28 अक्तूबर को एक बार फिर मैं चित्रकूट में था। मन्दाकिनी स्नान और कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा इन दो कामों को करते हुए मुझे कुछ ऐसी दिव्य अनुभूति होती है, जिसका वर्णन कर पाना मुझे संभव नहीं लगता। कामदगिरी की परिक्रमा करनें के बाद सदैव मेरे मन की अशांति कम हो जाती थी। मेरे प्रिय मित्र सर्वेश पाण्डेय जी नें सहसा एक दिन छिड़ी चर्चा में जब संत तुलसीदास जी की यह पंक्ति सुनाई "कामदगिरी भे राम प्रसादू, अवलोकत अपहरत विषादू" तब मेरी समझ में आया कि क्यों चित्रकूट स्थित इस परम पुनीत पर्वत की परिक्रमा कर लेनें के बाद मेरे मन की अशांति में हमेशा कमी आ जाया करती थी। क्योंकि तुलसी बाबा की इस पंक्ति का मतलब है कि सिर्फ इस पर्वत को अवलोकत अर्थात देखनें मात्र से ही मन के विषाद का अपहरण हो जाता है, अर्थात मन के विषाद का यह पर्वत अपहरण (चोरी) कर लेता है। जय हो कामतानाथ भगवन की।
इस बार की अपनी चित्रकूट यात्रा के कुछ महत्वपूर्ण चित्र मैं आप लोगों से बाँट रहा हूँ। कृपया निगाह डालिए। भगवान राम नें अपनें 14 वर्ष वनवास के जहाँ करीब 11-12 वर्ष इस पर्वत के आस-पास बिताये, वहीं आप लोग भी अपनी व्यस्त जिंदगी से पिंड छुड़ाकर अपनी जिंदगी के कुछ घंटे बिताइए, मुझे पूरा विश्वास है, कि आप खुद पर प्रभु श्री राम की असीम कृपा अनुभव करेंगे। एक बार श्रद्धा पूर्वक कहिये "श्री सीताराम"
आपका अपना- सुशील अवस्थी "राजन" मो0- 9454699011
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चित्रकूट में कामदगिरी परिक्रमा मार्ग पर एक जगह सजा भव्य राम दरबार |
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कामदगिरी की परिक्रमा करते सुशील अवस्थी "राजन" |
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वानरों के समूह से घिरे रहनें वाले कामदगिरी का एक भव्य द्रश्य |
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कामदगिरी के इन्हीं में से किसी न किसी पत्थर को कभी भगवान श्री राम का स्पर्श अवश्य मिला होगा |
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चित्रकूट के लेटे हनुमान की जय ...... |
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चित्रकूट की लक्ष्मण पहाड़ी से एक विहंगम दृश्य |
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मेरी इस पूरी चित्रकूट यात्रा में संग-संग रहे मेरे अभिन्न मित्र श्री सर्वेश पाण्डेय जी |
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