वर्तमान समय में श्रीरामसेतुसर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा 8अक्टूबर 2002को रामेश्वरमके समीप भारत और श्रीलंका के मध्य समुद्र में एक सेतु खोज लेने के बाद श्रीरामसेतुको काल्पनिक कहकर इसके अस्तित्व को नकार सकना संभव नहीं है। सीताहरण के बाद श्रीराम की वानरसेनाने लंका पर चढाई करने के लिए समुद्र पर सेतु बनाया था। राम-नाम के प्रताप से पत्थर पानी पर तैरने लगे।
रामसेतुका धार्मिक महत्व केवल इससे ही जाना जा सकता है कि स्कन्दपुराणके ब्रह्मखण्डमें इस सेतु के माहात्म्य का बडे विस्तार से वर्णन किया गया है। नैमिषारण्य में ऋषियों के द्वारा जीवों की मुक्ति का सुगम उपाय पूछने पर सूत जी बोले-
दृष्टमात्रेरामसेतौमुक्ति: संसार-सागरात् |
हरे हरौचभक्ति: स्यात्तथापुण्यसमृद्धिता ||
[स्कन्दपुराण ब्रह्मखण्ड]
रामसेतु के दर्शनमात्रसे संसार-सागर से मुक्ति मिल जाती है। भगवान विष्णु और शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्धि होती है। इसलिए यह सेतु सबके लिए परम पूज्य है
सेतु-महिमा का गुणगान करते हुए सूतजीशौनकआदि ऋषियों से कहते हैं- सेतु का दर्शन करने पर सब यज्ञों का, समस्त तीर्थो में स्नान का तथा सभी तपस्याओं का पुण्यफलप्राप्त होता है। सेतु-क्षेत्र में स्नान करने से सब प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा भक्त को मरणोपरांत वैकुण्ठ में प्रवेश मिलता है। सेतुतीर्थका स्नान अन्त:करण को शुद्ध करके मोक्ष का अधिकारी बना देता है। पापनाशक सेतुतीर्थमें निष्काम भाव से किया हुआ स्नान मोक्ष देता है। जो मनुष्य धन-सम्पत्ति के उद्देश्य से सेतुतीर्थमें स्नान करता है, वह सुख-समृद्धि पाता है। जो विद्वान चारों वेदों में पारंगत होने, समस्त शास्त्रों का ज्ञान और मंत्रों की सिद्धि के विचार से सर्वार्थसिद्धिदायकसेतुतीर्थमें स्नान करता है, उसे मनोवांछित सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। जो भी सेतुतीर्थमें स्नान करता है, वह इहलोक और परलोक में कभी दु:ख का भागी नहीं होता। जिस प्रकार कामधेनु, चिन्तामणि तथा कल्पवृक्ष समस्त अभीष्ट वस्तुओं को प्रदान करते हैं, उसी प्रकार सेतु-स्नान सब मनोरथ पूर्ण करता है।
रामसेतुके क्षेत्र में अनेक तीर्थ स्थित हैं अत:स्कन्दपुराणमें सेतुयात्राका क्रम एवं विधान भी वर्णित है। सेतुतीर्थमें पहुंचने पर सेतु की वन्दना करें-
रघुवीरपदन्यासपवित्रीकृतपांसवे।
दशकण्ठशिरश्छेदहेतवेसेतवेनम:॥
केतवेरामचन्द्रस्यमोक्षमार्गैकहेतवे।
सीतायामानसाम्भोजभानवेसेतवेनम:॥
"श्रीरघुवीर के चरण रखने से जिसकी धूलि परम पवित्र हो गई है, जो दशानन रावण के सिर कटने का एकमात्र हेतु है, उस सेतु को नमस्कार है। जो मोक्षमार्गका प्रधान हेतु तथा श्रीरामचन्द्रजीके सुयश को फहरानेवालाध्वज है, सीताजीके हृदयकमलके खिलने के लिए सूर्यदेव के समान है, उस सेतु को मेरा नमस्कार है।"
श्रीरामचरितमानसमें स्वयं भगवान श्रीराम का कथन है-
