सोमवार, 17 दिसंबर 2018

अपना इकबाल खोती योगी सरकार

   

आईपी सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेता, यूपी
  प्रचंड बहुमत की सरकार है लेकिन जनता नदारद है--- -सत्ता के गलियारे की चमक,कालिदास मार्ग जिसपर मा0 मुख्यमंत्री जी का सरकारी आवास है। यह इलाका दशकों से अपनी चमक बिखेरता रहा है। सनद रहे कि CM आवास के साथ वरिष्ठ मंत्रियों के ज्यादातर आवास इसी मार्ग पर है साथ में विक्रमादित्य मार्ग भी चर्चा का केंद्र रहा है। उसी के साथ माल-एवेन्यू में भी मंत्रियों के निवास स्थल है। यहाँ कई पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास है। किसी भी सरकार के काम-काज का आकलन यहाँ से शुरू होकर विधानसभा, एनेक्सी,आज का आधुनिक लोकभवन पर समाप्त होता है। और पार्टी मुख्यालय आम कार्यकर्ता के लिए जुटने का और जब सरकार रहती है तो सत्ता का बड़ा केंद्र रहता है। दो दशक पूर्व जब मन्त्रियों के आवासों पर गहमागहमी दिनरात देखी जाती थी। प्रदेशभर से जनताअपने विभिन्न कार्यो को लेकर विधायकों के साथ आवा-जाही उनकी बनी रहती थी। सुबह 2 जनता मंत्रियों के आवास पर धमक जाती थी। और मिलने का सिलसिला 11 बजे दिन तक चलता रहता था।   
    ततपश्चात मंत्रियों के कारों का काफिला एक एक कर विधान सभा में प्रवेश करता था। और दिनभर अफसरों के साथ मीटिंग, समीक्षा आदि चलती रहती थी। चूंकि समयाभाव के कारण बहुत से मंत्रियों का दिन का भोजन उनके घर से अक्सर दफ्तर में आ जाता था। 
   अपने काम के प्रति एक जुनून स्वयं हमने अपनी आँखों से देखा है। और जैसे ही दिन के तीन बजते थे। आम जनता मंत्रियों के चेम्बर में धमक जाती थी,और सबकी सुनवाई होती थी। एक वाकया मुझे याद है मा0 कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। श्री रविन्द्र शुक्ला जी शिक्षा मंत्री थे। एक कार्यक्रम के सिलसिले में मैं उनसे मिलने विधानसभा में उनके कक्ष में पहुँचा तो देखा आपका चेम्बर खचाखच भरा हुआ था।और वे स्वयं उठकर सबसे प्रार्थना पत्र ले रहे थे। क्योंकि तब कार्य संस्कृति टालने की नही थी। मंत्रियों अफसरों में भय रहता था कि यदि काम नही करूँगा तो मेरी कुर्सी चली जायेगी। बिना रोकटोक के कार्यकर्ता छोड़िए आम जनता मंत्रियों से भेंट कर लेती थी। मेरा मानना है कि "सरकार इकबाल से चलती है"।
     तब मंत्रियों से मिलने का समय निर्धारित होता था। सप्ताह में सोमवार के लेकर शुक्रवार की शाम तक मंत्री जमकर सरकारी आवास से लेकर विधानसभा तक अपना विभागीय कार्य करते थे। शनिवार और रविवार अपने निर्धारित कार्य से प्रदेश का दौरा या अपने 2 क्षेत्र चले जाते थे। मंत्रियों के लिए अपने आफिस में बैठना और सरकारी कार्य करना अनिवार्य होता था। वक्त बदला और उसी के साथ सब कुछ बदल गया।
      मित्रों अब वो दौर भी चला गया। जब फोटो खींचने के लिए कैमरे की जरूरत पड़ती थी और कैमरा सब जगह ले जाना भी मना था। आजका दौर पहले से बहुत बेहतर है। हर हाथ में मोबाइल और उसमें कैमरा लगा है। 
    अपने खुले कैमरे के साथ सबसे पहले चीर परिचित स्थान कालिदास मार्ग पर ले चलता हूँ। जाइये और देखिए कितने मंत्री अपने आवास पर मौजूद हैं क्या उनकी लोकप्रियता के कारण उनके घर के बाहर कार्यकर्ता या या जनता मौजूद है आप सब जगह निरीक्षण करिये जहाँ 2 मंत्रियों के निवास है आपको ज्यादातर सन्नाटा मिलेगा। हाँ सुरक्षा में तैनात गारद और गिने चुने मंत्रियों के करीबी लोग मिल सकते है। उससे ज्यादा कुछ नही,जनता के लिए विधानसभा के अंदर प्रवेश पर बहुत सख्ती है लेकिन जो दलाल किस्म के लोग है चाहे जिसकी सरकार हो उनका प्रवेश धड़ल्ले से होता है पास उन्ही का बनता है जिसे मंत्री का स्टाफ पर्ची भेजेगा वो भी सीमित फिर जनता मंत्री से कैसे मिल सकती है । अब दिन में 3 बजे के बाद कोई मंत्री जनता से मिलने के लिए नही बैठता है।           दो माह पूर्व दिल्ली से कुछ वरिष्ठ पत्रकार आये थे। उन लोगों ने कहाँ यदि कुछ मंत्रियों से हम लोगों की भेंट हो जाती तो यूपी के विकास पर एक रिपोर्ट बना ली जाती, मित्रों मैं उन लोगों के साथ विधानसभा के दोनों भवनों में मंत्रीगण से मिलने के लिए घूमता रहा। वो पूरा वीरान पड़ा था। वहां कोई भी मंत्री मौजूद नही था। उनके दफ्तर जरूर खुले थे। लेकिन कोई काम काज नही हो रहा था।जानकारी किया तो पता चला कि विधानसभा अध्यक्ष जी आये है हम सब ऊपरी फ्लोर पर पहुँचे तो मा0 विधानसभा अध्यक्ष जी से हम लोगों की 10 मिनट की भेंट हुई।  मैं मानसिक रूप से संतुष्ट हुआ कि चलो किसी से तो भेंट हुई। आजके दौर में मंत्री फाइले अपने घर पर करते है। दो साल होने को है और दो मंत्री रेगुलर अपने सरकारी दफ्तर में नही बैठते है। ज्यादातर मंत्री अक्सर दौरे पर रहते है और उनके दौरे विभागीय होते है या राजनैतिक, या व्यक्तिगत किसी को नही पता,उसकी जानकारी सार्वजनिक नही होती। विधानसभा में यदि मंत्रियों की अफसरों की biometric व्यवस्था कर दी जाय और उसकी रिपोर्ट प्रकाशित हो तो तहलका मच जायेगा। क्योंकि मान्यवर लोग दफ़्तर नही आते है,मीटिंग घर पर करते है फिर लाख टके का एक सवाल--
    सरकार अफसरों से कैसे उम्मीद कर सकती है कि वे अपने दफ्तर में बैठकर देर रात तक काम करेंगे। यकिन मानिये बिश्वास कीजिये। आज सब कुछ पटरी से उतर चुका है। भाजपा सरकार से जनता को बड़ी उम्मीदें थीं क्या हमारे मंत्रीगण विधायक,अफसर उसपर 100 प्रतिशत खरे उतरे रहे है। मंत्रियों में जो लाज और भय रहना चाहिए वो बिल्कुल खत्म हो गया है। यदि किसी सरकार का कार्य देखना है तो तेलंगाना,आन्ध्र प्रदेश का कार्य संस्कृति अवश्य देखना चाहिए। आपकी आँखे खुली की खुली रह जायेगी। सरकार बनने के बाद नेतागिरी से काम नही होगा। काम बैठकर करना होगा तक कार्य पूरे होंगे तब जाकर जनता और प्रदेश को सरकार का काम दिखाई देगा।
             सत्यमेव जयते 

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

नोटा के सोंटा से तिलमिला उठी है भाजपा

सुशील अवस्थी "राजन"
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को बहुमत न मिलने के पीछे नोटा को मुख्य वजह माना जा रहा है। कम से कम 14 सीटें ऐसी हैं जहां नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ दोनों दलों के लिए विलेन साबित हुआ है। 230 सीटों में से 14 सीटों पर हार का अंतर नोटा में पड़े वोट से भी कम था। इससे पहले कर्नाटक चुनावों में भी नोटा ने 8 सीटों पर भाजपा की जीत को हार में तब्दील कर दिया था। चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में बहुमत का समीकरण नोटा के चलते बिगड़ा है।
मध्यप्रदेश चुनावों में डेढ़ फीसदी (4,666,26) वोटरों ने नोटा पर बटन दबाया था। राजनीतिक विश्लेषक इस परिस्थिति के लिए दोनों दलों के बूथ मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर दोनों दलों ने मतदाताओं को विश्वास जीता होता तो, इतनी संख्या में नोटा के वोट नहीं पड़ते। उनका कहना है कि जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर हैं, इससे साफ हो गया है कि इस बार का चुनाव पूरी तरह से नोटा के शिकंजे में रहा है।
मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों को 41.2 प्रतिशत वोट मिले हैं। आंकड़ों पर नजर डालें, तो मध्यप्रदेश की वारासिवनी सीट पर निर्दलीय प्रदीप जायसवाल को 45612 वोट मिले, जबकि भाजपा के योगेश निर्मल को 44663 वोच मिले। वहीं नोटा में 1045 वोट पड़े। वहीं टीकमगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी को 44384 और भाजपा को 44573 और नोटा को 986 वोट पड़े। सुवासरा विधानसभा में भाजपा को 89712 और कांग्रेस को 89364 और नोटा पर 2874 वोट पड़े। गरोथ में भाजपा को 72219 और कांग्रेस को 69953, वहीं नोटा को 2351 वोट मिले।
राजनगर विधानसभा सीट की बात करें, तों यहां भाजपा के उम्मीदवार को 34807 वोट और कांग्रेस के प्रत्याशी को 34139 वोट पड़े, जबकि नोटा के पक्ष में 2133 वोट पड़े। नेपानगर में कांग्रेस को 85320, भाजपा को 84056 और नोटा को 2551 वोट पड़े। मान्धाता में कांग्रेस को 71228, भाजपा को 69992 और नोटा को 1575 वोट पड़े। कोलारस में भाजपा को 71173 और कांग्रेस को 70941, जबकि नोटा पर 1649 वोट पड़े। जोबाट सीट पर नोटा में 5139 वोट पड़े, जबकि दोनों दलों के प्रत्याशियों की जीत का अंतर 2500 सौ वोटों का रहा। जओरा सीट पर नोटा के पक्ष में 1500 वोट पड़े, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को जीत के लिए मात्र 700 वोट चाहिए थे।
वहीं पन्ना जिले के गुनौर विधानसभा में नोटा पर 3734 वोट पड़े, जबकि कांग्रेस को 57657 और भाजपा को 55674 वोट पड़े। वहीं यूपी की सीमा से लगने वाले चंदला में नोटा के पक्ष में 2695 वोट पड़े, जबकि जीत का अंतर 1100 वोटों से भी कम रहा। वहीं बीना विधानसभा में नोटा पर 1528 वोट गिरे, जबकि जीत का अंतर 600 वोटों से कम रहा। वहीं ब्यावरा में नोटा पर 1481 वोट गिरे, जबकि कांग्रेस को 75569 और भाजपा को 74743 वोट मिले।
भैंसदेही में सबसे ज्यादा 7706 वोट नोटा में पड़े और तकरीबन 13 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे, जहां पांच हजार से ज्यादा वोट नोटा के पक्ष में गिरे। वहीं मध्यप्रदेश में तीसरी ताकत बनने वाली आम आदमी पार्टी को नोटा से करारा झटका लगा है। नोटा को मिले वोटटा प्रतिशत आप को मिले वोटों से कहीं ज्यादा है। आप को 0.7 प्रतिशत के साथ देर शाम तक 2,408,79 वोट हासिल हुए हैं।

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...