गुरुवार, 15 नवंबर 2012

मैं कैसा भक्त हूँ राम का?

वनवास नहीं महलों का आदी,
भोगविलासी और प्रमादी,
स्वारथ का मैं पुतला हूँ,
धीरज धैर्य से उथला हूँ,
रामायण मानस जानता हूँ,
राम को ईश्वर मानता हूँ,
नहि मातु-पिता के काम का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
भ्रात भरत पर शक करता हूँ,
लछिमन से भी मैं डरता हूँ,
सीता पर संदेह बडे है,
रिश्ते सभी खिलाफ खड़े हैं,
हे राम मुझे कुछ शक्ति दो,
अपनें चरणों की भक्ति दो,
मैं "सुशील" रहा बस नाम का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
रावण का वैभव जचता है,
नखा का यौवन मन मथता है,
अहिल्या-शबरी में जान नहीं,
गुह-केवट प्रति सम्मान नहीं,
सुग्रीव दिखा कमजोर जभी,
बाली को सखा कह दिया तभी,
निज चिंतन सुबहो शाम का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
सच राम नहीं बन सका कोई,
चल एक कदम या फिर दोई,
सीता चाहे मिले न भरत लखन,
भले पाप पले दशरथ के मन,
सब फ़र्ज़ निभाएंगे घुस कर, 
खुद राम बनन की कोशिश कर,
नहि किया जाप हनुमान का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
                 सुशील अवस्थी "राजन" आलमबाग, लखनऊ,मो0- 9454699011



 


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