देश को खोखला करता आया, घोटाले का घुन रहा है।
अब तो हर मंत्री घोटाले के सपनें बुन रहा है।
क्या न कचोटती होगी स्वर्ग में शहीदों की आत्मा।
आज़ादी के बाद भी आम आदमी अपना सिर धुन रहा है।
बदल गया है समय काल और बदल गए हैं हम सब।
लुटना और लूटना अपनी नियति बन गयी है अब।
नीति और नैतिकता बन गयी भ्रष्टाचार की दासी।
चारों ओर है घुप्प अँधेरा फैली पड़ी उदासी।
ढपली अपनी राग भी अपना, कौन किसकी सुन रहा है।
आज़ादी के बाद भी आम आदमी अपना सिर धुन रहा है।
सुशील अवस्थी गैस को रोयें भई रसोई सूनी।
बिन मेहनत के वाड्रा जी की भई कमाई दूनी।
गैर क़ानूनी काम में लग गया जो था मंत्री क़ानूनी।
राजनीती को योगी भागा करके कुटिया सूनी।
बुरा न देखो बुरा न बोलो यही तरक्की का शगुन रहा है।
आज़ादी के बाद भी आम आदमी अपना सिर धुन रहा है।
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