उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे युवाओं पर बहुत दबाव होता है। इसी दबाव का सामना कर पानें में अक्षम तमाम युवा आये दिन आत्म हत्याएं कर रहे हैं। ये हम कैसी शिक्षा प्रणाली अंगीकार करते जा रहे हैं, जहाँ सफलता न हासिल कर पानें के सामनें जीवन असफल हो जाता है। असफलता के बाद भी सफल जीवन जिया जा सकता है। यदि ऐसी ही शिक्षा प्रणाली से हमारे आराध्य भगवान् राम भी शिक्षित हुए होते तो सोंचिये कि क्या राज्यारोहन से असफल हुए राम आत्महत्या न किये होते? लेकिन असफलता के बाद भी उन्होंने सफलता की जो कहानी गढ़ी उसके पीछे तत्कालीन शिक्षा प्रणाली का ही कमाल था। क्या आज हम उस तरह शिक्षा प्रणाली को नहीं अपना सकते?
शुक्रवार, 30 नवंबर 2012
बुधवार, 28 नवंबर 2012
आध्यात्म की जन्म भूमि भारत
भारत आध्यात्म की जन्म भूमि है। पाश्चात्य चमक-दमक से ऊब चुके लोग सदा ही यहाँ ज्ञान- वैराग्य और भक्ति की त्रिवेणी में डुबकी लगानें को आतुर रहे हैं। राम- कृष्ण - गौतम और नानक देव की लीला भूमि रही इस भारत भूमि का कण-कण उनके अनुयाइयों के लिए दिव्य है। जो सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए हैं। हमारे महाकुम्भ में एक समय एक जगह लोगों की महा जुटान का मर्म सारी दुनिया समझना चाहती है। हम ऐसे महान देश के नागरिक हैं, हम लोगों के दिलो - दिमाग से इसका एहसास ख़त्म सा होता जा रहा है, जो सर्वथा चिंतनीय है। एक ओर हमारी राष्ट्रीयता की पहचान गंगा आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है, तो दूसरी ओर हमारे तीर्थ स्थल अव्यवस्था और गंदगी के पर्याय बनते जा रहे हैं। जिसके जिम्मेदार हम सभी हैं। क्योंकि हमारी उदासीनता को हमारी सरकारें पहचानती हैं। आइये दुनिया की आध्यात्मिक जन्म भूमि को हम सभी सजा संवार कर रखनें का संकल्प व्यक्त करें, ताकि दुनिया हमें सम्मान भाव से देखे।
आपका अपना - सुशील अवस्थी "राजन" मो0- 09454699011
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाँथ
वशिष्ठ जी भगवान् राम के वनवास प्रकरण पर भरत जी को समझाते हैं, इस अवसर पर बाबा तुलसीदास जी एक चौपाई द्वारा बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखते हैं कि "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ। हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाँथ।"
इस प्रकरण पर एक संत बड़ा ही सुन्दर विवेचन प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि "भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाँथ हो, परन्तु हानि के बाद हम हारें न यह हमारे ही हाँथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है, जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं, मरण अगर प्रभु के हाँथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपनें हाँथ है "
शनिवार, 17 नवंबर 2012
शुक्रवार, 16 नवंबर 2012
गुरुवार, 15 नवंबर 2012
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
वनवास नहीं महलों का आदी,
भोगविलासी और प्रमादी,
स्वारथ का मैं पुतला हूँ,
धीरज धैर्य से उथला हूँ,
रामायण मानस जानता हूँ,
राम को ईश्वर मानता हूँ,
नहि मातु-पिता के काम का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
भ्रात भरत पर शक करता हूँ,
लछिमन से भी मैं डरता हूँ,
सीता पर संदेह बडे है,
रिश्ते सभी खिलाफ खड़े हैं,
हे राम मुझे कुछ शक्ति दो,
अपनें चरणों की भक्ति दो,
मैं "सुशील" रहा बस नाम का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
रावण का वैभव जचता है,
नखा का यौवन मन मथता है,
अहिल्या-शबरी में जान नहीं,
गुह-केवट प्रति सम्मान नहीं,
सुग्रीव दिखा कमजोर जभी,
बाली को सखा कह दिया तभी,
निज चिंतन सुबहो शाम का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
सच राम नहीं बन सका कोई,
चल एक कदम या फिर दोई,
सीता चाहे मिले न भरत लखन,
भले पाप पले दशरथ के मन,
सब फ़र्ज़ निभाएंगे घुस कर,
खुद राम बनन की कोशिश कर,
नहि किया जाप हनुमान का।
मैं कैसा भक्त हूँ राम का?
सुशील अवस्थी "राजन" आलमबाग, लखनऊ,मो0- 9454699011
सोमवार, 5 नवंबर 2012
वो राम हमारे हैं
जो कण-कण में
जो प्रतिक्षण में,
छिति,जल,पावक
वायु, गगन में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
दशरथ के जो आयन में,
वाल्मीकि रामायण में,
तुलसी के जो मानस में,
भक्तों के जनमानस में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
"राजन" कैकय दुर्बुद्धी में,
निषादराज मनशुद्धी में,
भरत खड़ाऊ गद्दी में,
और केवट की सदबुद्धी में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
सीता के जो पतिव्रत में,
अनुसुइया के भी सत में,
लछिमन के सेवारत में,
जो भारत के जनमत में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
जो गीध जटायू सद्गति में,
शबरी आतिथ्य की सदमति में,
जो हनुमत की सेवागति में,
गाँधी बाबा की सन्मति में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
सुशील अवस्थी "राजन" मोबाइल- 09454699011
हमें प्राण से प्यारे हैं।
दशरथ के जो आयन में,
वाल्मीकि रामायण में,
तुलसी के जो मानस में,
भक्तों के जनमानस में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
"राजन" कैकय दुर्बुद्धी में,
निषादराज मनशुद्धी में,
भरत खड़ाऊ गद्दी में,
और केवट की सदबुद्धी में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
सीता के जो पतिव्रत में,
अनुसुइया के भी सत में,
लछिमन के सेवारत में,
जो भारत के जनमत में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
जो गीध जटायू सद्गति में,
शबरी आतिथ्य की सदमति में,
जो हनुमत की सेवागति में,
गाँधी बाबा की सन्मति में,
वो राम हमारे हैं,
हमें प्राण से प्यारे हैं।
सुशील अवस्थी "राजन" मोबाइल- 09454699011