भारतीय राजनीति में वंशवाद कोई नई बात नहीं। नेहरू और अब्दुल्ला परिवार से शुरू हुई ये परंपरा निगम चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के परिवारों तक जा पहुंची है। हर छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टी में अध्यक्ष पदों की विरासत पिता-पुत्र-पुत्री-पोतों के बीच बंटती जा रही है। राजनीतिक महत्वकांकाक्षाएं पहले की अपेक्षा बढ़ी है और सफल भी हो रही है। हर सफल और असफल राजनीतिज्ञ अपनी विरासत पार्टी के कार्यकर्ताओ की बजाय बेटों और बहुओं को सौंप रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें