सुशील अवस्थी "राजन"
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को बहुमत न मिलने के पीछे नोटा को मुख्य वजह माना जा रहा है। कम से कम 14 सीटें ऐसी हैं जहां नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ दोनों दलों के लिए विलेन साबित हुआ है। 230 सीटों में से 14 सीटों पर हार का अंतर नोटा में पड़े वोट से भी कम था। इससे पहले कर्नाटक चुनावों में भी नोटा ने 8 सीटों पर भाजपा की जीत को हार में तब्दील कर दिया था। चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में बहुमत का समीकरण नोटा के चलते बिगड़ा है।
मध्यप्रदेश चुनावों में डेढ़ फीसदी (4,666,26) वोटरों ने नोटा पर बटन दबाया था। राजनीतिक विश्लेषक इस परिस्थिति के लिए दोनों दलों के बूथ मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर दोनों दलों ने मतदाताओं को विश्वास जीता होता तो, इतनी संख्या में नोटा के वोट नहीं पड़ते। उनका कहना है कि जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर हैं, इससे साफ हो गया है कि इस बार का चुनाव पूरी तरह से नोटा के शिकंजे में रहा है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस को बहुमत न मिलने के पीछे नोटा को मुख्य वजह माना जा रहा है। कम से कम 14 सीटें ऐसी हैं जहां नोटा यानी ‘नन ऑफ द अबव’ दोनों दलों के लिए विलेन साबित हुआ है। 230 सीटों में से 14 सीटों पर हार का अंतर नोटा में पड़े वोट से भी कम था। इससे पहले कर्नाटक चुनावों में भी नोटा ने 8 सीटों पर भाजपा की जीत को हार में तब्दील कर दिया था। चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में बहुमत का समीकरण नोटा के चलते बिगड़ा है।
मध्यप्रदेश चुनावों में डेढ़ फीसदी (4,666,26) वोटरों ने नोटा पर बटन दबाया था। राजनीतिक विश्लेषक इस परिस्थिति के लिए दोनों दलों के बूथ मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर दोनों दलों ने मतदाताओं को विश्वास जीता होता तो, इतनी संख्या में नोटा के वोट नहीं पड़ते। उनका कहना है कि जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस बराबरी पर हैं, इससे साफ हो गया है कि इस बार का चुनाव पूरी तरह से नोटा के शिकंजे में रहा है।
मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों को 41.2 प्रतिशत वोट मिले हैं। आंकड़ों पर नजर डालें, तो मध्यप्रदेश की वारासिवनी सीट पर निर्दलीय प्रदीप जायसवाल को 45612 वोट मिले, जबकि भाजपा के योगेश निर्मल को 44663 वोच मिले। वहीं नोटा में 1045 वोट पड़े। वहीं टीकमगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी को 44384 और भाजपा को 44573 और नोटा को 986 वोट पड़े। सुवासरा विधानसभा में भाजपा को 89712 और कांग्रेस को 89364 और नोटा पर 2874 वोट पड़े। गरोथ में भाजपा को 72219 और कांग्रेस को 69953, वहीं नोटा को 2351 वोट मिले।
राजनगर विधानसभा सीट की बात करें, तों यहां भाजपा के उम्मीदवार को 34807 वोट और कांग्रेस के प्रत्याशी को 34139 वोट पड़े, जबकि नोटा के पक्ष में 2133 वोट पड़े। नेपानगर में कांग्रेस को 85320, भाजपा को 84056 और नोटा को 2551 वोट पड़े। मान्धाता में कांग्रेस को 71228, भाजपा को 69992 और नोटा को 1575 वोट पड़े। कोलारस में भाजपा को 71173 और कांग्रेस को 70941, जबकि नोटा पर 1649 वोट पड़े। जोबाट सीट पर नोटा में 5139 वोट पड़े, जबकि दोनों दलों के प्रत्याशियों की जीत का अंतर 2500 सौ वोटों का रहा। जओरा सीट पर नोटा के पक्ष में 1500 वोट पड़े, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को जीत के लिए मात्र 700 वोट चाहिए थे।
वहीं पन्ना जिले के गुनौर विधानसभा में नोटा पर 3734 वोट पड़े, जबकि कांग्रेस को 57657 और भाजपा को 55674 वोट पड़े। वहीं यूपी की सीमा से लगने वाले चंदला में नोटा के पक्ष में 2695 वोट पड़े, जबकि जीत का अंतर 1100 वोटों से भी कम रहा। वहीं बीना विधानसभा में नोटा पर 1528 वोट गिरे, जबकि जीत का अंतर 600 वोटों से कम रहा। वहीं ब्यावरा में नोटा पर 1481 वोट गिरे, जबकि कांग्रेस को 75569 और भाजपा को 74743 वोट मिले।
भैंसदेही में सबसे ज्यादा 7706 वोट नोटा में पड़े और तकरीबन 13 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे, जहां पांच हजार से ज्यादा वोट नोटा के पक्ष में गिरे। वहीं मध्यप्रदेश में तीसरी ताकत बनने वाली आम आदमी पार्टी को नोटा से करारा झटका लगा है। नोटा को मिले वोटटा प्रतिशत आप को मिले वोटों से कहीं ज्यादा है। आप को 0.7 प्रतिशत के साथ देर शाम तक 2,408,79 वोट हासिल हुए हैं।
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