बाबा हनुमान और प्रभू राम के बीच की केमेस्टि समझ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि इस ताल्लुकाती केमिस्टी की आधारशिला खुद माता सीता ने अशोक वाटिका में रखी थी। जब यह कहा था "करहुं बहुत रघुनायक छोहू" फिर तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में तब इसे डिकोड करने की कोशिश की जब लिखा कि "राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहउ रघुपति के दासा" कोई मालिक जब अपने सेवक से यह कह दे कि मैं तुम्हारे उपकार का बदला देने की ही स्थिति में नही हूँ, ऐसे में सेवक के अहंकारी हो जाने के अलावा भला क्या रास्ता है? लेकिन यहां हनुमान जी सिर्फ इतना ही कहते हैं कि "सो सब तव प्रताप रघुराई"
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