मम कृत सेतु जो दरसनुकरिही।
सो बिनुश्रम भवसागर तरिही॥
"जो मेरे बनाए सेतु का दर्शन करेगा, वह कोई परिश्रम किए बिना ही संसाररूपीसमुद्र से तर जाएगा"
श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण के युद्धकाण्डके 22वेंअध्याय में लिखा है कि विश्वकर्मा के पुत्र वानरश्रेष्ठनल के नेतृत्व में वानरों ने मात्र पांच दिन में सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौडा पुल समुद्र के ऊपर बनाकर रामजी की सेना के लंका में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। यह अपने आपमें एक विश्व-कीर्तिमान है। आज के इस आधुनिक युग में नवीनतम तकनीक के द्वारा भी इतने कम समय में यह कारनामा कर दिखाना संभव नहीं लगता।
महर्षि वाल्मीकि रामसेतुकी प्रशंसा में कहते हैं-
अशोभतमहान् सेतु: सीमन्तइवसागरे।
वह महान सेतु सागर में सीमन्त(मांग)के समान शोभित था।
सनलेनकृत: सेतु: सागरेमकरालये । शुशुभेसुभग: श्रीमान् स्वातीपथइवाम्बरे॥
मगरों से भरे समुद्र में नल के द्वारा निर्मित वह सुंदर सेतु आकाश में छायापथके समान सुशोभित था।
स्कन्दपुराणके सेतु-माहात्म्य में धनुष्कोटितीर्थ का उल्लेख भी है-
दक्षिणाम्बुनिधौपुण्येरामसेतौविमुक्तिदे।
धनुष्कोटिरितिख्यातंतीर्थमस्तिविमुक्तिदम्॥
दक्षिण-समुद्र के तट पर जहां परम पवित्र रामसेतुहै, वहीं धनुष्कोटिनाम से विख्यात एक मुक्तिदायक तीर्थ है।
इसके विषय में यह कथा है-भगवान श्रीराम जब लंका पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त भगवती सीता के साथ वापस लौटने लगे तब लंकापति विभीषण ने प्रार्थना की - प्रभो! आपके द्वारा बनवाया गया यह सेतु बना रहा तो भविष्य में इस मार्ग से भारत के बलाभिमानीराजा मेरी लंका पर आक्रमण करेंगे। लंका-नरेश विभीषण के अनुरोध पर श्रीरामचन्द्रजीने अपने धनुष की कोटि (नोक) से सेतु को एक स्थान से तोडकर उस भाग को समुद्र में डुबो दिया। इससे उस स्थान का नाम धनुष्कोटि हो गया। इस पतितपावनतीर्थ में जप-तप, स्नान-दान से महापातकोंका नाश, मनोकामना की पूर्ति तथा सद्गति मिलती है। धनुष्कोटिका दर्शन करने वाले व्यक्ति के हृदय की अज्ञानमयीग्रंथि कट जाती है, उसके सब संशय दूर हो जाते हैं और संचित पापों का नाश हो जाता है। यहां पिण्डदान करने से पितरोंको कल्पपर्यन्ततृप्ति रहती है। धनुष्कोटितीर्थ में पृथ्वी के दस कोटि सहस्र(एक खरब) तीर्थो का वास है।वस्तुत:रामसेतुमहातीर्थहै। विद्वानों ने इस सेतु को लगभग 17,50,000साल पुराना बताया है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में निर्दिष्ट काल-गणना के अनुसार यह समय त्रेतायुगका है, जिसमें भगवान श्रीराम का अवतार हुआ था। सही मायनों में यह सेतु रामकथा की वास्तविकता का ऐतिहासिक प्रमाण है। समुद्र में जलमग्न हो जाने पर भी रामसेतुका आध्यात्मिक प्रभाव नष्ट नहीं हुआ है।
॥ श्रीसीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें