंक जोशी को यहाँ से अगला उम्मीदवार माना जा रहा है। लेकिन इनकी दावेदारी को पार्टी शायद ही तरजीह दे। क्योंकि रीता जोशी के बाद फिर से उनके पुत्र को टिकट देने का सीधा सन्देश यही होगा कि पार्टी वंशवाद को प्रोत्साहित कर रही है। जो कि पार्टी नहीं करना चाहेगी।
एक और उम्मीदवार अभिजात मिश्रा की भी चर्चा कायम है। अभिजात इस वक्त भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय नेता हैं। अपने राष्ट्रीय नेता को शायद ही पार्टी क्षेत्रीय रोल देना पसंद करेगी ? अन्य नामों में पूर्व में बसपा से इसी सीट से उम्मीदवार रहे योगेश दीक्षित जो इस समय भाजपाई हैं। उनका भी नाम लिया जा रहा है। यहीं से एक पार्षद सुशील तिवारी पम्मी भी टिकट की दौड़ में गिने जा रहे हैं। फिलहाल तो यह एक आंकलन है। सही भी हो सकता है गलत भी। पार्टी किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी और किसे नहीं ये तो पार्टी ही जानें, लेकिन यह बात एकदम सही है कि पैरासूट प्रत्याशी यहाँ असफल भी हो सकता है, इसलिए उम्मीदवार स्थानीय होगा इसकी पूरी संभावना है।
लखनऊ कैंट से सुशील अवस्थी "राजन" की रिपोर्ट